
अयोगवाह निम्नलिखित 3 होते हैं, इसका नामकरण हिंदी के पाणिनी कहे जाने वाले डॉ. किशोरदास बाजपेयी ने किया था।
- अनुस्वार – ं
- अनुनासिक – ँ
- विसर्ग – ः
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अयोगवाह वर्ण किसे कहते है
जिन वर्णों पर अनुस्वार और विसर्ग लगे होते है, उन्हें अयोगवाह वर्ण कहते है।
अनुस्वार वर्ण
इसके उच्चारण में स्वास नाक से निकलती है, अनुस्वार हमेशा स्वर के बाद आती है।
नोट : नासिक्य ध्वनियाँ ( ड़, ञ, ण, न्, म् ) – ये ध्वनियाँ शब्दों के मध्य या अंत में आकर अनुस्वार ( ं ) का काम करती है।
अनुस्वार उपयोग के नियम
पहली बात (1) : घंटा को घन्टा नही लिख सकते है, क्यूंकि इसका सही रूप, घण्टा होता है। ठीक ऐसे ही निम्न कुछ उदाहरण हैं।
- घंटा का सही रूप – घण्टा
- गंगा – गड़्या
- दंत – दन्त
- चंचल – चञ्चल, आदि
दूसरी बात (2) : उष्म व्यंजन श, ष, स, ह के पहले अनुस्वार का ही प्रयोग करते है।
जैसे – अंश, वंश, संहार आदि।
तीसरी बात (3) : य, र, ल, व के पहले सम् का प्रयोग हो तो, उसे [ सं + (य, र, ल, व)] के रूप में लिखेंगे। जैसे –
- सम् + वाद – संवाद
- सम् + लग्न – संलग्न
- सम् + सार – संसार, आदि।
चौथी बात (4) : अगर किसी शब्द के अंत में म् आये तो अनुस्वार का प्रयोग करेंगे। जैसे –
- अहम् – अहं
- स्वयम् – स्वयं, आदि।
अनुनासिक वर्ण ( ँ )
जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोंनो से होता है, उन्हें अनुनासिक स्वर कहते हैं। ये ध्वनियाँ वास्तव में स्वरों के गुण हैं। जैसे – हँस, चाँद, नाँद, आदि।
विसर्ग वर्ण ( अः )
- रामः
- संभवतः
- प्रातः
- अंतः, आदि ।
धन्यवाद !