दोस्तों 700 ईसा पूर्व की यह कहानी है। एक छोटा सा गांव था जिसका नाम शलातुर था।
उस गांव में एक बालक था जो पढ़ने लिखने में बहुत कमजोर था।
वह गाँव के हर बच्चों के साथ गुरुजी से शिक्षा लेने पाठशाला जाता था।
गुरुजी उसको बहुत पढ़ाते – समझाते, लेकिन उसे पढ़ाई बिल्कुल नहीं समझ में आती थी ।
विषय - सूची
किस्मत की लकीर का शुरुआत
गुरुजी बहुत परेशान हो गए, फिर एक दिन उन्होंने उस बालक को अपने पास बुलायें और बोलें, अपना हाथ दिखाओ।
गुरुजी ने उसका हथेली कुछ देर देखा, हथेली देखने के बाद गुरु जी ने कहा बेटा तुम घर चले जाओ। पढ़ाई लिखाई तुम्हारे बस की बात नहीं है।
तो उस बालक ने बोला आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं गुरु जी!
तो गुरुजी ने बोला – हे शिष्य! तुम्हारे हाथ में विद्या की रेखा नहीं है अर्थात तुम पढ़ाई लिखाई नहीं कर सकते। तुम पढ़ लिखकर कुछ नहीं कर सकते। तुम्हारे दिमाग में कभी भी पढ़ाई लिखाई नहीं आ सकती।
इसलिए तुम समय व्यतीत नहीं करो और घर जाकर कोई दूसरा काम करो।
उस शिष्य ने गुरुजी से बोला कि विद्या की रेखा कैसी होती है? तो गुरुजी ने एक होशियार बच्चे का हाथ दिखाया और बताया कि देखो यह है विद्या की रेखा जो कि तुम्हारे हथेली पर नहीं है।
वह बच्चा घर गया और घर से वापस आया, वापस आकर गुरुजी के सामने अपनी हथेली पर चाकू से एक लकीर खींच दिया। खीच डाला किस्मत की लकीर, ठीक होशियार बच्चे की विद्या रेखा की तरह!
गुरु जी यह देखकर बहुत हैरान हो गए। वह डर गए !
उन्होंने उस बालक को अपने पास बुलाया और बोला कि बच्चे तुमने ऐसा क्यों किया ?
तो उस बालक ने कहा गुरु जी मेरे हाथ में विद्या की रेखा नहीं थी। अब मेरे हाथ में विद्या की रेखा हो गई है जैसे कि उस होशियार बालक के हाथ पर है। गुरुजी अब तो मैं विद्या सीख सकता हूं! अब तो मैं होशियार बच्चे की तरह एक होशियार छात्र बन सकता हूं! ज्ञान अब मेरे भी दिमाग में भी आ सकता है। मैं भी एक होशियार छात्र बनना चाहता हूं।
किस्मत में विद्या रेखा नहीं थी इसीलिए गुरुजी मैंने इस चाकू से विद्या रेखा अपने हथेली पर बना दिया। गुरु जी अब आप मुझे पढ़ाएं क्योंकि मेरे हाथ के हथेली पर अब विद्या की रेखा है। अब मैं भी होशियार छात्र बन सकता हूं।
गुरुजी बच्चे की इस हैरतअंगेज कारनामे को देखकर हैरान हुए कि ये छोटा सा बालक इतनी कम उम्र में इतना बड़ा फैसला ले सकता है, बिना डरे! तो यह बच्चा जीवन में कुछ भी कर सकता है। गुरु जी उस बच्चे को फिर से पढ़ाने लगे।
दोस्तों क्या आपको पता है कि वह बच्चा कौन था ? वह बच्चा कोई और नहीं बल्कि महान संस्कृत व्याकरण ज्ञानी पाणिनि थे।
जो आगे चलकर संस्कृत भाषा के महान व्याकरण ग्रंथ रचयिता बने।
इन्होंने अष्टाध्यायी नामक ग्रंथ लिखा। जिसमें 8 अध्याय और लगभग 4000 से भी ज्यादा सूत्र है।
पाणिनि को आधुनिक संस्कृत व्याकरण का पिता भी कहा जाता है।
अष्ठध्यायी व्याकरण ग्रंथ (SANSKRIT WITH HINDI TEXT) खरीदें :- 👇👇👇
इस कहानी से हमने क्या सीखा ?
दोस्तों आपके जीवन में भी रिश्तेदार, पड़ोसी आदि लोगों से यह बातें बहुत सुनने को मिलता है कि तुम यह नहीं कर पाओगे, तुम वह नहीं कर पाओगे। तुम्हारे बस की यह नहीं है, तुम्हारे बस की वह नहीं है।
किंतु दोस्तों, अगर आप दृढ़ निश्चय कर ले कि मुझे अपने जीवन में जो चीज बनना है या करना है। तो उसे करने से कोई नहीं रोक सकता।
आपके हाथ की लकीर आपकी सोच और आपके दिमाग की एक उपज होती है। बस उस उपज को मजबूत बनाए रखना है।
और आप जो जीवन में बनना चाहते हैं या फिर जो भी करना चाहते हैं। बिना कुछ ध्यान दिए बस करते जाएं।
डरो मत, किसी की किसी भी बातों पर ध्यान मत दें। बस कर्म करें! आज नहीं तो कल, आपको वह जरूर मिलेगा जो आप पाना चाहते हैं।
क्योंकि मेहनत का फल हमेशा अच्छा होता है बस आपकी सोच मजबूत होनी चाहिए और बड़ी होनी चाहिए उसी हिसाब से कर्म भी बड़ा रखें। आपको जीवन में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता ।
आपको अपने हथेली पर चाकू से किस्मत की लकीर बनाने की ज़रूरत नही है। बल्कि अपने सोच में ज़िद की लकीर बनाने की ज़रूरत है।
धन्यवाद!
गुस्सा किसी बात का समाधान है, ये कहानी आपके गुस्से को शांत कर सकती है।