छठ पूजा का त्योहार : क्यों और कैसे मनाते हैं ?

छठ पूजा - sahi aur galat
छठ पूजा - sahi aur galat

यह हिंदुओं का त्योहार है। छठ पर्व या डाला छठ, कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी के दिन मनाया जाता है।

यह पर्व बिहार में बहुत ही धूम – धाम से मनाया जाता है। बिहारियों की यह पर्व संस्कृति पर्व है। वैसे तो यह पूरे भारत मे मनाया जाता है। परन्तु उत्तर भारत में बहुत ही ज़्यादा धूम धाम से मनाया जाता है।

छठ पूजा में सूर्य देव को जल अर्घ्य किया जाता है। किसी की मनोकामना पूरी हो जाती है या जिन महिलाओं की एक भी संतान नही रहता है तो वह पुत्र की प्राप्ति के लिये यह व्रत रखती है।

  • पर्व का नाम – छठ पूजा, सूर्य षष्ठी, डाला छठ, डाला पूजा
  • 2023 की तारीख – 10 नवम्बर से सुरु और 19 नवम्बर तक खत्म
  • महत्व या उद्देश्य – मन की मनोकामनायेँ पूरी होने पर सूर्य देव को धन्यवाद या पूजा करना

छठ पूजा क्यों मनाते है?

एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी का कोई पुत्र नहीं था। वह बहुत पूजा और यज्ञ कियेँ, फिर भी उनके एक भी संतान नही हुआ।

इस बात से वह बहुत दुःखी रहने लगे। एक दिन उनकी भेंट महर्षि कश्यप से हुई और उन्होंने महर्षि से अपनी दुःखदायी बात कही, तब महर्षि ने राजा से कहा कि यज्ञ करो।

महर्षि ने जैसा कहाँ राजा ने वैसा किया उसके बाद रानी मालिनी ने एक लड़के को जन्म दिया। लेकिन वह लड़का मरा हुआ पैदा हुआ था।

महाराज प्रियव्रत और उनके परिवार वाले बहुत दुःखी हो गये। तभी आकाश में राजा को एक शिल्प दिखा जहाँ षष्ठी माता ( छठ माता ) विराजमान थीं।

राजा ने उनसे विनती की तो उन्होंने अपना परिचय दिया कि, मैं बृह्मा षष्ठी देवी की पुत्री हूँ। मैं सभी बालकों की रक्षा करती हूं।

फिर राजा ने कहा कि मेरा एक भी संतान नही है, मुझे पिता बनने का आशिर्वाद दीजिये। माता षष्ठी ने राजा को बालक देने का आशिर्वाद दिया।

देवी छठ माँ की कृपा से रानी मालिनी का एक सुंदर लड़का हुआ और वह सही सलामत जीवित रहा। राजा बहुत प्रसन्न थे, उन्होंने षष्ठी माता की पूजा की, तबसे यह त्योहार भारत वर्ष मे मनाया जाने लगा।

डाला छठ कैसे मनाते है।

भैयादूज त्योहार के तीसरे दिन से छठ मैया का पूजा शुरू हो जाता है। पहले दिन नमक वाला भोजन, चावल और लौकी की सब्जी खाते है।

अगले दिन, दिन भर व्रत रहते है। फिर शाम को खीर, पुरी बनाकर पूजा करते, उसके बाद उसको प्रसाद के रूप खा लेते है।

तीसरे दिन डूबते हुये सूर्य को अर्घ्य देते है, फिर उसके अगले दिन सुबह उगते हुये सूर्य को अर्घ्य देते है। उसके बाद सभी पड़ोसी के घर प्रसाद को बाटा जाता है।

  • डाला-पूजा चार दिनों तक का रहने वाला त्योहार है।
  • यह दीपावली के छठवें दिन होता है।
  • वैसे यह दीपावली के चौथे दिन से शुरू होता है, और सातवें दिन खत्म होता है।

छठ पूजा का स्वरूप

  • छठ मैया का पर्व एक खुशी का पर्व है।
  • “डाला छठ (Chhat Puja)” पर सभी भक्त 36 घंटे भूखे यानी व्रत रहती है। और पानी भी नही पीना रहता है।
  • यह पर्व चार दिनों तक लगातार मनाया जाता है।
  • यह कार्तिक शुक्ल चतुदर्शी से सुरु होकर कार्तिक शुक्ल सप्तमी पर खत्म होता है।

छठ पूजा का पहला दिन

छठ मैया का पहले दिन नहायें-खाये का दिन होता है। इसका अर्थ है, औरतें स्नान कर के खाना बनाती है, उसके बाद भगवान के सामने खाना रख कर भोजन करती है।

इस दिन लौकी का सब्जी शाम के समय खाना जरुरी होता है। आज के दिन नमक वाला भोजन करती है।

डाला छठ का दूसरा दिन

छठ पूजा का दूसरा दिन रसियाव रोटी का होता है। इस दिन औरतें दिन भर बिना पानी पिये ही व्रत रहती है तथा शाम के समय मीठा यानी चीनी या गुड़ से बनी खीर और फल खाती है।

आज के दिन हमारे यहाँ जो औरतें व्रत रहती है, वह छठ मैया की पूजा करके खीर और पुरी खाती है।

डाला छठ का तीसरा दिन

इस दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दौरान शाम को सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया जाता है। सभी भक्त फलों से भरी टोकरी जिसमे अनन्नास, सन्तरा, सेव, केला, नारियल और चावल से बना लड्डू रहता है।

इसके बाद सभी भक्त अपने परिवार के साथ पोखरे या तालाब के पास जाती है। सूर्य देव को जल और दूध से अर्घ्य देती है, उसके बाद सुप में फल रखकर छठ मैया की पूजा करती है।

फिर सूर्य देवता की पूजा करने के बाद षष्ठी देवी की गीत गाती हुई घर आती है।

चौथा दिन

डाला पूजा का आखिरी दिन सुबह होने से पहले सभी औरतें नदी के किनारें जाती है। उसके बाद उगते हुये सूर्य देवता को अर्घ्य देती है। उसके बाद छठ मैया से अपने परिवार और बच्चे की सुख शांति के लिये प्रार्थना करती है।

इसके बाद सभी भक्त गीत गाती हुई घर आती है। पूजा खत्म होने के बाद अपना व्रत तोड़ने के लिए प्रसाद का सेवन करती है।


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