गुरुत्वाकर्षण एक बल है जो ब्रह्मांड में सभी भौतिक वस्तुओं में मौजूद है। गुरुत्वाकर्षण उपनिवेशिक कणों से आकाशगंगाओं के क्लस्टर तक सभी आकारों की वस्तुओं पर काम करता है। यह हर तरह की दूरी पर काम करता है, चाहे दूरी छोटी हो या बड़ी कोई फर्क नही पड़ता।
क्या आपने यह कभी जानने की कोशिश की है, की क्यूँ कोई वस्तु ऊपर फेकने से वापस नीचे आ जाती है? क्यूँ कोई चीज़ बिना बल के छत या किसी ऊंचाई से छोड़ने पर हवा मे तैरने के बजाय नीचे ज़मीन पर गिर जाती है? जब हम हवा मे उछलते है तो वापस क्यूँ तेजी से ज़मीन पर आ जाते है ?
इन सभी सवालों का केवल एक ही जवाब है, और वो है गुरुत्वा-कर्षण ! यही वो शक्ति है जिसके वजह से हर एक ऊपर फेंकी हुयी वस्तु, छत से छोड़ी हुयी कोई चीज़ इत्यादि वापस ज़मीन पर आ जाती है। हालांकि पलायन वेग से फेंकी हुयी वस्तु वापस नही आएगी। पलायन वेग से कोई चीज़ फेकना, बिना किसी तकनीक के असंभव है। अर्थात हम कोई पृथ्वी पर कोई ऐसा जीव या मानव नही है जो पलायन वेग से किसी वस्तु को फेंक सके।
नोट: हम पृथ्वी पर हैं, क्यूँकि गुरुत्वाकर्षण है अर्थात गुरुत्वाकर्षण नही, तो हम नही !
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गुरुत्वाकर्षण का इतिहास
भारत के महान गणितज्ञ तथा खगोलशास्त्री आर्यभट (476 – 550 ईसा पूर्व) और महान यूनानी तत्वज्ञानी (philosopher) अरस्तू (384 – 322 ईसा पूर्व), ने सबसे पहले गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत से जुड़ी बल के बारे मे तथ्य दिये।
फिर आधुनिक युग के 16वीं शताब्दी मे गैलीलियो गैलीली (1564 – 1642) ने एक परीक्षण किया। इस परीक्षण मे उन्होने कुछ गेंदों को एक टावर (पीसा का मीनार) से सीधा नीचे गिराया। फिर बाद मे किसी झुकाव वाले वस्तु पर उन गेंदों को लुढ़काते हुये गिरने के लिए नीचे छोड़ दिये। और इन दोनों स्थिति मे भौतिकीय परीक्षण किए, तथा उन्होने दिखाया की सभी बस्तुओं के गुरुत्वीय त्वरण एक समान होता है।
अंततः सर आईजक न्यूटन ने गैलीलियो गैलीली के इस गुरुत्वीय त्वरण के तथ्य मंच को आगे बढ़ाते हुये, सालों तक परीक्षण करके गुरुत्वा-कर्षण पर एक गणितीय सूत्र दे डाला। जो न्यूटन के सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के अंतर्गत आती है।
20 वीं शताब्दी मे आइंस्टीन ने जब सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत को जन्म दिया, उसी दौरान न्यूटन के गुरुत्वा-कर्षण के सिद्धांत मे एक नया संशोधन देखने को मिला। आइंस्टीन के अनुसार, किसी वस्तु पर त्वरण के कारण उत्पन्न होने वाली बल की प्रकृति, उस वस्तु पर कार्य करने वाली गुरुत्वा-कर्षण बल की प्रकृति के समान होती है। इसे Einstein’s Principle of equivalence कहते है।
गुरुत्वाकर्षण क्या है ?
सन् 1687 में महान गणितज्ञ सर आईजक न्यूटन ने सबसे पहले गुरुत्वा-कर्षण के बारे में गणितीय सूत्र देने की कोशिश की थी । उनके अनुसार – ब्रह्माण्ड की सभी द्रव्यमान युक्त पदार्थ एक-दूसरे को अपने तरफ आकर्षित करते हैं, जिसे गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। तथा इनके बीच आकर्षण के द्वारा उत्पन्न होने वाले बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं।
न्यूटन के कथनानुसार – दो कणों के बीच कार्य करने वाला गुरुत्वा-कर्षण बल उन दोनों कणों के द्रव्यमान के गुणनफल के समानुपाती तथा कणों के केंद्र की बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
अर्थात यदि दोनों कणों के द्रव्यमान क्रमशः m1 और m2 हो तथा इनके केंद्र से बीच की दूरी r हो तब, दोनों कणों के बीच कार्य करने वाला गुरुत्वा-कर्षण बल F = G (m1 X m2) / r² होगा।
जहाँ, G एक समानुपाती नियतांक है, जिसे गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहते है। G का मान (6.673 X 10−¹¹) Nm²/Kg² अर्थात 0.00000000006673 Nm²/Kg² होता है।
पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण : The Gravity
पृथ्वी का गुरुत्वा-कर्षण सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से बहुत कम है। तथा सूर्य के गुरुत्वा-कर्षण के कारण ही हमारी पृथ्वी अपने कक्ष मे परिक्रमा करते रहता है। जिससे हमे रात और दिन दिखने को मिलता है। गुरुत्वा-कर्षण ही जीव और मानव जीवन के वातावरण को हमारे आस-पास रोक कर रखी है। जिसके जरिये हम ऑक्सीजन के रूप मे सांस ले पाते है। तथा पानी और बाकी चीज़ों का पृथ्वी तल पर स्थिर होना गुरुत्वा-कर्षण द्वारा संभव है।
नोट: पूरे संसार को संतुलित बनाए रखने मे गुरुत्वाकर्षण की बहुत ही बड़ी अहम भूमिका है !
इसी के कारण हर एक सजीव और निर्जीव का भार होता है। तथा चंद्रमा के गुरुत्वा-कर्षण के कारण ही सागर मे ज्वार-भाटा आता है।यहाँ तक की जब हम आकाश मे टॉर्च जलाते है तब गुरुत्वा-कर्षण के खिंचाव के कारण ही टॉर्च का प्रकाश लालिमा रंग का चमकता है। हालांकि इसे नंगी आंखो से देख पाना मुश्किल है, लेकिन वैज्ञानिक इसे आसानी से माप सकते है।
पृथ्वी पर गुरुत्वा-कर्षण जगह-जगह के हिसाब से कम-ज्यादा होता है। जहाँ पर पृथ्वी के अन्दर भू-भाग का द्रव्यमान ज्यादा होता है, वहाँ पर गुरुत्वा-कर्षण ज्यादा होता है। तथा जहाँ पर पृथ्वी के अन्दर भू-भाग का द्रव्यमान कम होता है, वहाँ पर गुरुत्वा-कर्षण कम होता है।
नोट: पृथ्वी द्वारा लगने वाले गुरुत्वा कर्षण बल को गुरुत्व बल कहते हैं। अर्थात दो पिण्डों मे से एक पिण्ड पृथ्वी हो, तब गुरुत्वाकर्षण बल को गुरुत्व बल कहते है।
नासा के एक परीक्षण कार्य (जिसका नाम GRACE – ग्रैविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट है) के दौरान ही यह पता लगाया गया था की, पृथ्वी पर गुरुत्व बल शक्ति अलग-अलग स्थान की हिसाब से अलग-अलग है।
गुरुत्व बल ऊंचाई पर घट जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्यूंकी पृथ्वी तल के अपेक्षा, ऊंचाई पर पृथ्वी के केंद्र से दूरी बढ़ जाती है। माउंट एवरेस्ट पर गुरुत्व बल 0.28% कम हो जाता है।
अगर आप चाहते है की किसी वस्तु को आप पृथ्वी तल से ऊपर ऐसे फेंके की वह वस्तु पृथ्वी पर कभी वापस न आए। तो उस वस्तु को लगभग 11.186 Km/s की वेग की क्षमता से फेकना पड़ेगा। लेकिन ऐसा क्यूँ ??.. क्यूँ इतने ज्यादे वेग से फेकना पड़ेगा ? क्यूंकी पृथ्वी का गुरुत्व क्षेत्र बहुत ही दूरी तक फैला हुआ है। जिसके कारण अगर हम 11.186 Km/s की वेग से किसी वस्तु को नही फेकेंगे तो वह वस्तु वापस पृथ्वी के तल आ गिरेगा।
नोट: पृथ्वी तल से किसी वस्तु को 11.186 Km/s की फेकने की वेग को पलायन वेग कहते है।
ब्रह्मांड मे गुरुत्वाकर्षण
पृथ्वी, वायुमंडल, ग्रह, उपग्रह, सौर मंडल, तारे, आकाश गंगा और ब्रह्मांड इन सभी को गुरुत्वा-कर्षण अपनी शक्ति द्वारा संतुलित किए हुये है।
सूर्य के चारो ओर परिक्रमा लगाने वाले ग्रह, सूर्य के गुरुत्व-कर्षण बल के कारण ही अपने अपने कक्ष मे परिक्रमा करते है। वैसे ही चंद्रमा अपने कक्ष मे पृथ्वी के चारो तरफ गुरुत्वा-कर्षण बल के कारण परिक्रमा करती रहती है।
वैज्ञानिको का अनुमान है की हमारे आकाशगंगा मे लगभग 200 अरब तारे है। जिसे क्षीरमार्ग, मन्दाकिनी या मिल्कि वे कहते है। आप अंदाजा भी नही लगा सकते है की इन सभी का द्रव्यमान कितना ज्यादा होगा। अर्थात इन सभी के विशाल द्रव्यमान के वजह से एक-दूसरे के बीच बहुत ही शक्तिशाली गुरुत्वा-कर्षण खिंचाव पैदा होता है। इसी वजह से हमारी आकाशगंगा अपने अस्तित्व को संतुलित बनाए रखी है।
लेकिन बात यही नही खत्म होती है। क्यूंकी इस पूरे ब्रह्मांड मे केवल एक ही नही आकाशगंगा है…. जी हाँ !! इस ब्रह्मांड मे अरबों आकाशगंगाएँ हैं। तो ज़रा सोचिए की इन अरबों आकाशगंगाओ से कितनी गुरुत्वा-कर्षण शक्ति पैदा होती होगी, बहुत सारी! तथा इन सभी आकाशगंगाओ को गुरुत्वा-कर्षण बल ही एक दूसरे को आपस मे पकड़कर संतुलित की हुयी है। अर्थात हमारा पूरा ब्रह्मांड बिना गुरुत्वा-कर्षण के छितर-वितर हो जाएगी।
गुरुत्वाकर्षण की गति (Speed of Gravity)
चाइना के एक परीक्षण दल, जिसका नाम LIGO है। इसने दिसंबर 2012 मे गुरुत्वा-कर्षण से जुड़ी खोज के दौरान यह पाया की गुरुत्वा-कर्षण की गति, प्रकाश की गति के बराबर होती है।
सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तल पर आने मे 8 मिनट 20 सेकंड लगते हैं। अर्थात अगर सूरज (sun) अचानक खत्म या फिर गायब हो जाये तो पृथ्वी अपने कक्ष मे लगभग 8 मिनट 20 सेकंड तक परिक्रमा करती रहेगी। उसके बाद पृथ्वी का क्या होगा ?… (अपनी भौतिक राय कमेंट बॉक्स मे कमेंट करें)।
अक्टूबर 2017 मे गुरुत्वा-कर्षण तरंग पर काम करने वाली दो अनुसंधान केंद्र LIGO और Virgo interferometer को गुरुत्वा-कर्षण तरंग की संकेत प्राप्त हुयी, और दोनों की दिशा समान थी। इस तरंग से यह पुष्टि मिली की इसकी गति प्रकाश की गति के समान थी।
धन्यवाद !
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यदि सूरज अचानक गायब हो जाता है तब 8 मी 20 सेकेंड धरती घुमे गी और उसके बाद मुझे लगता है की jupetar ही है जो अपने gevity से सभी को घुमा सकता है या फिर एक बडा गृह एक छोटे गृह को अपने अगोस मे ले लेगा या टकरा जाये गा जिससे मिल्के वे गैलेक्सी का भी संतुलन कुछ खराब होगा
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सूर्य लगभग 5 अरब वर्षों में नष्ट हो जाएगा। यदि सूर्य चमत्कारिक रूप से गायब हो गया, तो गुरुत्वाकर्षण ख़त्म और पृथ्वी (और सौर मंडल की अन्य सभी वस्तुएं) अपनी लगभग-वृत्ताकार कक्षाओं का अनुसरण करने के बजाय, अंतरिक्ष में एक सीधी रेखा में अपनी आगे की गति को जारी रखेंगी। जिसके वजह से ग्रह कभी भी किसी भी समय एक दुसरे से आपस में टकरा सकती है। सूर्य के गायब होने के वजह से दिन प्रतिदिन (जब तक पृथ्वी सुरक्षित है) तापमान कम होने लगेगा। फलस्वरूप लगभग एक सप्ताह बाद 12.8 डिग्री सेन्टीग्रेड, 1 महीने बाद 8.10 डिग्री सेन्टीग्रेड, 1 साल बाद लगभग -18.3 डिग्री सेल्सियस और संभवतः सभी जिव जंतु मर जायेंगे, 10 साल बाद -31.7 डिग्री सेल्सियस और कोई भी जिव और जन्तु ज़िन्दा नहीं रहेंगे तथा सबकुछ लगभग बर्फ़ बन जायेगा, 10000 साल बाद तापमान -271 सेल्सियस और पृथ्वी पूर्णरूप से एक बर्फ का गोला बन जायेगा।