एक गाँव में दिनेश अपनी पत्नी जया और अपने माता पिता के साथ रहता था।
दिनेश की तीन साल की एक पुत्री थी जिसका नाम नैना था। दिनेश सेना में भर्ती होना चाहता था।
सेना में भर्ती होना उसका सपना था। लेकिन सड़क दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई।
अब घर की पूरी ज़िम्मेदारी जया पर आ चुकी थी। वह गाँव के शाहूकार के यहाँ काम कर अपने परिवार का पेट पालने लगी।
अब नैना स्कूल जाने लायक़ हो गई थी। जया नैना को स्कूल भेजना चाहती थी।
लेकिन उस गाँव में लड़कियों की शिक्षा पर रोक थी।
जब वह उसे स्कूल भेजने की जिद की उसकी सास बोली- नैना लड़की है।

बेटियाँ पराई धन होती है इसे तुम चूल्हा चौका सिखाओ, घर के काम काज सिखाओ।
थोड़ी बड़ी होगी तब इसकी शादी कर देंगे अपने घर जाएगी।
जया बोली- माँ जी यह भले ही लड़की है लेकिन मेरी इकलौती संतान है मैं इसे दुनियाँ से लड़ कर भी पढ़ाऊँगी और काबिल बनाऊँगी।
क्योकि इसके पिताजी की फ़ौज में भर्ती होने की आख़िरी इच्छा थी,
वह तो पूरा नहीं कर पाये लेकिन अपने पिता की आख़िरी इच्छा मेरी बेटी पूरा करेगी।
इतना सुनने के बाद उसके सास ससुर मान गये। नैना स्कूल जाने लगी।
उसे स्कूल जाता देख गाँव के कुछ लोगो ने सरपंच से शिकायत कर दी।
सरपंच जया को अपने घर बुलाया और बोला- सुना है तुम अपनी बेटी को स्कूल भेज रही हो, वह कल से स्कूल नहीं जाएगी।
लड़कियाँ घर का गहना होती है जिसे बंद करके रखा जाता है। हमारे गाँव में लड़कियों को स्कूल जाने की इजाजत नहीं है।
कल से उसको स्कूल मत भेजना। जया बोली- मुखियाँ जी मेरी बेटी स्कूल पढ़ने ज़रूर जाएगी।
गाँव वाले या आप चाहे जो कहे मैं उसे घर में नहीं बैठाऊँगी। जया का जवाब सुनकर मुखियाँ आग बबूला हो गया।
बोला- अगर तुम इस गाँव की परंपरा का उलंघन करोगी तो तुम्हें इस गाँव से निकाल दिया जायेगा।
अगर तुम्हें अपनी बेटी को पढ़ पढ़ाना है तो यह गाँव छोड़ कर चली जाओ।
अगर तुम मेरी बात नहीं मानी तो शाहूकार के यहाँ से तुम्हें काम से निकलवा दूँगा। फिर तुम्हारा पूरा परिवार भूखों मरेगा।
जया बिना कुछ बोले घर आ गई। उसने सारी बात अपने सास ससुर से बताई।
उसके ससुर बोले- बेटी जया तुम सरपंच की बात मान लो अगर गाँव वाले हमे गाँव से निकल देंगे तो हम कहा जाएँगे?
यहाँ हमारा घर है खेती बाड़ी है।
जया बोली- पिता जी मैंने फ़ैसला कर लिया है हम लोग यह गाँव छोड़ कर कही और चले जाएँगे।
मैं वहाँ भी काम करूँगी और आप सबकी सेवा करते हुए अपनी बेटी को शिक्षित करूँगी।
वैसे भी इस गाँव में हमारे घर के अलावा और कुछ नहीं है। थोड़ा सा खेत है जिसमें कोई फसल नहीं उगती।
दोनों सास ससुर जया को रोकने की बहुत कोशिश किए लेकिन जया मानने को तैयार नहीं थी।
जया अपने पूरे परिवार को लेकर मुंबई चली गई। किराए का मकान लेकर वहाँ वह एक दुकान पर काम करने लगी।
वही पास के स्कूल में नैना का दाख़िला करा देती है। नैना भी पढ़ने में खूब मन लगाती है।
वह पढ़ाई में बहुत मेहनत करती है। वह हर साल अपने स्कूल में प्रथम आती थी।
जिससे उसकी अगले साल की फीस माफ़ हो जाती थी। नैना धीरे धीरे 22 साल की हो गई।
अपनी स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण कर वह पहली परीक्षा में ही भारतीय सेना में लेफ़्टिनेंट की परीक्षा प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की।
आख़िरकार जया का त्याग और नैना का कठिन परिश्रम रंग लाया।
नैना अपना प्रशिक्षण पूरा कर भारतीय सेना की वर्दी पहन कर अपने घर आई।
जिसे देख सबकी आँखें भर आई। सब बहुत खुश थे। उनके बेटे का सपना उनकी बेटी ने पूरा किया था।
जया उसे गले लगाकर रोने लगी। नैना को भी सारी बातें पता थी कि कैसे उसे गाँव के अशिक्षित लोगो ने उसके परिवार को भागने पर मजबूर किया था।
कुछ साल सेना में नौकरी करने के बाद नैना की तैनाती भारत पाकिस्तान की सीमा पर लग गई।
उसके सीमा पर जाने के कुछ दिनों बाद पाकिस्तानी फ़ौज ने भारतीय फ़ौज पर हमला बोल दिया।
जिसमें नैना बहादुरी और बुद्धिमानी से लड़कर अपने शिविर के एक भी सैनिक खोये बग़ैर पाकिस्तानियों को खदेड़ दिया।
भारत की जीत हुई। नैना की बहादुरी और बुद्धिमानी को देखते हुए
भारत सरकार ने उसे भारतीय सेना के सर्वोच्च पदक “परम वीर चक्र” से नवाज़ा।
नैना जानती थी समाज की कुरीतियाँ सिर्फ़ शिक्षा से ही दूर हो सकती है।
उसकी गुज़ारिश पर उसके गाँव में भारत सरकार ने महिला विद्यालय खोलने का फ़ैसला लिया।
जिसका उद्धघाटन करने के लिये नैना को आमंत्रित किया गया। नैना बहुत सालों बाद अपने गाँव गई।
जहां उसकी बुलंदी को देखकर गाँव वाले गर्वान्वित तो थे ही लेकिन शर्मसार भी थे।
गाँव के मुखियाँ सहित पूरा गाँव नैना का स्वागत किया और सबने नैना और उसकी माँ जया से माफ़ी माँगी।
नैना ने गाँव के प्रथम विद्यालय का उद्धघाटन किया। अब सभी लोग अपनी बेटियों को पढ़ने भेजते थे।
सब समझ चुके थे लड़को की तरह अगर लड़कियों को भी शिक्षा मिलेगी तो वह आगे बढ़ देश का नाम रौशन करेंगी।
इस तरह नैना गाँव वालों और पूरे देश के लिए मिसाल बन गई कि महिला किसी पुरुष से कम नहीं है।
कहानी की सीख-
महिला और पुरुष में कोई अंतर नहीं होता है। सबको शिक्षा का अधिकार है।
महिला पुरुष में भेद भाव नहीं करना चाहिये।
अच्छे विचार और लगन से मेहनत करने पर कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।