मनहूस : अकबर और बीरबल की कहानी

मनहूस : अकबर और बीरबल की कहानी

सुबह सुबह राजा अकबर के महल से दो कार्मिक झाड़ू पोछा कर बाहर निकल रहे थे।

अंदर से उन्होंने देखा कि एक आदमी फुलवारी में पानी दे रहा है।

उसे देखते ही एक कार्मिक दूसरे को रोकते हुए बोला- रुको हम इस दरवाज़े से महल के बाहर नहीं जाएँगे।

दूसरा कारण पूछा, पहले ने बताया कि यह हरिया है जो बहुत मनहूस है।

मनहूस : अकबर और बीरबल की कहानी

सुबह सुबह अगर कोई इसकी शक्ल देख लेता है फिर उसके साथ ज़रूर कोई अनहोनी हो जाती है।

इसके पिता के गुजरने के बाद इसकी माँ महाराज अकबर से नौकरी के लिए बहुत विनती की तब महाराज ने इसे काम करने की आज्ञा दे दी।

लेकिन महल के अंदर आने की अनुमति नहीं दी।

इतना सुनकर दूसरा नौकर भी उससे आँख चुराते हुए दूसरे दरवाज़े से बाहर निकल गया।

प्यास से व्याकुल अकबर

आज अकबर की नींद जल्दी खुल गई। उठते ही अकबर को बहुत तेज प्यास लगी थी।

उन्होंने पानी पीने के लिए सुराही उठाई तो वह ख़ाली थी। उन्हें बहुत तेज प्यास लगी थी।

वह अपने नौकरों को बुलाने लगे लेकिन उस समय महल में कोई नौकर नहीं था जो उन्हें पानी दे सके।

प्यास से व्याकुल अकबर पानी के लिए तड़प रहे थे और नौकरो को चिल्ला चिल्ला कर पुकार रहे थे।

लेकिन कोई भी पानी नहीं लाया। नीचे से हरिया उनके चिल्लाने की आवाज़ सुन रहा था। बहुत देर हो गई अभी वह चिल्ला ही रहे थे।

हरिया को लगा उसके महाराज को कुछ हो न जाये इसलिए वह दंड की परवाह किए बगैर दौड़ कर पानी की एक सुराही लेकर उनके पास पहुँचा।

उसे देख अकबर के मन में बुरा ख़याल आया लेकिन प्यास इतनी तेज लगी थी कि बिना कुछ प्रतिक्रिया दिये वह पानी पी लिये।

अकबर का हुआ बूरा हाल

पानी पीने के थोड़ी ही देर बाद उन्हें उनके पेट में कुछ अजीब महसूस हुआ। वह जल्दी से उठ कर शौचालय की तरफ़ भागे।

फ़र्श गीला होने के कारण पैर फिसल गया और वह धड़ाम से गिर पड़े। गिरने के कारण पैर में मोच आ गई।

उन्हें गिरा देख हरिया तुरंत उन्हें सहारा देकर उठाया और तुरंत बैद्ध को बुलाया और मरहम पट्टी हुई।

कुछ देर बाद उसी दिन अकबर दरबार में बैठ कर राज्य में हो रहे कार्यों की समीक्षा कर रहे थे।

उन्होंने व्यापार मंत्री से पूछा- पड़ोसी राज्य से आने वाले मुर्ग़ों का क्या हुआ?

मंत्री ने जवाब दिया कि पड़ोसी राज्य ने मुर्ग़े देने से मना कर दिया।

फिर उन्होंने विदेश मंत्री से दूसरे राज्य से हो रहे युद्ध के बारे में पूछा- उसने बताया कि हम वह युद्ध हार गये।

हरिया का मनहूस सक्ल

अकबर क्रोधित होकर बोले- आज क्या हुआ है सुबह से मेरे साथ कुछ अच्छा नहीं हो रहा है|

पहले मेरे पैर में मोच आ गई और अब यह सब घटित हो रहा है।

उनके दरबार में स्थित एक मंत्री ने ऐसे ही पूछ लिया आज सुबह सुबह किसका मुँह देख लिये थे कि पूरा दिन ख़राब हो रहा है।

उसकी यह बात अकबर को उत्प्रेरित की उन्होंने सोचा तो हरिया का चेहरा दिमाग़ में आया।

उन्होंने सबको बताया कि सुबह उठते ही मैंने मनहूस हरिया का मुँह देखा था इसलिए यह सब हो रहा है।

हरिया के साथ हुआ अन्याय

आगे उसकी वजह से कोई अनहोनी न हो इसलिए उसे दरबार में बुलाकर उसे काल कोठरी की सजा सुना दी।

जहाँ उनके इस फैसले को सभी दरबारी समर्थन दे रहे थे वही दरबार में उपस्थित बीरबल विरोध करते हुए बोले- क्षमा करे महाराज, लेकिन आप आज हरिया के साथ अन्याय कर रहे है।

आपके साथ जो भी घटना हुई है उसमे हरिया का कोई योगदान नहीं है। बल्कि इसके ज़िम्मेदार आप ख़ुद है।

बीरबल की बातें सुनकर अकबर क्रोधित हो उठे। उन्होंने बीरबल से उनके कहने का अर्थ पूछा,

बीरबल बोले-

  1. हमे पड़ोसी राज्य ने मुर्गे इसलिए नहीं दिये क्योकि पिछली तीन ख़रीद के पैसे उन्हें अभी तक नहीं दिये गये है।

2. युद्ध में हम इसलिए हारे क्यूंकि हमारी रणनीति ख़राब थी। हमने युद्ध के समय का चुनाव सही से नहीं किया।

वहाँ की भगोलिक स्थिति हमारे अनुकूल नहीं थी।

3. महाराज आज आप जल्दी उठे इसलिए महल में कोई भी नौकर उपस्थित नहीं था जो आपको पानी दे सके।

हरिया ने तो आपके लिए अपने दण्ड की परवाह किए बगैर मदद के लिए पानी ले गया।

4. पानी पीते ही आपके पेट में मडोर इसलिए हुई क्योकि रात को आपने मुर्गे मसल्लम खाया था।

5. आप शौचालय जाने की जल्दी में इसलिए गिर पड़े क्योकि फर्श गीला था।

आपके उठने के तुरंत पहले ही नौकरों ने पोछा लगाया था।

बीरबल ने हरिया के साथ अन्याय होने से बचाया

मुझे माफ करियेगा लेकिन मैं यह भी कहना चाहूँगा कि ऐसे देखा जाये तो आज आप भी हरिया के लिए मनहूस साबित हुए।

क्योकि उसने सबसे पहले आप का चेहरा देखा और आज ही उसे काल कोठरी की सजा हो गई।

महाराज हमे जो भी मिलता है या नहीं मिलता है उसके ज़िम्मेदार हम स्वयं होते है न की कोई और इसलिए

आप मेरी बातों पर ध्यान दे कर सही फ़ैसला करे तो बेहतर होगा। बीरबल की बातें अकबर को सही लगी।

वह तुरंत हरिया को बुलाकर सुबह सुबह उनकी मदद करने के लिए उसे सौ स्वर्ण मुद्राएँ उपहार स्वरूप दिये

और सम्मान सहित उसके ऊपर लगाये प्रतिबंधों को हटाते हुए ऐलान किए की

आज के बाद कोई भी हरिया को नीची नज़र से नही देखेगा न ही इसके किसी कार्य में बाधा उत्पन्न करेगा।

अब यह महल के अंदर आ सकता है।

अकबर ने बीरबल के तार्किक जवाबों की खूब प्रसंशा की और उन्हें सही राह दिखाने के लिए धन्यवाद दिया।

कहानी की सीख-

हमारी ज़िंदगी हमारी क़िस्मत नहीं हमारे फैसले बनाते है।

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