एक गाँव में रमेश उसकी पत्नी राधा और इकलौती बेटी पूजा के साथ रहता था। वे बहुत गरीब थे।
रमेश दिन भर मज़दूरी करता था जिससे उनके घर का खर्च चलता था।
जब भी कोई त्योहार आता था उससे पहले ही राधा उसमे उपयोग होने वाली वस्तुयें बना कर उन्हें बेचती थी।
जैसे दिवाली में दीया, होली में रंग और रक्षाबंधन पर राखियाँ।
त्योंहार आने पर रमेश मज़दूरी छोड़ कर राधा के साथ मिलकर सामान तैयार करा कर बेचता था।
रक्षाबंधन का त्यौहार नज़दीक आ रहा था। रमेश बोला- राधा रक्षाबंधन का त्योहार नज़दीक आ रहा है।
मैं बाज़ार जाकर शाहूकार से उधार सामान लेकर आता हूँ। फिर मिलकर राखियाँ तैयार करेंगे।
जब राखियाँ बिक जायेंगी तब शाहूकार का पैसा लौटा देंगे। इतना कहकर रमेश बाज़ार चला गया।
पूजा माँ से बोली- माँ हर बार रक्षाबंधन पर सभी लड़कियाँ नये नये कपड़े पहन कर अच्छे से तैयार होकर अपने भाइयों को राखी बाधती है।
लेकिन मैं किसी को राखी नहीं बांध पाती। मेरा कोई भाई क्यों नहीं है?

हम गरीब है इसीलिए गाँव में भी कोई मुझसे राखी नहीं बधवाता है।
उसके प्रश्न का जवाब राधा के पास नहीं था। राधा बोली- बेटी भगवान मुझे बस एक ही संतान दिये है
और हमारी ग़रीबी के कारण हमे कोई नहीं पूछता इसलिए तुझे ऐसे ही रहना पड़ेगा।
लेकिन इस बार रक्षाबंधन पर तुझे नये कपड़े ज़रूर बनवाऊँगी।
पूजा उदास हो गई। कुछ ही देर बाद रमेश ढेर सारा राखी बनाने का सामान लेकर आ गया।
सभी लोग राखी बनाने में जुट गये। पूजा भी उनके साथ राखी बनवाने लगी।
अगले दिन रमेश कुछ राखियाँ लेकर बाज़ार में बेचने चला गया।
पूजा भी एक थैले मे कुछ राखियाँ लेकर अपनी माँ से बोली- माँ मैं भी गाँव में घूम कर राखी बेचने जा रही हूँ।
राधा ने उसे जाने दिया। पूजा घर घर जाकर राखियाँ बेचने लगी उसकी राखियाँ बहुत सुंदर थी।
सबको पसंद आ रही थी। कुछ ही राखियाँ बची थी जिन्हें बेचते बेचते पूजा गाँव से बाहर चली गई जहां कुछ दिनों के लिए फ़ौजियों का शिविर लगा हुआ था।
वहाँ बहुत सारे फ़ौजी थे। पूजा उनके पास जाकर राखी ख़रीदने को कहती है।
उनमे से एक फ़ौजी बोला- गुड़िया हम लोग यह राखी लेकर क्या करेंगे?
हमे यहाँ राखी बाधने वाली हमारी कोई बहन नहीं है। हमारी बहन तो है लेकिन यहाँ नहीं घर पर है।
उनकी बातें सुनकर पूजा बोली- भइया मेरा कोई भाई नहीं है अगर आप लोग कहे तो मैं आप लोगो को रक्षाबंधन के दिन राखी बाधने आऊँगी।
पूजा का मासूम चेहरा और आँखों में प्यार देखकर सबमें उसे रक्षाबंधन के दिन आने का न्योता दे दिया।
उस दिन पूजा बहुत खुश थी। इतना खुश पहले कभी नहीं हुई थी। उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था।
वह ख़ुशी ख़ुशी घर आई उसे खुश देख माता पिता बोले- क्या बात है पूजा आज तुम बहुत खुश लग रही हो?
इतना खुश तुम्हें पहले कभी नहीं देखा था। पूजा बोली- आज तक मेरा कोई भाई नहीं था लेकिन अब मेरे बहुत सारे भाई है।
उसने माँ और पिताजी से सारी बात बताई और बोली- माँ इस रक्षाबंधन पर मुझे नये कपड़े ज़रूर बनवा देना।
पूजा रक्षाबंधन के दिन के इंतज़ार में थी। आख़िरकार वह दिन आ ही गया जिस दिन का पूजा को बेसब्री से इंतज़ार था।
वह सुबह सबसे पहले उठ कर नहा धो कर नये कपड़े पहन कर तैयार हो गई और राखी बाधने की तैयारियाँ करने लगी।
उसने खूब सुंदर सी थाली सजाकर, तिलक लगाने के लिए चंदन, आरती करने के लिए दीपक, अपने भाइयों का मुँह मीठा कराने के लिए लड्डू और हाथ में बाधने के लिए अपने हाथ से बनाई हुई सुंदर सुंदर राखियाँ लेकर फ़ौजी भाइयों के शिविर की तरफ़ चल दी।
शिविर में पहुँच कर देखी तो वहाँ कोई भी नहीं था। पूरा शिविर ख़ाली था।
वह बहुत दुःखी हुई और मन ही मन सोची- इस साल फिर मेरा सपना अधूरा रह जाएगा।
फ़ौजी भाइयों ने मुझसे झूठ कहा था कि वे उसका इंतज़ार करेंगे। यहाँ तो कोई नहीं है।
पास ही बरगद के पेड़ के नीचे बैठ कर रोने लगी। उसकी आँखें बंद थी।
बहुत देर आँखें बंद कर वह ख़ुद को अभागा समझ रही थी। उसने मान लिया की दुनिया में उससे अभागा कोई नहीं है।
वह वहाँ से अपने घर जाने के लिये अपनी आँख खोली। सामने जो था उसे देख पहले उसे विश्वास ही नहीं हुआ की यह सच है।
सामने सारे फ़ौजी भाई खड़े थे। उसकी आँख खुलते ही सभी हसने लगे और बोले- तुम्हें आते हुए हमने पहले ही देख लिया था इसलिए हम सब तुम्हें परेशान करने के लिए छुप गये थे।
हमे माफ़ कर दो।
पूजा की आँखें चमक उठी थी। वह उन्हें देख बहुत खुश हुई।
सभी फ़ौजी भाइयों को राखी बांधी और मिठाई खिलाई।
उसके इस प्यार से सभी फ़ौजी भाइयों की आँखों में आँशु आ गये।
सबने उसे गले लगा लिया। सभी लोग उसके लिये कुछ न कुछ उपहार लाए थे। जिन्हें पाकर पूजा बहुत खुश हुई।
इस तरह गरीब पूजा को ढेर सारे भाई मिल गये। और उन फ़ौजियों को प्यारी सी बहन मिल गई थी।