रक्षाबंधन पर्व क्यों मनाया जाता है?

रक्षाबंधन पर्व क्यों मनाया जाता है

रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन के पावन रिश्ते का प्रतीक होता है। आइये जानते है यह त्योहार क्यों मनाया जाता है।

रक्षाबंधन पर्व क्यों मनाया जाता है

महाभारत के समय की बात है। श्री कृष्ण की एक चाची थी जिनका नाम श्रुत देवी था। उनकी कोई संतान नहीं थी।

बहुत मन्नतों के बाद उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। जिसका नाम शिशुपाल रखा गया। शिशुपाल जन्म से ही बीमार रहता था।

आस पास के सभी वैद्य उपचार करके थक हार गये थे। उसकी सेहत ठीक नहीं हो रही थी।

सभी जगह उपचार करा कर थक जाने के बाद श्रुत देवी एक बहुत ज्ञानी ऋषि के पास समाधान माँगने गई।

ऋषि ने ध्यान किया और बताया कि किसी श्रेष्ट पुरुष के स्पर्श मात्र से ही शिशुपाल ठीक होगा।

लेकिन आगे चलकर वही श्रेष्ट पुरुष इसकी मृत्यु का कारण भी बनेगा।

श्रुत देवी बहुत स्मंजस में पड़ गई कि वह कौन पुरुष होगा जिसके स्पर्श से उसका पुत्र ठीक होगा।

उसके ठीक होने से अधिक उसकी मृत्यु का भय उसे सताने लगा।

वह सोच में पड़ गई कि उसका बेटा पहले ही बीमार है और ठीक भी होगा तो बाद में उसकी उसी पुरुष के हाथों उसका वध भी हो जाएगा जो इसे जीवन दान देगा।

कुछ दिन बाद श्री कृष्ण के स्पर्श करते ही शिशुपाल बिल्कुल ठीक हो गया।

श्रुत देवी बहुत खुश हुई। लेकिन उसी क्षण माँ की ममता के कारण उसके मन में डर भी सामने लगा कि शिशुपाल की श्री कृष्ण के हाथों ही उसकी मृत्यु होगी।

वह श्री कृष्ण से बहुत आग्रह की कि कृपा करके श्री कृष्ण उसकी हर गलती को माफ़ करते रहेंगे।

श्री कृष्ण ने श्रुत देवी को वचन देते हुए बोले- मैं शिशुपाल की सौ ग़लतियों को माफ़ करूँगा।

लेकिन अगर शिशुपाल सौ से एक भी अधिक गलती किया तो उसे माफ़ नहीं करूँगा। श्रुत देवी इसके लिए भगवान श्रीकृष्ण का आभार व्यक्त की।

शिशुपाल बड़ा होकर अपने राज्य का राजा बना। वह बहुत शक्तिशाली और क्रूर शासक था।

वह लोगो पर बहुत जुल्म करता था। उसके राज्य की प्रजा उससे बहुत परेशान थी।

उसको अपनी शक्ति का बहुत ग़ुरूर था। उसे लगता था दुनिया में उसे हराने वाला कोई नहीं है।

वह श्री कृष्ण को भी कुछ नहीं समझता था। उनको भी हमेशा बुरा भला बोलता रहता था।

लेकिन श्री कृष्ण भी अपने वचन से मजबूर थे। वह हमेशा उसे माफ़ कर देते थे। ऐसा करते करते शिशुपाल सौ ग़लतियाँ कर चुका था।

एक दिन भारी सभा में जहां श्री कृष्ण भी मौजूद थे। शिशुपाल अपना अहंकार दिखाने, वह अपने आप को सबसे श्रेष्ठ बता रहा था और लोगो पर जुल्म करना सही कह रहा था।

श्री कृष्ण के समझाने पर उसने उनको भी तुक्छ बोलकर उनको चुनौती देने लगा।

श्री कृष्ण को क्रोध आया और उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से भरी सभा में उसका गला काट दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गई।

सुदर्शन चक्र से प्रहार करते समय श्री कृष्ण की तर्जनी में चोट लग गई थी जिससे बहुत खून निकल रहा था।

उसी सभा में द्रौपदी भी थी जिन्हें श्री कृष्ण अपनी बहन मानते थे।

द्रौपदी श्रीकृष्ण के उँगली से खून बहता देख तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर उनकी उँगली पर बाध दिया।

जिससे खून बहना बंद हो गया। द्रौपदी के इस उपकार के बदले श्री कृष्ण द्रौपदी की आजीवन रक्षा करने का वचन देते है।

महाभारत के चीर हरण में इसी वचन का पालन करते हुए श्री कृष्ण द्रौपदी के सम्मान की रक्षा करते है।

उसी समय से भाई बहन के स्नेह का त्योहार रक्षाबंधन मनाया जाता है।

बहन अपने भाई की कलाई पर धागा बांध उसकी सुरक्षा की मन्नत माँगती है और भाई अपनी बहन की आजीवन रक्षा करने का वचन देता है।

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