Skip to content
Home » गौतम बुद्ध का क्रोध और गुस्से की कहानी – गुस्सा करने वालें ज़रूर पढ़ें

गौतम बुद्ध का क्रोध और गुस्से की कहानी – गुस्सा करने वालें ज़रूर पढ़ें

गौतम बुध का क्रोध अनुमान लगाईये कैसा रहता होगा। उन्हें अपने गुस्से पर 100 फ़ीसदी नियंत्रण था। लेकिन जब उनके मुँह पर एक व्यक्ति ने थूक दिया था, तब क्या वो अपना क्रोध रोक पाएँ थे या नही? यह जानने के लिए पूरी कहानी ज़रूर पढ़ें।

दोस्तों गौतम बुद्ध ने तो कभी अपने जीवन में क्रोध किया ही नहीं परंतु क्या आप क्रोध करते हैं? क्या आपके आसपास के लोग – आपके परिवार का कोई भी सदस्य – आपका भाई – आपकी मां – आपके पिता – बेटा – बेटी…. क्रोध करते हैं?

अगर गुस्सा करते हैं तो इस कहानी के माध्यम से आपको इसका समाधान जरूर मिल जाएगा और क्रोध करना आप छोड़ देंगे।

गौतम बुद्ध का गाँव मे क्रोध पर उपदेश और क्रोधित व्यक्ति का गुस्सा

एक बार की बात है, महात्मा गौतम बुद्ध एक गांव में उपदेश दे रहे थे। उस उपदेश मे गौतम बुद्ध बता रहे थे की – क्रोध एक अग्नि है, क्रोध एक ज्वाला है, क्रोध विष है, क्रोध जहर है, क्रोध एक ऐसी अवस्था है जिस अवस्था में आप अपना आपा खो बैठते हैं। क्रोध करते वक्त क्रोधित व्यक्ति सामने वाले का नुकसान करना चाहता हैं।

लेकिन दोस्तों यह कैसे संभव हो सकता है कि क्रोध आप करें और उस क्रोध के वजह से किसी दूसरे का नुकसान हो। यह तो कदापि नहीं हो सकता।

हां यह जरूर होगा कि उस क्रोध के वजह से आप जरूर परेशान होंगे। आपकी मानसिक स्थिति जरूर बिगड़ेगी। आपकी शारीरिक अवस्था जरूर खराब हो सकती है। गुस्से मे आप कुछ ऐसा बोल या कर जाएंगे जिसके वजह से आपकी इज्जत भी खराब हो जाएगी।

क्रोध मानो इस तरह है कि आप खुद जहर पीना चाहते हैं और उस जहर का असर किसी दूसरे के शरीर में देखना चाहते हैं। लेकिन यह कैसे हो सकता है ? जब आप क्रोध रूपी जहर को खुद ही पी रहे हैं तो उसका असर तो आपके ऊपर ही होगा न।

जब महात्मा गौतम बुद्ध जी यह उपदेश दे रहे थे। उस दौरान उपदेश देते वक्त गांव के लोगों की एकत्र हुई भीड़ में एक क्रोधी व्यक्ति बैठा हुआ था। वह क्रोधी व्यक्ति इस बात को सुनकर गुस्सा और भी क्रोधित हो रहा था। क्योंकि कहीं न कहीं वह अपने आप की बेइज्जती महसूस कर रहा था कि वह मेरा बेइज्जती कर रहे हैं।

महात्मा गौतम बुद्ध जी की क्रोध की इस उपदेश को सुनते सुनते क्रोधित व्यक्ति इतना ज्यादा गुस्सा हो गया कि वह उस भीड़ से उठा और महात्मा गौतम बुद्ध जी के मुंह पर जाकर थूक दिया।

गांव के लोग और शिष्यगण इस हरकत से भड़क उठे। उनका क्रोध इतना ज़्यादा था की वे लोग उस क्रोधित व्यक्ति को मारने पर उतर आएँ।

लेकिन महात्मा गौतम बुद्ध जी ने लोगों को शांत कराया। उन्होंने बड़े ही शांत स्वर में उस क्रोधित व्यक्ति से पूछा – भाई क्या तुम और भी कुछ कहना और करना चाहते हो मेरे साथ।

वह क्रोधित व्यक्ति बिना कुछ बोले वहां से चला गया। गांव के सारे लोग और शिष्यों ने पूछा कि – हे भगवन वह बुद्धिहीन आपके मुंह पर थूक कर चला गया और आप क्रोधित नहीं हुए? आपको गुस्सा नहीं आया? भला यह कैसे हो सकता है?

महात्मा गौतम बुद्ध ने क्रोध का पाठ पढ़ाया

महात्मा गौतम बुद्ध जी ने कहा – क्रोध अग्नि और ज्वालामुखी की तरह होता है। इसके चपेट मे आने से केवल अनर्थ ही होगा। उसने अनर्थ अर्थात गलत कार्य किया। अगर उसी की तरह मैं भी क्रोधित हो जाऊं तो मैं भी अनर्थ अर्थात गलत कार्य कर देता।

वह व्यक्ति हो सकता है किसी परेशानी में रहा हो, किसी बात को लेकर परेशान रहा हो, जिसके वजह से वह यह गलत कार्य कर किया हो।

गांव के सारे लोग महात्मा गौतम बुद्ध जी के बात को भलीभांति समझ गए और अपने गुस्सा को शांत कर लिए।

क्रोधित व्यक्ति और गौतम बुद्ध का दूसरे दिन हुआ आमना – सामना : माफी

फिर अगले दिन महात्मा गौतम बुद्ध जी दूसरे गांव में अपने उपदेश दे रहे थे। उसी दौरान वह गुस्सैल व्यक्ति महात्मा गौतम बुद्ध जी के चरणों में गिर कर रोने लगा। और कहा –

” हे महात्मा अभी मेरा गुस्सा शांत हो गया है। मैंने कल जो अनर्थ कार्य किया था, उसके वजह से मैं बहुत पछता रहा हूँ। मेरे जीवन में पहली बार ऎसा हुआ है कि मैं किसी पर गुस्साया और वह व्यक्ति कुछ नहीं बोला तथा नाराज भी नहीं हुआ। जबकि जो हरकत मैंने किया उस हरकत पर तो कोई भी मुझे मारने के लिए दौड़ता। कल रात से मुझे नींद नहीं आई है। सुबह से मैं आपको खोज रहा हूँ। खोजते खोजते आपके चरणों में आकर गिर पड़ा हूं। मुझे माफ कर दीजिए। “

महात्मा गौतम बुद्ध जी ने कहा – कोई बात नहीं मैं उस बात को कब का भूल चुका हूं। मैं तो उस वक्त भी उस बात को गौर नहीं किया था, जब तुमने मेरे मुंह पर थूका था।

फिर उस व्यक्ति ने कहा कि – आप महान हैं। इतना सारा हो जाने के बावजूद भी आप मुझसे नम्र स्वभाव से बात कर रहे हैं। मेरा दोष देने के बजाय, मेरे दोष का बचाव कर रहे हैं। इस नासमझी क्रोध के वजय से हुये पाप के लिए मैं क्षमा चाहता हूँ।

गौतम बुद्ध जी ने कहा – तुम्हारा पश्चाताप तुम्हे, तुम्हारे क्रोध के अग्नि से मुक्ति दिला दिया है। जाओ सुखी रहो।

इस कहानी से हमने क्या सिखा

दोस्तों क्रोध करके हम अपने दिमाग को खराब करते हैं। क्रोध करके हम अपने जबान से कुछ भी उल्टा सीधा बोल देते हैं।

क्रोध करके हम बेवजह किसी से झगड़ा कर लेते हैं। क्रोध करने से हमारे द्वारा की गयी निरर्थक कार्य को घंटों तक, दिनों तक, सप्ताह तक, महीनों तक या फिर सालों तक उस बात को लेकर परेशान रहते हैं।

कई बार दो हम गुस्से में कुछ ऐसा कर बैठते हैं जो हमारे मृत्यु उपरांत ही खत्म होती है

हम जब किसी भी सही या गलत बात को बर्दाश्त नहीं कर पाते तब हमारा स्वभाव चिड़चिड़ा होता है। और हम क्रोध करने लगते है।

लेकिन उस क्रोध/गुस्सा से नुकसान किसका हो रहा है। अगर आप किसी बात से या किसी को कुछ कहने से गुस्साते हैं तो हम कहीं ना कहीं अपना ही नुकसान कर रहे हैं।

उस गुस्से की वजह से सामने वाला व्यक्ति जो आपको कुछ कह कर या सुना कर, जिसकी वजह से आप चिड़चिड़ा कर क्रोधित हुए, वह तो चुपचाप चला गया ; उसे जो करना था वह कर लिया। लेकिन आप क्या कर रहे हैं? आप तो क्रोधित होकर खुद का नुकसान ही कर रहे हैं – मानसिक रूप से या फिर शारीरिक रूप से।

जिस बात पर आप क्रोधित हो रहे हैं उस बात को आप एक बार ठंडे दिमाग से सोचने और समझने की कोशिश करिए। सच में कह रहा हूं, आप क्रोधित होना छोड़ देंगे। क्यूँकि आपको समझ में आ जाएगा कि इसकी वजह से केवल और केवल खुद का ही नुकसान होगा और किसी का नहीं।

सब्र का मंथन करते हुए, सही कर्म करें, चतुराई सबसे बड़ा योग है, दूसरों की बातों पर गुस्साएं नही!

धन्यवाद !

कमेंट करके अपना विचार प्रकट करें