कर्म क्या है – गौतम बुद्ध की दुःखी रहने वालों के लिए Inspirational Story

कर्म क्या है - गौतम बुद्ध की कहानी

आप कर्म करते हैं। फिर भी आप दुखी क्यूँ हैं? क्या आपका कर्म, कर्म है या फिर दुष्कर्म है? सही कर्म का ही सही फल मिलता है! लेकिन सही कर्म करें कैसे? सही कर्म होता क्या है?

दोस्तों आज मैं आपको एक कहानी सुनाने जा रहा हूँ। इस कहानी के माध्यम से आज आप यह समझ जाएंगे कि कर्म क्या होता है।

क्योंकि हर एक इंसान का कर्म ही उसके सुख और दुख का भागी होता है। सही कर्म उसके सुख का भागी होता है, और गलत कर्म उसके दुख का भागी होता है।

कर्म क्या है - गौतम बुद्ध की कहानी

शिष्य का प्रश्न – कर्म क्या है?

एक बार की बात है। महात्मा गौतम बुद्ध जी के एक शिष्य ने यह प्रश्न किया कि – हे भगवान! कर्म क्या है?
महात्मा गौतम बुद्ध जी मुस्कुराए और उन्होंने जवाब दिया – वत्स मैं तुमको एक कहानी सुनाने जा रहा हूँ। इस कहानी के माध्यम से तुम सभी शिष्य यह समझ जाओगे कि कर्म क्या है?

गौतम बुद्ध ने सुनाया कर्म की कहानी – राजा और दुकानदार की चन्दन की लकड़ी

एक राजा था। वह अपने मंत्री के साथ देश का भ्रमण करने निकला। भ्रमण करते करते राजा और मंत्री एक बाजार में पहुँच गए।

उस बाजार में राजा का ध्यान एक दुकानदार के ऊपर गया। उस दुकानदार को देखते ही राजा के मन में न जाने क्यों यह विचार आया कि मैं इस दुकानदार को कल फांसी की सजा दे दूँ।

यह बात राजा ने अपनी मंत्री को बताया। मंत्री कुछ बोलें उससे पहले राजा उस दुकानदार के दुकान के सामने से आगे निकल चुके थे। और दूसरी बातें करने लगे।

मंत्री बहुत ही चिंतित हो गया। यह बात समझ नहीं पा रहा था कि दुकानदार की गलती क्या है? दुकानदार से बिना कुछ बात किए, बिना कुछ सोचे समझे महाराज ऐसा फैसला लेने के बारे में क्यों सोच रहे हैं?

राजा और मंत्री भ्रमण करने के बाद राजदरबार वापस चले गए। मंत्री को रात भर नींद नहीं आई।

सुबह जगने के बाद मंत्री एक साधारण प्रजा का रूप बनाकर उस दुकानदार के पास गया। और उस दुकानदार से पूछा – तुम क्या बेचते हो?
दुकानदार ने जवाब दिया – मैं चंदन की लकड़ी बेचता हूँ।
फिर मंत्री आसपास के लोगों से दुकानदार के बारे में पूछना शुरू किया। सब ने जवाब दिया कि दुकानदार किसी से बोलता नहीं है, हमेशा दुखी रहता है।

मंत्री को बात समझ में आ गई मंत्री फिर वापस दुकानदार के पास गया और उस दुकानदार से पूछा – तुम दुखी क्यूँ रहते हो।

दुकानदार ने बताया – मैं दुखी इसलिए रहता हूं क्यूँकि मेरे दुकान पर लोग आते हैं, चंदन की लकड़ियां सूँघते हैं और बोलते हैं बहुत ही सुंदर है, बहुत ही अच्छी महक है। लेकिन कोई खरीदा नहीं है। इसलिए मैं बहुत दुखी रहता हूँ।

मंत्री दुकानदार की बात सुनकर खुद भी भावविभोर हो गया। कोई भी दुकानदार दुखी क्यों न हो अगर उसके दुकान का कोई भी सामान खरीदा ना जाए जबकि सामान मे कोई कमी न हो।

मंत्री सोचने लगा की यह दुकानदार अपने दुखों के वजह से इतना दुखी रहता है। परंतु राजा इस दुकानदार को फांसी पर क्यों लटकाना चाहते हैं अर्थात राजा के मन में आए हुए विचार का उत्तर अभी तक मंत्री को नहीं मिला था।

मंत्री ने फिर दुकानदार से पूछा – भाई तब तुम क्या करोगे अगर तुम्हारे दुकान की सारी चंदन की लकड़ीयाँ ऐसे ही रखी की रखी रह जाएंगी तो।

दुकानदार ने गुस्से भाव में बोला – हां मैं जानता हूं मेरी चंदन की लकड़ीयाँ ऐसे ही रखी रह जाएंगे कोई नहीं खरीदेगा। इसीलिए मैं सोचता हूं कि हमारे देश का राजा जल्दी से मर जाए। अगर वह जल्दी से मर जाता तो मैं उस राज दरबार में उस राजा के दाह संस्कार के लिए अपनी चंदन की लकड़ी देता जिससे मुझे कुछ पैसे मिल जाते। और इस बाजार के अलावा बाकी के लोगों को भी मेरे चंदन की लकड़ी के बारे में पता चलता। तो फिर शायद कुछ न कुछ लोग मेरी दुकान से जरूर खरीदने आते चंदन की लकड़ी।

मंत्री दुकानदार की बात को सुनकर सब कुछ समझ गया और उसके मन में एक विचार आया। मंत्री ने दुकानदार से चंदन की कुछ लकड़ियां खरीदें। इस खरीदारी से दुकानदार को कुछ पैसे भी मिल गए और वह थोड़ा खुश भी हो गया। मंत्री चंदन की लकड़ीयों को लेकर वापस राजदरबार चला आया।

राजदरबार पहुच कर मंत्री ने उन चंदन की लकड़ियों को राजा के समक्ष रख दिया और बोला कि हे राजन! ये चंदन की लकड़ियां उसी दुकानदार ने आपको भेंट किया है, जिस दुकानदार को आप फांसी देने के लिए सोच रहे थे।

राजा उन चंदन को सूँघे तथा सूंघने के बाद बड़े ही प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा यह चंदन की लकड़ियां बहुत ही ज्यादा खुशबूदार हैं। दुकानदार के इस अनोखे भेंट से राजा बहुत खुश हुए और मंत्री को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दिए तथा बोलें – जाओ उस दुकानदार को ये स्वर्ण मुद्राएं इनाम में देना और बोलना कि आज के बाद महल में जब कभी भी चंदन की लकड़ी की जरूरत पड़ेगी तब तुम्हारे दुकान से ही चन्दन की लकड़ी ली जाएगी।

मंत्री जी मुस्कुराने लगे तथा यह सोचने लगे कि अब तो राजा के मन में उस दुकानदार को फांसी देने का विचार आ ही नहीं सकता। क्योंकि अब तो हमेशा राजदरबार के लिए चंदन की लकड़ियों का इंतेज़ाम की ज़िम्मेदारी उस दुकानदार को जो मिल गयी है।

मंत्री स्वर्ण मुद्राओं को लेकर वापस दुकानदार के तरफ चल दिया।

इधर राजा इस विचार में पड़ गए कि वह दुकानदार तो बड़ा ही अच्छा इंसान है। जिस वक्त मैं उसके बारे में यह सोच रहा था कि मैं इसको कल फांसी दे दूंगा, तब शायद उसके मन में उस समय यह विचार चल रहा था कि राजन पहली बार मेरे दुकान के सामने आए हैं क्यूँ न मैं उनको अपनी सुंदर और खुशबूदार लकड़ियों को भेंट करूँ और आज उसने मुझे भेंट भी किया। बेवजह ही मैं उसको फांसी देने के बारे में सोच रहा था।

इधर मंत्री दुकानदार के पास पहुंच गया। मंत्री ने राजा के द्वारा दी गई स्वर्ण मुद्राओं को दुकानदार को देते हुए कहा कि जिन चंदन की लकड़ी को कल मैं खरीद कर लेकर गया था। उन चंदन की लकड़ियों को राजा ने बहुत पसंद किया। और इनाम के तौर पर तुमको यह कुछ स्वर्ण मुद्राएं दिए हैं।

दुकानदार बहुत ही खुश होने लगा… साथ ही साथ मंत्री ने उस दुकानदार को यह भी बताया कि, अब आज के बाद राज दरबार में जब कभी भी चंदन की लकड़ियों की जरूरत पड़ेगी, तो सारी चंदन की लकड़ियां तुम्हारी दुकान से ली जाएगी। दुकानदार मंत्री की बात सुनकर बहुत ही खुश हो गया।

मंत्री ने दुकानदार से पूछा क्यूँ भाई… तुम तो राजा के बारे में इतना बुरा भला सोचते थे। लेकिन राजा देखो तुम्हारी कितना चिंता करते हैं! राजा कितने अच्छे हैं! राजा अपनी प्रजा के बारे में कभी भी गलत नहीं सोचते हैं!

दुकानदार मंत्री की बात से सहमत हो गया और बहुत दुखी हुआ। दुकानदार मंत्री से बोला – मैं कितना गलत सोचता था राजा के बारे में। राजा तो बड़े ही अच्छे हैं, बड़े ही भले राजा हैं। भगवान करे कि राजा की बहुत ही लंबी आयु हो।

यह बात सुनकर मंत्री भी बहुत खुश हुआ। फिर मंत्री वहां से वापस राजदरबार को चला गया। और यहीं पर महात्मा गौतम बुद्ध जी ने इस कहानी को समाप्त कर दिये। फिर अपने शिष्यों से उन्होंने पूछा कि अब बताओ कि कर्म क्या है?

विचार ही हमारे कर्म होते हैं – गौतम बुद्ध ने कर्म का पाठ पढ़ाया

किसी शिष्य ने कहा कर्म ‘बोले हुए शब्द है’। किसी शिष्य ने कहा कर्म ‘वाणी’ है। तो किसी ने कहा कर्म ‘सोच’ है। तो किसी ने कहा कर्म भावना है, वगैरा-वगैरा….।

अपने सारे शिष्यों का जवाब सुनने के बाद महात्मा गौतम बुद्ध जी ने बताया कि कर्म हर एक इंसान की खुद के विचार होते हैं।

हमारे विचार जैसे रहेंगे, हम वैसे ही कर्म करेंगे और उन्ही विचारों के द्वारा की हुई कर्म हमारे सुख और दुख के लिए उत्तरदाई होंगे।

अर्थात हमारे विचार अगर गलत है तो हमारे द्वारा की हुई कर्म भी गलत होगी तथा इसका परिणाम भी गलत निकलेगा, परिणामस्वरूप हम दुखी रहेंगे। अगर हमारे विचार सही रहेंगे तो हम सही कर्म करेंगे, सही कर्म करेंगे तो फिर सही फल मिलेगा, जिससे हम सुखी रहेंगे।

कर्म क्या है कहानी से हमें आज क्या ज्ञान मिला?

इस कहानी से हमने यह सीखा कि अगर हमारे विचार सही रहेंगे, निष्पाप रहेंगे तो उन्हीं निष्पाप और सही सोच की वजह से ली गयी हर फैसला सही होगा। जब सही फैसला लेंगे तब वह हमारे द्वारा की हुई सही कर्म होगी, जब सही कर्म होगी तो सही परिणाम मिलेगा। जिसके वजह से हम सुखी रहेंगे, हम खुश रहेंगे।

तथा इसी जगह पर अगर हमारे विचार गलत रहेंगे, तो हमारे द्वारा ली गई फैसला भी गलत होगी और किया गया कर्म भी गलत होगा। जिसे दुष्कर्म कहा जाता है और उन्हीं दुष्कर्म के वजह से परिणाम भी गलत मिलेगा। जब दुष्परिणाम मिलेगा, तब हम दुखी रहेंगे – परेशान रहेंगे।

कर्म का मंत्र – सही कर्म सुख देगा, दुष्कर्म दुख देगा।

धन्यवाद!

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