सोहनपुर नाम के गाँव में बहुत से लोग रहते थे। उस गाँव में कोई व्यक्ति कभी स्कूल नहीं गया था।
सभी लोग अनपढ़ थे। गाँव के बड़े बुजुर्ग तो अनपढ़ थे ही उनके अगली पीढ़ी के बच्चे भी विद्यालय नहीं जाते थे।
गाँव वालो को लगता था कि पढ़ लिख कर क्या करना है।
जितना समय पढ़ाई लिखाई में बर्बाद करेंगे उतने समय में चार पैसे कमा लेंगे।
उस गाँव में शिक्षा का इतना आभाव था की वहाँ के लोग ठीक से हिन्दी भी नहीं बोल पाते थे।
वहाँ के लोग दिन भर मज़दूरी करते थे और दुनिया से अलग थलग होकर जीवन यापन कर रहे थे।
उनके अनपढ़ होने की वजह से आस पास के गाँव, शहर लोग हमेशा उन्हें बेवक़ूफ़ बनाते थे लेकिन वे कभी समझ नहीं पाते थे।
एक दिन उनके गाँव में एक फेरी वाला आया और चिल्ला चिल्ला कर बोलने लगा- हंड्रेड का माल मात्र सौ रुपये में ले लो।
उसकी बातें सुनकर भोलू जो उसी गाँव का निवासी था आया और पूछा- भाई हंड्रेड मतलब क्या होता है?
फेरी वाला बोला- तुम्हें इतना भी नहीं पता हंड्रेड का मतलब एक हज़ार होता है।
और आज मैं हंड्रेड का माल मात्रा सौ रुपये में बेच रहा हूँ।
उसकी बात सुनते ही भोलू ख़ुश हो गया उसे लगा इतना सस्ता सामान और कहा मिलेगा।
वह तुरंत कुछ सामान ख़रीदा और गाँव वालों में सस्ता सामान का शोर कर दिया। उस फेरी वाले के पास पूरा गाँव आ गया।
चंद मिनटों में उसका पूरा सामान ख़त्म हो गया। फेरी वाला ऐसे ही हर दस दिन पर गाँव में आता था
और थोड़े ही समय में ही अपना दस रुपये का सामान सौ रुपये में बेच कर चला जाता था।

एक दिन शहर का पढ़ा लिखा एक लड़का केशव उस गाँव में आया।
उसने देखा कि वह फेरी वाला उन अनपढ़ गाँव वालों को कैसे बेवक़ूफ़ बना रहा है।
वह तुरंत वहाँ जाकर उसकी पोल खोल दिया और गाँव वालों को बताया कि
यह फेरी वाला सस्ता सामान महँगे दामों में बेच कर आप लोगो को बेवक़ूफ़ बना रहा है।
अपनी पोल खुलती देख फेरी वाला वहाँ से रफ़ूचक्कर हो गया।
गाँव में केशव भी उनको बेवक़ूफ़ बनाने के इरादे से आया था।
वह बोला- आप लोग अनपढ़ है इसीलिए आप लोगो को कोई भी बेवक़ूफ़ बना कर चला जाता है।
आज के जमाने में सबको अंग्रेज़ी बोलनी आनी चाहिए। नहीं तो ऐसे ही आजीवन आप लोग बेवक़ूफ़ बनते रहेंगे।
अंग्रेज़ी में एक दो लाइन बातें बोल कर बोला- मैं आप लोगो की इसी समस्या का समाधान करने आया हूँ।
मैं आप लोगो को अंग्रेज़ी घोल कर पिलाने आया हूँ। अगर आप लोग एक महीने में फ़र्राटे दार अंग्रेज़ी बोलना चाहते है
तो मात्र पाँच सौ रुपये लेकर कल गाँव से बाहर मेरे दफ़्तर में आकर सीख सकते हो।
गाँव का मुखिया बोला- क्या सच में तुम मात्रा एक महीने में हमे अंग्रेज़ी बोलना सिखा दोगे?
केशव बड़े आत्मविश्वास के साथ बोला- जी मुखिया जी मात्र एक महीने में आप लोग मेरी तरह अंग्रेज़ी बोल सकते है।
मैं भी उसी घोल के कारण इतनी अच्छी अंग्रेज़ी बोल पाता हूँ।
गाँव के बेवक़ूफ़ लोग उसकी बातों में आ गये। अगले दिन उसके बताए पते पर सभी गाँव वाले पहुँच गये।
सब लोग पाँच पाँच सौ रुपये जमा कर दिये। केशव हर व्यक्ति को छोटी छोटी सीसियाँ दिया,
जिसमें वह चीनी का घोल डाला था, सबको पीला दिया।
सब बड़े उत्साह से वह घोल पी लिये। उन्हें बेवक़ूफ़ बना कर एक ही दिन में केशव लाखों रुपये कमा लिया।
पूरे गाँव वाले उसे पी कर बहुत खुश थे।
सब सोच रहे थे उन्हें एक महीने में अंग्रेज़ी बोलने आ जाएगा फिर वे सभी शहर जाकर अच्छा पैसा कमायेंगे।
वे सभी एक एक दिन उँगलियों पर गिनने लगे।
एक महीने बाद जब गाँव का कोई भी व्यक्ति अंग्रेज़ी नहीं बोल पा रहा था।
वे सारे फिर से केशव के दफ़्तर गये और बोले- आज एक महीना हो गया लेकिन हम में से किसी को अंग्रेज़ी बोलने नहीं आया।
केशव थोड़ी देर सोचने का नाटक किया और बोला- लगता है आप लोगो के अनपढ़ होने की वजह से घोल काम नहीं किया है।
आप लोगो को वही घोल दोबारा पीना पड़ेगा।
फिर क्या था वे बेवक़ूफ़ लोग दोबारा पाँच सौ रुपये जमा किए और दोबारा घोल पी कर खुश होकर घर चले गये।
दोबारा धीरे धीरे एक महीना बीत गया लेकिन किसको अंग्रेज़ी बोलने नहीं आया। वे सभी इकट्ठा होकर फिर केशव के दफ़्तर गये।
वहाँ जाकर देखा तो दफ़्तर में ताला लटका था। वहाँ एक बूढ़ा आदमी खड़ा था जिसे देखकर मुखियाँ बोला-
यहाँ केशव नाम का व्यक्ति रहता था, वह कहा है?
वह बूढ़ा आदमी बोला- वह तो मेरे यहाँ एक महीने के लिए किराए पर रहने आया था। ए
क महीना पूरा होते ही वह यहाँ से चला गया, लेकिन तुम सब उसे क्यों ढूढ़ रहे हो?
गाँव के मुखिया बूढ़े आदमी को पूरी बात बताया। बूढ़े आदमी को बहुत तेज़ हँसी आ गई।
वह हसतें हुए बोला- तुम सब अनपढ़ हो क्या भला भाषा को कोई घोलकर पी कर सिखाता है क्या?
वह आदमी तुम लोगो को बेवक़ूफ़ बना कर चला गया। अंग्रेज़ी सीखने के लिए तुम लोगो को विद्यालय जाना पड़ेगा।
उसकी किताबें आती है। उसे पढ़ कर अंग्रेज़ी या हिन्दी सीखी जा सकती है।
उस बूढ़े आदमी की बातें सुनकर सबका दिमाग़ खुला। वह समझ चुके थे कि पढ़ा लिखा होना कितना आवश्यक है।
विद्यालय और किताबों के बिना हिन्दी या अंग्रेज़ी नहीं सीखी जा सकती।
उसी दिन से वे सभी अपने बच्चों को विद्यालय भेजने लगे। धीरे धीरे मेहनत कर उस गाँव के सभी लोग शिक्षित हो गये
और दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चलने को तैयार हो गये।
कहानी की सीख- शिक्षा एक मात्र तरक़्क़ी का रास्ता है।