मज़दूर का घर

मज़दूर का घर

एक गाँव में दिनेश और उसकी पत्नी देविका रहते थे। दिनेश बहुत गरीब था। टूटी फूटी छोपड़ी में रहता था।

निम्न वर्ग और गरीब होने के कारण लोग इसे पसंद नहीं करते थे।

दिनेश के पास खेत भी नहीं था वह मज़दूरी कर अपने घर में कैसे भी दो वक्त की रोटी जुटा पाता था।

दिनेश ईमानदार होने के साथ साथ बहुत ही मेहनती था। उसे जो भी काम मिलता था

उसे वह पूरी मेहनत से कम समय में कर देता था।

मज़दूर का घर

गाँव के लोग उसके निम्न जाति का होने के कारण उसकी जरा भी इज़्ज़त नहीं करते थे।

जिस कुएँ से सभी गाँव वाले पानी भरते थे वहाँ से उन दोनों को पानी नहीं लेने देते थे।

वे दूर के एक कुएँ से पानी भरते थे। गाँव वालो की इन हरकतों से देविका बहुत दुःखी रहती थी।

एक दिन वह दिनेश से बोली- हम गरीब है तो इसमें हमारी क्या गलती है?

हमने तो आज तक कभी किसी का बुरा नहीं किया। हमेशा दूसरों की मदद की है

फिर भी गाँव वाले हमे नीची नज़र से क्यों देखते है?

दिनेश भी भाऊक हो उठा लेकिन ख़ुद को सम्भालते हुए बोला- कोई बात नहीं भाग्यवान,

देखना यही गाँव वाले एक दिन हमसे बात करने, मिलने के लिये परेशान रहेंगे।

चलो तुम भोजन निकालो बहुत देर हो चुकी है।

दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते हुए भोजन किए।

ऐसे ही समय बिताता गया। बरसात का मौसम आ गया।

एक दिन बहुत तेज तूफ़ान आया और मूसलाधार बारिश होने लगी।

जिसकी वजह से दिनेश के घर में पानी आने लगा।

दिनेश देविका से बोला- चलो जल्दी से सारा अनाज और ज़रूरी समान उठा कर छोटे भाई के घर घर रख देते है

नहीं तो पूरा अनाज और बिस्तर भीग जाएगा।

दोनों अपना सामान उठा कर अपने छोटे भाई के घर गये। दरवाज़े से आवाज़ लगाये।

उसका भाई दरवाज़ा खोल कर बोला- इतनी बारिश में तुम दोनों क्या करने आए हो?

दिनेश बोला- भाई तेज बारिश की वजह से हमारे घर में पानी घुस गया है

हमारा कुछ सामान अपने घर में रख लो नहीं तो भीग जाएगा।

उसका भाई ग़ुस्से में बोला : नहीं – नहीं, मैं तुम्हारा सामान नहीं रख सकता।

आज सामान रखने आए हो कल ख़ुद रहने आ जाओगे।

अगर तुम्हारा सामान रख लिया तो मेरी पत्नी नाराज़ हो जायेगी, अपना सामान लेकर जाओ यहाँ से।

इतना कह कर उसने उनके मुँह पर ही दरवाज़ा बंद कर दिया।

बेचारा दिनेश बहुत दुःखी हुआ वह वापस अपनी झोपड़ी में आ गया।

दोनों पति पत्नी ज़रूरी सामान भीगने से बचाने के लिए सिर पर रख पूरी रात बैठे रहे।

कैसे भी करके उन्होंने रात काटी। यह रात उनके जीवन की सबसे बड़ी रात थी।

उनके पूरे घर में पानी ही पानी था। उनका सारा सामान पानी में भीग गया था।

अगले दिन रोज़ की तरह दिनेश काम की तलाश में निकला लेकिन बहुत अधिक बारिश होने के कारण उसे कोई काम नहीं मिला।

ऐसे ही महीनों तक उसे कभी कोई छोटा मोटा काम मिल जाता तो कई दिनों तक काम नहीं मिलता।

एक दिन शाम के समय बहुत तेज बारिश हो रही थी। शहर का एक व्यापारी अपनी महँगी कार में बैठ कर जा रहा था।

रास्ता भूल जाने के कारण वह दिनेश के गाँव से गुजर रहा था। दिनेश के घर से थोड़ी ही दूर एक गड्ढा था

जिसके कीचड़ में उसकी कार फ़स गई पूरा पहिया गड्ढे में धस गया था।

व्यापारी अकेले बहुत कोशिश किया लेकिन गाड़ी नहीं निकली। बारिश भी बहुत तेज हो रही थी।

वह आस पास खड़े लोगो से मदद माँगा लेकिन बारिश में भीगने के डर से कोई भी उसकी मदद नहीं किया।

उसी समय दिनेश भी काम न मिलने की वजह से वापस आ रहा था।

उसने देखा कि एक सूट बूट पहने हुए आदमी अकेले अपनी कार निकालने की कोशिश कर रहा है।

तो बिना उसके बुलाये ही वह उसकी मदद करने आ गया। फावड़े की मदद से उसने कार निकालने में मदद की।

कार निकालने के बाद वह व्यापारी दिनेश के पास आया बोला- तुम बहुत अच्छे इंसान लगते हो।

यहाँ मैं पिछले एक घण्टे से फसा हुआ हूँ, बहुत लोगो से मदद भी माँगा लेकिन कोई मदद करने नहीं आया।

लेकिन तुम बिना बुलाये मेरी मदद किए।

मैं तुम्हारे इस एहसान का आभारी रहूँगा। दिनेश बड़े सुलझे हुए स्वर में बोला- साहब

मैं तो बस इंसानियत के नाते आपकी मदद करने आ गया।

जब एक इंसान दूसरे इंसान की मदद नहीं करेगा तो दुनिया पीछे होते चली जाएगी।

इसमें एहसान की कोई बात नहीं है। आप को बहुत देर हो गई होगी आप अपने घर जाइए।

दिनेश की बातें सुनकर व्यापारी बहुत प्रभावी हुआ और उसके घर जाने को बोला।

दिनेश बोला- साहब आप बहुत अमीर लगते है, मेरे घर तो गाँव का कोई व्यक्ति नहीं जाता

न मेरा छुआ कोई पानी पीता है फिर आप कैसे जाएँगे?

व्यापारी फिर भी उसके साथ घर जाने की ज़िद करने लगा। दिनेश न चाहते हुए भी उसे अपने घर ले गया।

घर जाकर देविका से पानी लाने को कहा। देविका की रसोई में कुछ भी खाने के लिए नहीं था।

तो वह एक गुड़ का टुकड़ा खिलाकर व्यापारी को पानी पिलाया।

व्यापारी पानी पी कर उसका टूटा फूटा घर देखकर बोला- दिनेश मैं पास के शहर में व्यापार करता हूँ।

बहुत दिनों से मुझे किसी ईमानदार और कर्मठ व्यक्ति की तलाश थी जो मेरे व्यापार में मेरी मदद कर सके।

लगता है आज मेरी तलाश ख़त्म हो गई। क्या तुम मेरे साथ शहर चलोगे?

मैं तुम्हें वहाँ वेतन पर नौकरी दूँगा, रहने के लिए घर दूँगा। दिनेश खुश होकर बोला- हाँ साहब मैं नौकरी करने के लिए तैयार हूँ

वैसे भी मुझे महीनों से काम नहीं मिल रहा है।

मेरे घर का राशन भी ख़त्म हो गया है। व्यापारी उन्हें ज़रूरी सामान लेकर तुरंत अपने साथ जाने को कहा।

देविका और दिनेश दोनों बहुत खुश हुए। दोनों उसकी गाड़ी में बैठ कर शहर चले गये।

सभी गाँव वाले उसे गाड़ी में जाता देख बहुत हैरान थे।

व्यापारी दिनेश को अपने यहाँ एक वेतन पर रख लिया। उन्हें बड़ा घर दिया उसमे काम करने के लिए नौकर चाकर भी दिया।

दिनेश भी पूरी लगन और ईमानदारी से व्यापार आगे बढ़ाने में मदद करता था।

थोड़े ही दिनों में वह बहुत अमीर हो गया। जो भाई उसका सामान अपने घर में नहीं रखने देता था

अब वह भी उससे मिलने आने लगा।

गाँव के लोग जो उसका छुआ पानी नहीं पीते थे उससे मिलने के लिये आया करते थे।

बहुत लोग अब उससे पैसों की मदद मंगाने भी आया करते थे। वह ख़ुशी ख़ुशी उनकी मदद भी करता था।

दिनेश अपनी मेहनत और ईमानदारी के बदौलत अपनी एक पहचान बना चुका था।

कहानी से सीख :- कर्म, ईमानदारी और इंसानियत के पथ पर चलने वालों को कभी निराशा नहीं मिलती है।

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