एक गाँव में एक परिवार था जिसका मुखिया मनोहर था। मनोहर का एक पुत्र राम और एक पुत्री गुड़िया थी।
मनोहर एक छोटी सी नौकरी करता था जिससे बच्चों की पढ़ाई तथा घर का खर्च चलता था।
एक सड़क दुर्घटना में मनोहर की मौत हो जाती है। उसकी पत्नी मौत के सदमे से बीमार रहने लगती है।
पैसे की कमी के वजह से सही इलाज न मिलने के कारण धीरे धीरे वह बिस्तर पर पड़ जाती है।
घर की सारी ज़िम्मेदारी उसके बेटे राम पर आ जाती है। राम अपनी पढ़ाई बीच में ही रोक देता है और नौकरी ढूढ़ने लगता है।
पढ़ाई पूरी नहीं होने के कारण इसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलती है।
एक दिन वह निराश होकर घर आया। घर आकर अपनी माँ के पास बैठ गया।
माँ बोली- मेरी ख़ासी की दवाइयाँ ख़त्म हो गई है। क्या तुम ले आये?
राम बड़े ही उदास स्वर में बोला- माँ घर में रखे हुए सभी पैसे ख़त्म हो गये है।
मैं कितने दिनों से रोज़ नौकरी की तलाश में जाता हूँ लेकिन नौकरी नहीं मिलती है।
लेकिन आज मैंने एक सेठ जी के यहाँ बात की है उनके यहाँ ड्राइवर की नौकरी मिली है। कल से वहाँ जाऊँगा।
तभी गुड़िया भी वहाँ आ गई। गुड़िया बोली- भैया पड़ोस में शुक्ला जी के यहाँ झाड़ू पोछा वाली की ज़रूरत है। मैंने उनसे बात कर ली है कल से वहाँ काम करने जाऊँगी तुम्हारी कुछ मदद हो जायेगी।
उसकी बात सुनकर राम बहुत ग़ुस्से में बोला- बहन तुम्हें काम करने की आवश्यकता नहीं है। मैं घर और तुम्हारी पढ़ाई का खर्च सम्भाल लूँगा।
अगर तुम्हें मेरी मदद करनी ही है तो अपनी कक्षा में प्रथम आ कर करो।
राम अगले दिन से काम पर जाने लगा। उसका मालिक तो बहुत अच्छा था। लेकिन उसकी मालकीन बहुत घमंडी थी।
जब राम मलिक को उनके दफ़्तर छोड़ देता था। तब मालकीन उसे बुला कर बाज़ार ले जाती कभी पार्टी में ले जाती।
राम से दिन भर काम कराती थी। कभी कभी तो राम को दोपहर का खाना भी नसीब नहीं होता था।
ऐसे ही दिन कटने लगे राम इतना ही कमा पता था जिसमें घर का खर्च, माँ की दवाइयाँ और गुड़िया की पढ़ाई खर्च मुश्किल से निकल पाए।
एक दिन सभी लोग रात में एक साथ बैठ कर ख़ाना खा रहे थे।
गुड़िया बोली- भईया मुझे आपको कुछ दिखाना है यह कह कर अपना परिणाम पत्र उसके सामने रख दी।
वह अपनी कक्षा में प्रथम आई थी। जिससे उसकी अगली कक्षा की फ़ीस माफ़ हो गई थी। सब बहुत खुश थे।
राम का बोझ भी हल्का हो गया था। राम की माँ भी अब पहले से बेहतर हो चुकी थी।
कुछ महीनों बाद गुड़िया माँ से बोली- माँ ये देखो मैं भइया के लिये अपने हाथों से राखी बना रही हूँ।
लेकिन तुम भईया को मत बताना जब उन्हें पता चले कि यह राखी मैंने बनाई है तो मैं उनका उस समय का चेहरा देखना चाहती हूँ।
माँ बोली- राखी बहुत सुंदर है। उसने राखी और डंडर बनाने के लिये कुछ सुझाव भी दिये।
रात को राम घर आया उसकी माँ ने कहा- राम बेटा रक्षाबंधन आ रहा है गुड़िया के लिए कुछ उपहार ला देना। वह बहुत आस लगाये बैठी है।
राम बोला- माँ मेरी कमाई से बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चल रहा है।
कुछ उपहार लाना तो बड़ा कठिन होगा लेकिन आप चिंता मत करो मैं कुछ न कुछ उपाय करके उपहार ज़रूर लाऊँगा।
राम बड़े संकोच के साथ अपने मालिक से उधार पैसे माँगने की हिम्मत जुटा पाया।
लेकिन उसके मालिक ने कहा- राम मैंने पहले ही कहा था तनख़्वाह समय से ही मिलेगी उसके पहले उधार नहीं मिलेगा नौकरी करनी है तो करो नहीं तो कोई और काम ढूढ़ लो।
राम उदास हो गया मालिक से ही उसको उम्मीद थी जो टूट चुकी थी।
अब वह मालकीन के पास गया और बोला- मालकीन रक्षाबंधन पर अपनी बहन के लिये मुझे कपड़े ख़रीदने है लेकिन मेरे पास पैसे नहीं क्या आप मुझे उधार देंगी?
मालकीन बोली- देखो राम पैसों का हिसाब किताब तुम अपने मालिक से किया करो मुझसे नहीं।
अगर तुम्हें कपड़े चाहिए तो बताओ मेरी बेटी के पुराने कपड़े है तुम्हें दे देती हूँ।
लाचार राम पुराने कपड़ों के लिए ही हा बोल दिया। मालकीन अंदर से एक कपड़ा लाई जो बहुत सुंदर था लेकिन कई जगह से फटा हुआ था।
बेचारा राम फटा हुआ कपड़ा लेकर वहाँ से निकल गया। रास्ते में से उस फटे हुए कपड़े की मरम्मत और सजावट के लिए सामान ख़रीद लिया।
घर जाकर अपनी माँ को दिखाया और बोला- माँ नये कपड़े ख़रीदने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे मालिक से उधार माँगा तो वह साफ़ मना कर दिये।
लेकिन मालकीन ने यह कपड़ा दिया है जो कई जगह से फटा हुआ है। मैं मरम्मत और सजावट का सामान लाया हूँ। आओ इसे सिलकर नया कपड़ा बनाने का प्रयास करते है।
राम और उसकी माँ दोनों गुड़िया से छुप कर कपड़े को बहुत सुंदर सजा दिये।
रक्षाबंधन का दिन आ गया। गुड़िया नहा धो कर सुबह ही राखी बाधने के लिए तैयार हो गई।
गुड़िया सारी रस्में पूरी कर राखी बाधने से पहले बोली- भइयाँ यह राखी मैंने अपने हाथों से बनाया है। देखो कैसी है?
राम बोला- बहन यह राखी बहुत सुंदर है। तुमने बहुत मेहनत की है।
राखी बाधने के बाद राम ने गुडियाँ को उपहार में वही कपड़ा दिया। कपड़ा देखते ही गुड़िया बहुत खुश हो गई।
कहानी की सीख- उपहार छोटा बड़ा, सस्ता महँगा नहीं होता है। उपहार की क़ीमत देने वाले के प्यार में होती है।