सोने की कुल्हाड़ी

सोने की कुल्हाड़ी

एक गाँव में दो लकड़हारे राम और श्याम रहते थें। राम बहुत मेहनती, कर्मठ और ईमानदार था।

वही श्याम कामचोर, अनियमित और लालची था। दोनों का काम जंगल से लकड़ियाँ काटना और उन्हें बाज़ार में बेचना था।

राम रोज़ सुबह सूरज निकलने से पहले जंगल जाता और धूप होने से पहले ही काम ख़त्म का करके वापस आ जाता था।

रोज़ जब राम वापस आता था, श्याम बाहर खाट पर सोता मिलता था।

एक दिन राम को श्याम फिर से सोता हुआ मिला।

राम, श्याम को समझाते हुए बोला- श्याम तुम कल भी लकड़ियाँ काटने नहीं गये थे और आज भी धूप हो गई।

उठो और जंगल जाओ, लकड़ियाँ काट लाओ। काम जितनी सुबह हो जाये अच्छा होता है।

फिर दोपहर में बहुत धूप लगती है और बाज़ार में लकड़ियाँ ठीक दाम पर नहीं बिकती।

लेकिन श्याम अपनी मर्ज़ी का मालिक था। जब उसका मन करता था तो जाता था, नहीं मन किया तो नहीं जाता था।

ऐसे ही एक दिन सुबह सुबह राम हाथ में कुल्हाड़ी लिए जंगल जा रहा था।

जैसे ही नदी के किनारे पहुँचा उसका पैर फिसल गया और वो नदी में गिर गया।

राम जैसे तैसे बाहर तो आ गया लेकिन उसकी कुल्हाड़ी नदी में ही कही गिर गई।

वह बहुत देर तक अपनी कुल्हाड़ी ढूढा लेकिन नदी बहुत गहरी होने के कारण उसे कुल्हाड़ी नहीं मिली।

राम नदी के किनारे बैठ कर रोने लगा। उसे अब समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे, क्योकि उसके पास केवल एक ही कुल्हाड़ी थी।

बिना कुल्हाड़ी के उसका और परिवार का काम कैसे चलेगा? यही सब चिंता उसे खाये जा रही थी।

तभी अचानक नदी से एक देवी प्रकट हुई। देवी ने राम के रोने का कारण पूछा, राम ने उनको सारी बातें बताई।

बताते बताते फिर रोने लगा। उसे रोता देख देवी ने कहा बेटा तुम रोना बंद करो मैं अभी तुम्हारी कुल्हाड़ी ढूढ़ कर लाती हूँ।

सोने की कुल्हाड़ी

देवी ने एक चमचमाती सोने की कुल्हाड़ी निकालीं और राम को देते हुए बोलीं- ये लो अपनी कुल्हाड़ी।

राम चौंक गया उसने कुल्हाड़ी लेने से मना कर दिया। बोला ये मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।

यह सुनकर देवी दोबारा डुबकी लगाई और इस बार चाँदी की चमचमाती कुल्हाड़ी निकली।

उसे भी देखते ही राम लेने से मना कर दिया। देवी फिर डुबकी लगाकर लोहे की कुल्हाड़ी निकलीं जिसे देख राम कि ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।

राम बोला देवी माँ यही मेरी कुल्हाड़ी हैं।

राम की ईमानदारी देख कर देवी प्रसन्न हुई। सोने, चाँदी और लोहे की तीनों कुल्हाड़ियाँ राम को देते हुए बोली- बेटा तुम बहुत ईमानदार हो।

ये तीनों कुल्हाड़ियाँ अपना इनाम समझ कर रख लो।

राम ख़ुशी ख़ुशी तीनों कुल्हाड़ियाँ लिया और देवी को धन्यवाद बोल कर अपने घर वापस जाने लगा।

रास्ते में उसे श्याम मिला उसने देखा की राम के हाथ में सोने और चाँदी की कुल्हाड़ियाँ है।

दौड़ कर राम के पास गया और पूछा- राम ने उसे सारी आपबीती सुनाई और अपने घर चला गया।

श्याम के मन में लालच आया। वह नदी के किनारे गया और जान बुझ कर अपनी लोहे की कुल्हाड़ी नदी में गिरा दिया और वही बैठ कर रोने लगा।

थोड़ी देर बाद देवी प्रकट हुई। श्याम से रोने का कारण पूछीं।

श्याम बोला देवी माता गलती से मेरी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई हैं मेरे पास दूसरी कुल्हाड़ी भी नहीं हैं।

मैं लकड़ी काट कर अपना और अपने परिवार का गुजारा करता हूँ।

देवी बोली परेशान मत हो मैं अभी तुम्हारी कुल्हाड़ी ढूढ़ कर लाती हूँ।

देवी ने डुबकी लगाई और सोने की चमचमाती कुल्हाड़ी निकली। श्याम से पूछी क्या यही तुम्हारी कुल्हाड़ी हैं?

लालची श्याम तुरंत बोला हा देवी माता यही मेरी कुल्हाड़ी हैं।

यह सुनते ही देवी माता समझ गई यह लालची है।

देवी माता बोली- मैंने राम को उसकी ईमानदारी का इनाम दिया था। लेकिन तुम लालची प्राणी हो तुम्हें इसका दंड मिलेगा।

अब तुम्हें तुम्हारी लोहे की कुल्हाड़ी भी नहीं मिलेगी। इतना बोल देवी माता अदृश्य हो गई।

लालची श्याम को अपनी लोहे की कुल्हाड़ी से भी हाथ धोना पढ़ा।
“लालच बुरी बला होती हैं”

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