एक गाँव में एक दूध का व्यापारी रहता था। जिसका नाम गोपाल था। गोपाल बहुत मेहनती और ईमानदार था।
पूरे दिन गोपाल गायों की सेवा में लगा रहता था। उन्हें समय से चारा खिलाना, पानी पिलाना और नियमित उनको नहलाता था।
गायें भी गोपाल को बहुत मानती थी। रोज़ सुबह शाम गोपाल उनका दूध निकालता और गाँव में शुद्ध दूध बेचता था।
पूरे गाँव के लोग सिर्फ गोपाल का ही दूध लेते थे। सभी गोपाल की ईमानदारी की सराहना भी करते थे।
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प्रतिद्वंद्वी का जलन
यह होता देख गाँव का ही एक और दूध व्यापारी कल्लू, गोपाल से जलता था क्योकि कल्लू का दूध कोई नहीं लेता था।
कल्लू बहुत बेईमान और लालची था। वह अपने ज्यादा फायदे के लिये दूध में मिलावट करता था।
कल्लू, गोपाल को अपना प्रतिद्वन्दी समझता था। उसे अपने रास्ते से हटाने के लिए किसी अच्छे मौक़े की तलाश में था।
लेकिन गोपाल को इस बात की भनक भी नहीं थी।
मौके का गलत फायदा
एक दिन कल्लू को मौक़ा मिल ही गया। गोपाल को किसी ज़रूरी काम से शहर जाना था।
वह कल्लू से बोला- कल्लू भाई मुझे किसी ज़रूरी काम से शहर जाना है।
तुम शाम तक मेरी गायो कि देखभाल करना मैं जल्दी ही वापस आ जाऊँगा।
कल्लू यह सुनकर मन ही मन बहुत खुश हुआ और गोपाल को आश्वासन देते हुए बोला-
तुम बिलकुल चिंता मत करो मैं गायों का अच्छे से देखभाल करूँगा आख़िर तुम मेरे भाई जैसे ही हो बेफिकर होकर जाओ।
यहाँ की चिंता बिलकुल भी मत करना। गोपाल आस्वस्त होकर शहर चला गया।
इधर कल्लू को बहुत अच्छा मौक़ा मिल चुका था। कल्लू ने सोचा गोपाल के आने से पहले ही गायों का दूध निकाल कर
उसमे पेट ख़राब होने वाली दवाइयाँ मिला देगा। उसने ऐसा ही किया।
जब गोपाल शहर से आया तो देखा कल्लू ने सारी गायों का दूध निकाल दिया था। और उनकी अच्छे से देखभाल भी कर रहा था।
गोपाल बहुत खुश हुआ और कल्लू को सहायता करने के लिए धन्यवाद किया।
पैरों तले ज़मीन खिसक गयी
गोपाल हर दिन की भाँति उस दिन भी दूध बेचने निकल गया। सारा दूध भी बिक गया।
अगले दिन सुबह जो भी व्यक्ति गोपाल का दूध पिया था सबका पेट ख़राब हो गया।
सबकी तबियत ख़राब होता देख गाँव वाले मुखिया जी के पास गये और उनको सारी समस्या बताई।
मुखियाँ जी को डर था कि कही उनके गाँव में कोई बीमारी ने तो दस्तक नहीं दे दी।
मुखियाँ जी ने सबकी बीमारी का कारण पूछा किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
तभी कल्लू बोला मुखियाँ जी कही ऐसा तो नहीं यह किसी की चाल है मैं जिसको जिसको देख रहा हूँ सब गोपाल का दूध पीते हैं।
उसके बाद मुखियाँ जी ने सबसे पूछा- कल तुम लोगो ने क्या खाया था? सबने गोपाल का दूध ही बताया।
पंचायत में गोपाल को बुलाया गया। मुखियाँ जी ने गोपाल से ऐसा करने का कारण पूछा। गोपाल के पाँव के नीचे से ज़मीन खिसक गई।
गोपाल स्तब्ध रह गया और बोला मुखियाँ जी मैं भला ऐसा काम क्यों करूँगा?
मैं अपना काम पूरी ईमानदारी से करता हूँ। मैंने कोई अपराध नहीं किया है।
पूरे गाँव को ये बात पता हैं। लेकिन कल्लू सबको भड़काता रहा।
लालच बुरी बला
अंत में मुखियाँ जी ने गोपाल को गाँव से निकालने का फ़ैसला किया। कल्लू बहुत खुश हुआ।
पहले तो गोपाल को ठीक से कुछ समझ में नहीं आ रहा था। लेकिन कल की बात को याद करके वह समझ गया यह ज़रूर कल्लू की कोई चाल हैं।
लेकिन वह चुप चाप गाँव छोड़ कर चला गया।
अब गोपाल को न रहने की कोई जगह थी न खाने के लिए कुछ था। वह गाँव के पास के जंगल में रहने लगा।
उधर गोपाल के तबेले पर कल्लू ने कब्जा कर लिया सारी गायें भी उसकी हो चुकी थी।
कल्लू बहुत खुश था। धीरे धीरे कल्लू की लालच बढ़ती गई।
ज़्यादा कमाई करने के चक्कर में अब वह गायों को अधिक दूध देने के लिये सुई लगाने लगा।
जिससे वे ज़्यादा दूध देती थी। देखते ही देखते कल्लू बहुत धनवान हो गया।
लेकिन लोभी इंसान को संतोष कहा होता हैं। वह और कमाई के चक्कर में दोनों पहर गायो को सुई लगाने लगा।
ऐसा करते देख कल्लू कि पत्नी ने उसे रोकना चाहा। उसने बोला अब तुम्हारा लालच दिन पर दिन बढ़ती जा रही है।
लालच बुरी बला होती है। लेकिन कल्लू ने उसकी एक ना सुनी। वह लोभ में अंधा हो चुका था।
कुछ दिन बाद धीरे धीरे सारी गाये बीमार पड़ने लगी। अब उन्होंने दूध देना भी बंद कर दिया।
लोभी कल्लू को लगा कि यह गायें अब उसके किसी काम की नहीं है उसने सारी गायो को जंगल में छोड़ दिया
और दूसरी गायें ख़रीद कर लाया और अपना व्यापार करने लगा।
गौ माता की कृपा
एक दिन गोपाल फलो की तलाश में जंगल में घूम रहा था। तभी उसकी नज़र गायो की एक झुंड पर पड़ी
वहाँ जाकर देखा तो वह हैरान हो गया। ये सारी गायें उसकी ही थी।
गायों ने भी गोपाल को पहचान लिया। उनकी हालत बहुत बत्तर थी।
गोपाल उनको नदी के किनारे ले गया। उनको पानी पिलाया सबको अच्छे से नहलाया।
गायों की सेवा में जुट गया। गोपाल सारी गायों का बहुत अच्छे से देखभाल किया।
थोड़े दिनों में ही सबकी हालात में बहुत सुधार हो गया।
एक दिन वह गायों को नदी के किनारे नहला रहा था तभी एक चमत्कार हुआ। एक बूढ़ी गाय देवी के रूप में गोपाल के सामने प्रकट हुई।
गोपाल हक्का बक्का रह गया। गौमाता ने बोला- गोपाल तुम निःस्वार्थ इन गायो की सेवा करते हो
यह देख मैं बहुत प्रसन्न हूँ माँगो तुम्हें क्या चाहिए? गोपाल बहुत सरल व्यक्ति था।
गौमाता को प्रणाम करते हुए बोला माता मुझे किसी चीज का लालच नहीं है,
मैं चाहता हूँ मेरी पुरानी ज़िंदगी मुझे वापस मिल जाये उसी में मैं बहुत खुश था।

गौमाता उसके कथन से बहुत खुश हुई और उसे आशीर्वाद दिया। बोलीं- तुम जंगल में गोबर का घर बनाना। वह घर हीरों का घर हो जाएगा।
तुम्हारी गायें जितना भी गोबर करेंगी सूखने के बाद वह हीरा बन जाएगा। यह कहकर माता अदृश्य हो गई।
गोपाल गोबर का घर बनाने में जुट गया। उसका घर लगभग तैयार ही हो चला था।
गलती पर ग्लानि और बेईमानी की सजा
एक दिन कल्लू उसी जंगल से गुजर रहा था। उसने देखा गोपाल गोबर का घर बना रहा हैं,
उसकी खिल्ली उड़ाने उसके पास आ गया। बोला गोपाल भाई कैसे हो?
गोपाल खुश होकर बोला मैं बहुत अच्छा हूँ आओ बैठो। कल्लू बोला मैं महल में रहता हूँ तुम्हारे गोबर के घर में नहीं बैठूँगा।
गोपाल बोला मुझे पता है दूध में मिलावट तुम्हीं ने की थी लेकिन गाँव वालों के सामने मैं तुम्हारी बेइज़्ज़ती नहीं करना था
इसलिए बिना कुछ बोले चुपचाप गाँव छोड़ दिया। तुम बताओ तुम्हारा व्यापार कैसा चल रहा है?
और गाँव के लोग कैसे हैं? इतना उदार व्यवहार देख कल्लू को बहुत ग्लानि महसूस होने लगी।
वह दोनों बात ही कर रहे थे कि अचानक गोपाल का गोबर का घर हीरों के घर में बादल गया।
ऐसा होता देख कल्लू के होश उड़ गये। उसकी आँखें चका-चौंध गई।
गोपाल ने गौमाता को धन्यवाद दिया और कल्लू को सारी बातें बताई। अब कल्लू की भी आँखें खुल चुकी थी।
वहाँ से गाँव चला गया और मुखियाँ जी से सारी सच्चाई बता दी।
मुखियाँ जी ने पुलिस बुलाई और कल्लू को गिरफ़्तार करवा दिया। कल्लू को उसकी बेईमानी की कड़ी सजा मिली।
मुखियाँ जी गाँव वालों को लेकर गोपाल के पास पहुँचे और माफ़ी माँगते हुए बोले- सजा देने से पहले मुझे पूरी जाँच करनी चाहिए थी।
मुझे माफ करदो। सभी गाँव वालों ने भी माफ़ी माँगी और गोपाल को गाँव वापस चलने का आग्रह किया।
गोपाल की मनों कमाना पूरी हुई। दोबारा वह गाँव में ख़ुशी ख़ुशी रहने लगा।