सोने की फसल- अकबर और बीरबल की कहानी

सोने का फसल

एक दिन राजा अकबर के दरबार में एक चोर के चोरी का फैसला हो रहा था। चोर की चोरी सिद्ध हो चुकी थी लेकिन वह अपनी ज़ुबान से चोरी क़ुबूल नहीं कर रहा था।

अकबर का गुस्सा

यह देख राजा अकबर बहुत क्रोधित हो उठे। उन्होंने क्रोध में आकर बोला- हम एक बार तुम्हारी चोरी को माफ कर सकते है।

लेकिन तुम्हारे द्वारा बोला गया झूठ मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा। क्योकि झूठ और झूठ बोलने वालों से मुझे शक्त नफरत है।

उनकी इस बात पर चोर बोला- महाराज आप तो ऐसे बोल रहे है जैसे आपके राज्य में कोई झूठ ही नहीं बोलता है।

आप की इस दरबार में ही पूछ लीजिए बहुत झूठे बैठे होंगे।

उसकी बात सुनकर अकबर को और क्रोध आ गया। वह बोले- अगर मेरी दरबार में कोई स्वीकार कर लेगा की वह झूठ बोलता है तो मैं तुम्हारी सजा माफ़ कर दूँगा।

यह सुनते ही सभी दरबारी और उनके मंत्री सन्न रह गये। लेकिन अब राजा के सामने कौन बोलता की वह झूठ बोलता है।

राजा ने एक ही स्वर में सबसे पूछा कि क्या इस दरबार में उपस्थित कोई दरबारी कभी झूठ बोला है?

बीरबल का झूठ

सभी दरबारी सोच में पड़ गये कि क्या बोले? हर कोई कभी न कभी किसी परिस्थिति में अवश्य झूठ बोल दिया होगा लेकिन अगर राजा के सामने क़ुबूल कर लेंगे तो हो सकता है उन्हें भी सजा काटनी पड़े।

इसलिए सभी दरबारियों ने अकबर से बोला कि वे झूठ नहीं बोलते है। यह सुनकर अकबर बहुत प्रसन्न हुए।

लेकिन उनके दरबार में उपस्थित बीरबल अभी भी किसी चिंतन में दुबे हुए थे। अकबर उनसे भी पूछे कि बीरबल क्या आपने अपने जीवन काल में कभी झूठ बोला है?

बीरबल सोच विचार कर बोले- महाराज, मनुष्य अपने पूरे जीवन काल में कभी न कभी झूठ अवश्य बोल देता है।

इसलिए मैं यह तो नहीं कह सकता कि मैंने कभी भी झूठ नहीं बोला है। मैं पूरी तरह मानता हूँ कि मैंने कभी न कभी अवश्य झूठ बोला होगा।

बीरबल की बातें सुनकर अकबर ग़ुस्से से लाल होकर बोले- बीरबल तुम मेरे सबसे प्रिय सलाहकार हो और तुम झूठे हो? मुझे यक़ीन नहीं हो रहा है।

अकबर और बीरबल की बातें सुनकर चोर हस पड़ा और बोला- महाराज आपके कहे अनुसार मैं दंड का पात्र नहीं हूँ।

इसलिए मुझे यहाँ से जाने की अनुमति प्रदान करे। अकबर उसे जाने देने के लिए मजबूर थे।

उसे जाने को बोल कर बीरबल को दरबार से निष्कासित कर, आदेश दिये कि आज से उनकी दरबार में बीरबल के लिए कोई स्थान नहीं होगा।

सोने का जौ

बीरबल अकबर की नादानी से बड़े चिंतित थे। वह उन्हें समझाने के लिए सटीक उपाय ढूढ़ रहे थे।

सोने का फसल

वह चिंतन करते करते एक दिन अपने घर में बैठ कर बोरी से गेहूं निकाल निकाल कर चक्की में गेहूँ पीस रहे थे।

अचानक उनके हाथ में एक जौ की सबूत बाल आ गई। उस जौ की बाल देखकर उनके मन योजना आई।

वह जौ की बाल लेकर बीरबल एक सोनार के पास गये और जौ की बाल जैसी सोने की ढेर सारी आकृति बनवा लाए।

अगले दिन वह राजा अकबर, उनके सभी दरबारियों और मंत्रियों को अपने खेत में बुलाये।

बीरबल के बुलावे पर राजा अकबर सबके साथ सुबह सुबह आये। बीरबल अपने खेत में खड़े उनका इंतज़ार कर रहे थे।

उनको खड़ा देख अकबर द्वेष में बोले- चोर बीरबल हमे यहाँ क्यों बुलाये?

बीरबल की चालाकी

बीरबल बड़े सरल अन्दाज़ में एक थैला उनकी तरफ़ करते हुए बोले- महाराज यह सोने के जौ मेरे अरबी मित्र ने मेरे लिये अरब देश से भेजे है।

वह सोने के जौ बहुत ही आकर्षक थे। अकबर अभी कुछ बोले उससे पहले बीरबल बोल उठे- महाराज यदि इन सोने के जौ को खेतों में लगा दिया जाये तो यह सोने के जौ की उपज देंगे।

यह सुनते ही अकबर बहुत खुश हुए। वह बोले- ठीक है फिर इन्हें खेतों में लगा दिया जाए।

उन्हें रोकते हुए बीरबल बोले- महाराज, लेकिन इसकी एक शर्त है, इसे वही मनुष्य लगा सकता है जिसने जीवन में कभी झूठ न बोला हो।

यदि कोई झूठा मनुष्य इसे लगा दिया तो उसका सिर फट जाएगा। चुकी मैं एक झूठा व्यक्ति हूँ इसलिए मैं चाहता हूँ

आपके मंत्रीगण जिन्होंने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला है वो आगे आये और यह बीज लगाए।

मंत्री और दरबारी का झूठ पकड़ा गया

यह सुनते ही अकबर के साथ आये सभी मंत्री और दरबारी जो उस दिन सभा में कभी झूठ नहीं बोलने की बात स्वीकारी थी सभी दो कदम पीछे हट गए।

उन्हें देख कर अकबर समझ गये कि ये सब दरबार में झूठ बोल रहे थे। उन्हें पीछे हटता देख वह बहुत क्रोधित हुए।

लेकिन उनका ग़ुस्सा शांत कराते हुए बीरबल दोबारा बोले- कोई बात नहीं महाराज ये लोग स्वतः स्वीकार कर लिये की ये कभी न कभी झूठ बोले है लेकिन यह फसल अभी भी लगाई जा सकती है।

इन्हें आप स्वयं अपने हाथों से लगा दीजिए। आप भी तो कभी झूठ नहीं बोले है। यह सुनकर अकबर सोच में डूब गये।

अकबर ने अपनी गलती स्वीकार किए

उन्हें भी अपने सिर की चिंता थी। उन्होंने चिंतन किया और बोला- मुझे ऐसे तो याद नहीं आ रहा है कि मैंने झूठ बोला है|

लेकिन मैं दावे के साथ नहीं कह सकता कि मैं अपने जीवनकाल में कभी झूठ नहीं बोला होऊँगा।

फिर वह बीरबल को गले लगाकर अपनी गलती स्वीकार किए। बीरबल को राज दरबार ले जा कर सम्मानित किए और उनके समझाने के तरीक़े की प्रशंसा की।

कहानी की सीख-

हमे झूठ नहीं बोलना चाहिए, लेकिन यदि झूठ बोलने से किसी की भलाई होती हो तो उससे बड़ा कोई सत्य नहीं हो सकता।

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