अकबर और बीरबल की पहली भेंट

अकबर और बीरबल की पहली भेंट

एक बार अकबर के दरबार में आये कुछ पड़ोसी राजा बीरबल की मज़ेदार बातें सुन कर आनंदित हो रहे थे।

हँसी से पेट दुखा देनी वाली बात खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी।

बीरबल ने उन सब का मन मोह लिया था। इतने में एक पड़ोसी राजा अकबर से बोले-

महाराज, क्या आपकी दरबार में बीरबल जैसा कोई हो तो मुझे दे दीजिए।

महराज ने बीरबल की पहली भेट के बारे में बताया

अकबर और बीरबल की पहली भेंट

अकबर हसते हुए बोले- बीरबल जैसा ज्ञानी और तार्किक रूप से सुदृढ़ व्यक्ति मुझे अपने जीवन काल में नहीं मिला।

फिर वह बीरबल से पहली भेंट की बात बताना शुरू किए।

एक बार मैं जंगल के रास्ते से आगरा आ रहा था। मेरे साथ मेरे कुछ वफ़ादार सैनिक भी थे।

अचानक बहुत तेज तूफ़ान आ गया। तूफ़ान बहुत तेज था इसलिए हमारे घोड़े इधर- उधर भागने लगे तूफ़ान के साथ धूल मिट्टी भी बहुत थी, कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

महराज अकबर रास्ता भटक गए

जब तक तूफ़ान शांत हुआ तब तक मैं अपने सैनिकों से अलग हो चुका था।

उस तूफ़ान में मेरा नक़्शा भी कही खो गया था। मैं रास्ता भटक गया था।

उस सुनसान जंगल में मैं अकेले रास्ता ढूढ़ रहा था। आगे चलकर एक तिराहा मिला जहां तीन रास्ते थे।

अब मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि किधर जाऊँ। इसलिए मैं वही खड़ा रहा।

थोड़ी देर बाद मुझे दूर एक आदमी दिखा, मैंने उसे पुकारा और अपने पास बुलाया और पूछा- इनमें से कौन सा रास्ता आगरा जाता है?

अकबर ने सहायता के लिए पुकारा

मेरा प्रश्न सुनकर वह व्यक्ति बहुत तेज हँसने लगा। मैंने हसने का कारण पूछा।

उस व्यक्ति का जवाब सुनकर मैं बहुत अचंभित रह गया। जवाब था कि-

महाराज रास्ते कही नहीं जाते वह वही रहते है, बल्कि हमे उस रास्ते पर चलकर अपनी मंज़िल तक पहुँचना होता है।

आपको यह पूछना चाहिए कि मैं किस रास्ते से आगरा पहुँच जाऊँगा?

ऐसा जवाब कोई बुद्धिमान व्यक्ति ही दे सकता था। मैं उस व्यक्ति से बहुत प्रभावित हुआ।

उस आदमी से उसका नाम और काम पूछा। वह बताया कि उसका नाम महेश दास है और वह वहाँ के महाराज श्री राम चरण का मंत्री है।

फिर उसके कहे अनुसार मैंने पूछा- मुझे आगरा जाने के लिए किस रास्ते पर चलना पड़ेगा?

महाराज ने अपनी अंगुठी अनजान व्यक्ति को दे दिया

वह महेश दास बोले- महाराज जब भी कही भटकने की स्थिति बने और कई रास्तों में दुविधा उत्पन हो,

तो हमे सभी रास्तों को ध्यान से देखकर यह पता करना चाहिए कि किस रास्ते पर सबसे अधिक कदमों के निशान है।

अक्सर वही रास्ते सब से सुरक्षित होते है। इस हिसाब से मुझे दाहिना रास्ता सही लग रहा है।

ऐसा तार्किक जवाब सुनकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ। मैंने उन्हें अपनी सबसे पसंदीदा अंगूठी निशानी के तौर पर देते हुए कहाँ-

आप जैसे बुद्धिमान व्यक्ति की मुझे आवश्यकता है

सैनिकों ने महाराज को ढूढ़ लिया

आप जब चाहे यह अंगूठी निशानी के तौर पर लेकर मेरे दरबार आ सकते है मैं आपको अपने रत्नों में शामिल कर मंत्री पद देना चाहता हूँ।

महेश दास थोड़ी देर सोच विचार कर बोले- महाराज, आपका प्रस्ताव बहुत अच्छा है|

लेकिन अभी मैं अपने राजा को छोड़ नहीं सकता। लेकिन भविष्य में जरुर आऊँगा।

इतने में अकबर के सैनिंक भी उन्हें ढूढ़ते हुए आ गये। अकबर अपने सैनिकों के साथ आगरा आ गए और महेश दास अपने घर चले गये।

महेश पहुंचे महाराज अकबर के महल में

समय बीतता रहा महेश दास के सभी मित्र दूसरे राज्यों में जाकर बसने लगे थे।

अब वह बिलकुल अकेले पड़ गए थे। इसलिए उन्होंने राजा अकबर के दरबार में आने का फैसला किया।

अपना कुछ ज़रूरी सामान और वह अंगूठी जो अकबर ने उन्हें दी थी, उसे लेकर वह अकबर के महल पहुँचे।

लेकिन महल के द्वार पर ही उन्हें एक सैनिक ने रोक लिया। बोला- कहाँ से आए हो? किससे मिलना है।

सैनिक ने महल के अंदर जानें से मना किया

महेश दास अपना परिचय बताते हुए बताए कि किस प्रकार उन्होंने दो वर्ष पहले महाराज की मदद की थी इसलिए महाराज ने मुझे बुलाया था।

उसके बाद वह नायब और बेश क़ीमती अंगूठी दिखाई। अंगूठी देखते ही सैनिक सोचा-

यह तो सचमुच महाराज की सबसे प्रिय अंगूठी है, जरुर महाराज इस आदमी से बहुत प्रसन्न हुए होंगे और इसे इनाम देने के लिए बुलाये होंगे।

महेश ने सैनिक को अंगूठी दिखायी

ललचीं सिपाही बोला- मैं तुम्हें अंदर जाने दूँगा लेकिन एक शर्त पर! आज जो भी इनाम में पाओगे उसका आधा हिस्सा मुझे दोगे।

महेश दास हंसते हुए बोले- तुम मुझे बस जाने दो मैं वचन देता हूँ ईनाम में जो भी मिलेगा पूरा तुम्हें दे दूँगा।

इतना सुनकर सैनिक खुश होकर उन्हें अंदर जाने दिया।

महाराज अकबर ने महेश दास को पहचान लिया

महेश दास को देखते ही अकबर को उन्हें पहचानने में देर नहीं लगी। महाराज ने महेश दास का स्वागत किया।

जल्दी ही महेश दास ने दरबारियों को अपनी हाज़िर जवाबी से मोह लिया। जिससे दरबार का माहौल ख़ुशनुमा हो गया।

अकबर बोले- जैसा मैंने कहाँ था यदि आप मेरे दरबार आये तो आपको अपने रत्नों में शामिल कर मंत्री पद दूँगा।

इसलिए आज से आप मेरे मंत्री है और महेश दास की बुद्धिमत्ता को देखते हुए महाराज ने उन्हें बीरबल नाम से संबोधित किया।

तब से महेश दास बीरबल नाम से प्रचलित हुए। फिर महाराज बोले- बताइए आपको इनाम में क्या चाहिए?

अकबर से बीरबल ने इनाम की माँग किये

बीरबल ने इनाम में सौ कोड़ों की माँग की। उनकी माँग सुनकर सभी राज दरबारी अचंभित हो उठे|

लेकिन राजा अकबर जानते थे उनकी ऐसी माँग की ज़रूर कोई ख़ास वजह होगी। इसलिए वह बोले- मैं जानता हूँ|

आपकी इस माँग के पीछे ज़रूर कोई गहरी बात होगी। आप मुझे खुल कर बताइए आपने ऐसा क्यों किया?

बीरबल ने सारी बातें विस्तार से बताई कि किस प्रकार पहरेदार ने अंदर जाने देने के लिए उनसे रिस्वत की माँग की।

उनकी बात सुनकर अकबर बहुत क्रोधित हुए।

महेश दास से कैसे बीरबल बने

उस सैनिक को दरबार में पेश किया गया। इनाम स्वरूप उसे सौ कोड़े मारे गये और उसे रिस्वत माँगने के जुर्म में काल कोठरी में बंद कर दिया गया।

अकबर ने सबको बताया कि तब से यह महेश दास से बीरबल बनकर उनकी सभा का मान बढ़ा रहे है।

सभी ने तालियाँ बजकर एक बार फिर बीरबल का स्वागत किया।

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