बीरबल की खिचड़ी

बीरबल की खिचड़ी
बीरबल की खिचड़ी

एक बार अकबर और बीरबल दोनों राज्य के भ्रमण पर निकले थे। अपनी प्रजा को खुशहाल देख कर अकबर बोला- मेरे राज्य की जनता बहुत सुखी और ख़ुशहाल है।

इनके पास काम है, खाने के अनाज है पहनने के लिए कपड़े है और रहने के लिए घर है। किसी को कोई परेशानी नहीं है।

बीरबल उसकी बातों पर असहमति जताते हुए बोले- मुझे ऐसा नहीं लगता महाराज!

हमारी जनता इतनी भी खुशहाल नहीं है जितना आपको दिख रहा है। हमारी जनता में बहुत ग़रीबी है ज्यादातर लोगो के पास काम नहीं है।

यहाँ के बहुत से लोग थोड़े पैसे के लिए कठिन से कठिन काम करने के लिए तैयार हो जाएँगे।

अकबर और बीरबल भ्रमण करते समय

वे लोग ऐसे ही बहस करते करते एक नदी के पास गये। अकबर बिरबल की बातें सोचते हुए नदी के पानी में हाथ डाले।

ठंडियों का मौसम होने की वजह से वह पानी इतना ठंडा था कि अकबर को हाथ डालते ही बहुत ठंड का एहसास हुआ वह तुरंत अपना हाथ निकाल लिये।

बीरबल को झूठा साबित करने की कोशिश

तभी बीरबल को झूठा साबित करने और ख़ुद को सही साबित करने के लिए बीरबल से बोले-

यदि हमारे राज्य का कोई भी व्यक्ति इस नदी में छाती तक पानी में रात भर खड़ा रह गया तो उसे मैं एक हज़ार सोने की मुहरें इनाम में दूँगा।

बीरबल समझ गया कि महाराज ऐसा क्यों कर रहे है। बीरबल बोला ठीक है मैं इसकी घोषणा करवा देता हूँ।

उनसे थोड़ी ही दूर पर खड़ा एक बूढ़ा व्यक्ति उनकी बातें सुन रहा था। उसे अपनी बेटी की शादी के लिए धन की आवश्यकता थी।

एक हज़ार सोने की मुहरों के लिए वह इस कसौटी से गुजरने का सोचा।

बूढ़े व्यक्ति की मजबूरी

वह अकबर के पास आकर बोला- महाराज! मैं यह काम करने के लिए तैयार हूँ। मुझे मेरी बेटी की शादी करनी है।

बीरबल उस बूढ़े को देखकर बोले- बाबा आप बहुत बुजुर्ग है और नदी का पानी बहुत ठंडा है आप यह काम नहीं कर पायेंगे।

यदि आपको धन की अधिक आवश्यकता है तो महाराज से मदद माँग लीजिए लेकिन यह काम आप मत करिए आपको जान का ख़तरा हो सकता है।

अकबर भी बीरबल का समर्थन कर वही बात बोले लेकिन वह बूढ़ा आदमी बहुत खुद्दार था।

वह बोला- महाराज मैंने जीवन में हमेशा मेहनत कर ही धन कमाया है किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया आप मेरी चिंता न करे मैं इस कसौटी के लिए तैयार हूँ।

कसौटी का समय सुरु

अकबर बीरबल और अपने कुछ अन्य मंत्रियों को शक्त आदेश दिया कि सभी नियमों का शख़्ती से पालन होना चाहिए।

सूरज अस्त हो चुका था कसौटी का समय हुआ, कड़ी पहरेदारी में वह बूढ़ा आदमी गले तक गहराई में जाकर वह बिना कपड़ों के खड़ा हो गया।

ठंडी अपने चरम पर थी और पानी भी बहुत ठंडा। रात के समय वह पानी बहुत ठंडा हो गया था ऊपर से तेज ठंडी हवाएँ चल रही थी।

लेकिन वह बूढ़ा आदमी पैसों की आश में पूरी रात खड़ा रहा। रात बीत गई वह आदमी टस से मस नहीं हुआ।

अगली सुबह दरबार में मंत्रियों ने बताया कि सभी नियमों का पालन करते हुए यह व्यक्ति पूरी रात पानी में खड़ा रहा।

यह सुन कर अकबर बहुत प्रभावित हुए। पूरी सभा के सामने उससे पूछे कि तुमने यह कैसे किया?

वह बूढ़ा आदमी हाथ जोड़ कर बोला- महाराज नदी के इस पार आपके महल में एक दीपक जल रहा था, मैं उसी दीपक के सहारे पूरी रात बिताया।

अकबर की चतुराई

मैं मन ही मन ऐसा सोच रहा था कि वह दीपक मुझे गर्मी प्रदान कर रहा है।

उसकी यह बात सुनकर अकबर तुरंत बोले- तुम रात भर उस ठंडे पानी में अपने समर्थ की वजह से नहीं बल्कि उस दीपक की तपन की वजह से पानी में खड़े रह पाये।

इसलिए तुम इनाम के हक़दार नहीं हो। उस बूढ़े आदमी को डाँट वहाँ से भगा दिया।

असल में अकबर ख़ुद को सही साबित करने के लिए यह फैसला लिये। यह बात बीरबल को तीर की तरह चुभी।

वह अपने तरीक़े से राजा अकबर को समझाने का निर्णय किए।

बीरबल ने अकबर को सबक सिखाया

कई दिनों बाद राजा अकबर और बीरबल अपने राज्य से दूर शिकार पर गये। वहाँ अकबर को भूख लगी उन्होंने भोजन की इच्छा ज़ाहिर की।

बीरबल तैयारियों में जुट गये। उन्होंने आग लगाकर एक मटके में खिचड़ी पकने लिए रखी लेकिन मटका इतनी ऊचाई पर था कि आग की लपट वहाँ तक नहीं पहुँच रही थी।

यह देख कर अकबर बोले- यह कैसी नादानी कर रहे हो? मटके तक आग की लपट नहीं पहुँच रही है तो खिचड़ी कैसे पकेगी?

बीरबल उन्हें सांत्वना देते हुए बोले- महाराज आप फ़िक्र न करे खिचड़ी पक जाएगी। सभी लोग इंतज़ार करने लगे।

अकबर के सब्र का बांध टूटा

दोपहर से शाम हो गई शाम से रात हो गई लगातार आग के जलने के बाद भी खिचड़ी नहीं पकी।

यह देख अकबर के सब्र का बांध टूटा वह बोले- बीरबल आप यह कैसी नादानी कर रहे है?

उतनी उचाई पर मौजूद मटके में खिचड़ी नहीं पकेगी क्योकि आग की गर्मी वहाँ तक नहीं पहुँचेगी। जब गर्मी वहाँ तक नहीं पहुँचेगी तो खिचड़ी कैसे पकेगी?

बीरबल जवाब में बोले- ठीक उसी प्रकार महाराज, जैसे आपके महल में मौजूद उस छोटे दीपक से उस बूढ़े आदमी को गर्मी मिल रही थी।

अकबर को हुआ गलती का ऐहसास

बीरबल की बात सुनते ही अकबर को अपनी गलती का एहसास हुआ। वह तुरंत महल जाकर सभा बुलाये।

उस बूढ़े आदमी को बुलाकर उससे माफ़ी माँगते हुए जो इनाम की रक़म तय हुई थी उसे एक हज़ार सोने की मुहरे दी गई।

अकबर बीरबल को गले लगाकर धन्यवाद देते हुए पूरी सभा के सामने उनके समझाने के तरीक़े की ख़ूब प्रशंसा की।

कहानी की सीख-

कभी किसी के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए न ही किसी के हक़ को छीनना चाहिए।

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