ईमानदार लकड़हारा

ईमानदार लकड़हारा

एक गाँव में दो भाई सुरेंद्र और महेंद्र रहते थें। सुरेंद्र बहुत कपटी और बेईमान था।

पिता के गुजरने के बाद सुरेंद्र छल से महेंद्र का सारा खेत अपने नाम करा लिया था और ठाट बाठ से रहता था।

वही महेंद्र की ज़िन्दगी बहुत कठिन थी। वह और उसकी पत्नी एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे। खाने खाने के लाले पड़े थे।

ईमानदार लकड़हारा

महेंद्र बहुत मेहनती, ईमानदार और परोपकारी था। दिन भर काम करता था तब उन दोनों को शाम का भोजन नसीब होता था।

महेंद्र की पत्नी उसे हमेशा कोसती रहती थी। भोला भाला महेंद्र चुपचाप सब सुन लेता था।

एक दिन महेंद्र एक वक्त का भोजन और कुल्हाड़ी लेकर लकड़ी काटने जंगल में निकला रास्ते में उसे भिखारी मिला। भिखारी बहुत भूखा था।

भिखारी ने महेंद्र से कुछ खाने के लिए माँगा। दयालु महेंद्र को दया आ गई। उसने अपना भोजन भिखारी को दे दिया।

फिर वो आगे बढ़ गया। थोड़ी दूर जाते ही देखा कि एक लकड़हारा तेज तेज रो रहा था। महेंद्र ने उसके दुःख का कारण पूछा।

लकड़हारा बताया कि उसके पास इकलौती कुल्हाड़ी थी जो लकड़ी काटते काटते टूट गई है अब वह कैसे लकड़ी काटेगा।

अगर वह लकड़ी नहीं काटेगा तो उसके परिवार का भरण पोषण कैसे होगा। इतना कहते कहते दोबारा बिलखने लगा।

लकड़हारे का दुःख महेंद्र से देखा नहीं गया। उसने उसको चुप करने के लिए अपनी कुल्हाड़ी दे दी।

सोचा मैं कुछ और काम कर के आज का काम चला लूँगा।

महेंद्र आगे बढ़ा थोड़ी दूर जाते ही उसने फिर देखा कि एक बहुत कमजोर आदमी ठंड से काँप रहा था।

महेंद्र ने अपने सारे कपड़े निकाल उसे दे दिया। और बोला मैं तो अभी हट्टा कट्टा हूँ मुझे इतनी ठंड नहीं लग रही है तुम इन्हें पहन लो।

धीरे धीरे शाम हो चली थी। महेंद्र ख़ाली हाथ ही वापस घर लौट गया। उसे ख़ाली हाथ देख उसकी पत्नी ने पूछा, ये क्या हाल बना कर लौटे हो?

महेंद्र दिनभर की कहानी बताया। सुनकर उसकी पत्नी आग बबूला हो उठी।

अपने पति को धमकाते हुए बोली अगर तुम कल से कोई काम नहीं करोगे तो मैं ये घर छोड़ कर चली जाऊँगी। फिर तुम दान पुण्य करते रहना।

महेंद्र अपने पत्नी को समझाने की बहुत कोशिश किया लेकिन उसकी एक न सुनी।

लोभी सुरेंद्र सारी बातें छिप कर सुन रहा था। मन ही मन खुश हो रहा था। अपनी पत्नी से बोला-लगता है अब महेंद्र का घर कब्जा करने का मौक़ा मिल जाएगा।

महेंद्र की पत्नी घर छोड़ कर चली जाएगी। मैं महेंद्र से किसी बहाने से उसकी बची खुची ज़मीन भी अपने नाम करा लूँगा।

अगले दिन बेचारा महेंद्र सुबह सुबह बिना कुछ खाये पिये कुल्हाड़ी लेकर जंगल गया। बहुत मेहनत कर ढेर सारी लकड़ियाँ काटा।

शहर जाकर उन्हें बेचा। उसे उन लकड़ियों की अच्छी क़ीमत मिली।

सारे पैसो की एक पोटली कमर में बाध कर वापस घर की तरफ़ चल दिया। भूखे पेट दिन भर काम करने की वजह से उसे बहुत थकान महसूस हो रही थी।

रास्ते में उसने एक तालाब देखा। सोचा- तालाब में हाथ पैर धो कर पेड़ की छाँव में थोड़ी देर आराम करने के बाद घर जाएगा।

तालाब के पास पहुँचा हाथ पैर धोने के लिए थोड़ा अंदर गया और फिसल गया। उसके पैसे की पोटली तालाब में ही गिर गई।

तालाब इतना गहरा था कि उसमे पोटली ढूढ़ना बहुत मुश्किल था। अब महेंद्र बहुत दुःखी हुआ।

वही बैठ कर रोने लगा। रोते रोते थकान के कारण उसे नींद आ गई और वह सो गया।

दिन ढलने के बाद एक साधु महाराज आये और महेंद्र को नींद से जगाया और बोले – बेटा मैं देख रहा हूँ तुम बहुत देर से यही सो रहे हो, क्या बात हैं? घर नहीं जाना है क्या?

परेशान महेंद्र साधु बाबा से अपना सारा दुःखड़ा सुनाया। और बोला बाबा जी अगर मैं ख़ाली हाथ घर गया तो मेरी पत्नी मुझे छोड़ कर चली जायेगी।

मैं तो पूरी मेहनत और ईमानदारी से अपना काम करता हूँ फिर भी पता नहीं क्यों मेरे साथ हमेशा बुरा हो जाता हैं।

अपनी बात कहते कहते उसकी आँखें नम हो गई। साधु बाबा उसको धैर्य रखने को बोलें और एक पोटली देते हुए बोले बेटा तुम परेशान मत हो मैंने तुम्हारी पोटली ढूढ़ ली है।

फिर साधु बाबा पोटली महेंद्र को दियें, महेंद्र ने पोटली खोली तो उसमे सोने के ढेर सारे सिक्के देख कर निराश हो गया।

उसने पोटली बाबा को वापस करते हुए बोला- बाबा ये मेरी पोटली नहीं है।

बाबा ने दूसरी पोटली दी जिसमे चाँदी के सिक्के, ढेर सारे सिक्के थे। महेंद्र फिर से वापस कर दिया।

फिर बाबा ने तीसरी पोटली दी तब महेंद्र बोला बाबा जी मैं पहले से ही परेशान हूँ आप मुझे और परेशान मत करिए ये सारी पोटलियाँ मेरी नहीं है।

बाबा मुस्कुराते हुए बोले बेटा इसे खोल कर देखो। जब उसने पोटली खोली सच में इस बार ये उसी की पोटली थी।

महेंद्र ख़ुशी के मारे झूमने लगा। बाबा का पैर छुआ और धन्यवाद दिया।

बाबा जी ने बोला- महेंद्र तुम बहुत ईमानदार हो मैं बहुत प्रसन्न हुआ। ये तीनों पोटली अब तुम्हारी हैं।

अब तुम्हें जीवन में कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होगी। जीवन में ऐसे ही ईमानदारी रखना।

बेसहारा की मदद करना तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं होगी।

इतना आशीर्वाद देने के बाद बाबा जी अदृश्य हो गये। महेंद्र समझ गया यह कोई साधारण साधु नहीं थे ये ज़रूर भगवान का रूप थे।

महेंद्र घर पहुँच कर सारी बातें अपनी पत्नी से बताया उसकी पत्नी ने माफ़ी माँगी।

और बोली मैं आपको हमेशा बुरा भला कहती रही, आप का मन बहुत साफ़ है।

मुझे माफ़ कर दीजिए। सुरेंद्र भी छुप कर सारी बात सुन रहा था। उसे भी अपनी गलती का एहसास हुआ।

उसने भी महेंद्र से माफ़ी माँगी और उसकी सारी ज़मीन जो हड़प लिया था वापस दे दिया और सच्चाई के रास्ते पर चलने का फ़ैसला किया।

अब दोनों भाई साथ रहते और मेहनत करने लगे। दोनों ने मिल कर खूब तरक़्क़ी की।
“कर भला तो हो भला”

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