स्वर्ग का रास्ता

स्वर्ग का रास्ता

रामपुर गाँव में राधा अपने पुत्र राम और पुत्री रेणुका के साथ रहती थी। राम जब तीन साल का था तभी उसके पिता की मृत्यु हो गई थी।

लेकिन उसकी माँ कभी पिता की कमी महसूस नहीं होने दी। वह दोनों बच्चों से बहुत प्यार करती थी।

राधा हर रात राम को कहानी सुनाती थी। वह कहानी सुनते सुनते सो जाता था।

जब तक वह कहानी नहीं सुनता था उसे नींद नहीं आती थी।

ऐसे एक रात राम अपनी माँ से बोला- माँ तुम हर रात मुझे एक ही कहानी सुनाती हो आज कोई नई कहानी सुनाओ।

राणुका बोली- पहले तुम बताओ कि क्या आज फिर तुमने कुत्ते के बच्चों को परेशान किया या मारा?

राम बोला- हाँ, वे मुझे देखते ही काटने दौड़ पड़े। वैसे भी उन्हें परेशान करने में मुझे बहुत मज़ा आता है।

रेणुका बोली-अगर तुम ऐसे ही उनको परेशान करोगे तो नर्क में जाओगे।

राम नर्क शब्द पहले नहीं सुना था वह आश्चर्य चकित होकर पूछा- नर्क क्या होता है?

माँ बोली- बेटा जो इंसान बुरे कर्म करता है उसे भगवान नर्क में भेज देते है। वहाँ का जीवन बहुत कठिन होता है

और वहाँ सभी पापों की बहुत कठिन सजा मिलती है।

लेकिन अगर तुम अच्छे कर्म करोगे तो स्वर्ग का रास्ता तुम्हारे लिए खुल जाएगा।

स्वर्ग का रास्ता

स्वर्ग बहुत सुंदर है और वहाँ का जीवन बहुत सरल और सुखमय होता है।

माँ की बात पूरी होने से पहले ही राम बोला- माँ स्वर्ग का रास्ता कहाँ है?

माँ बोली- पुण्य ही मात्र स्वर्ग का रास्ता है। राम दोबारा पूछा- माँ पुण्य क्या होता है?

मैं भी पुण्य करूँगा और स्वर्ग जाऊँगा। माँ बोली-सदा सत्य बोलना चाहिए, झूठ नहीं बोलना चाहिए,

किसी को दुःख न पहुँचाना, ज़रूरत मंद की सहायता करना, अपने कमाए हुए धन का कुछ हिस्सा ग़रीबों में दान करना। यही सब पुण्य का काम है।

तुम्हारे पिता जी पुण्य करने की वजह से ही आज स्वर्ग में निवास करते है।

अपने पिता का नाम सुनकर राम की उत्सुकता बढ़ गई वह बोला- माँ पिताजी कैसे पुण्य कमाते थे?

माँ बोली- चलो मैं आज तुम्हें तुम्हारे पिताजी कि एक कहानी सुनाती हूँ।

तुम्हारे पिता राजा के दरबार में काम करते थे। उनका स्वभाव बहुत ही सरल था।

वह हमेशा लोगो की मदद करते थे। वह हर रोज़ नदी पार कर राजा के दरबार जाया करते थे।

एक दिन वह नदी पार करने के लिए किनारे पर नाव पर बैठे थे।

नाव में कुल पाँच लोगो की जगह थी लेकिन उसमे चार लोग ही सवार थे।

तभी वहाँ एक व्यापारी दो भारी भारी बोरियों में सामान भर कर लाया।

नाव चालक बोला- सेठ जी आपको जाने के लिए दूसरी नाव की आवश्यकता होगी, क्योकि आपके सामान का वजन बहुत अधिक है

अगर आप अपने सामान के साथ नाव पर बैठ गये तो नाव डूब सकती है।

सेठ बोला ठीक है तुम जाओ सबको छोड़ कर आओ फिर मुझे ले जाना।

अभी वे लोग बातें ही कर रहे थे कि हल्की हल्की बारिश होने लगी।

सेठ बोला- मुझे भी अपने साथ ले चलो नहीं तो मेरा लाखों का नुक़सान हो जाएगा। नाविक भी सोचा यह ठीक ही बोल रहा है

अगर इसे जल्दी से किनारे नहीं ले गया तो सारा सामान बर्बाद हो जाएगा।

इसलिए जल्दी जल्दी सारा सामान नाव पर रख सेठ भी उसी नाव में बैठ गया।

नाव अभी नदी के बीचों बीच ही पहुची थी कि मूसलाधार बारिस होने लगी नाव में पानी भरने लगा।

नाव में पहले से ही अधिक वजन था उपर से बारिश का पानी भी भरने लगा और हवा भी बहुत तेज़ थी।

देखते ही देखते नाव डूबने लगी नाव पर सवार सभी यात्री अपनी जान बचाने के लिए नदी में कूद पड़े।

तुम्हारे पिता जी अपनी जान दाव पर लगा कर सबको सहारा देकर बारी बारी किनारे पहुँचा रहे थे।

आख़िरी आदमी को नदी पार करा रहे थे तभी पानी की एक तेज़ लहर आई और उनको बहा ले गई और नदी में डूबने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई।

लेकिन मरने से पहले बिना किसी स्वार्थ के अपनी जान की परवाह किए बग़ैर वह सभी की जान बचा चुके थे।

उनके इसी नेक इरादे की वजह से आज वह स्वर्ग में है।

इसीलिए कहती हूँ तुम किसी को बिना वजह परेशान मत किया करो अपने पिता की तरह नेक दिल इंसान बनो

तभी तुम्हें भी स्वर्ग में जगह मिलेगी और तुम अपने पिता से वहाँ मिल सकोगे।

राम को उसकी माँ की बातें समझ में आ गई थी वह कभी भी किसको परेशान नहीं करता था। छोटी सी आयु में ही वह विशेष इंसान बन चुका था।

लोग के लिए एक मिसाल बन चुका था। वह बिना स्वार्थ ज़रूरतमंदों की सहायता करता था।

सभी जीवों से प्रेम करता था। अपने कमाए हुए धन का कुछ हिस्सा वह ग़रीबों में बाट देता था। ऐसा करने से उसे सुख की अनुभूति होती थी।

मानो वह स्वर्ग में निवास कर रहा हो।

कहानी की सीख-

स्वर्ग और नर्क सभी इसी धरती पर है और उसकी अनुभूति भी हमे यही हो जाती है।

अच्छे कर्मो का सुख ही स्वर्ग, तथा बुरे कर्मों के परिणाम ही नर्क के समान है।

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