श्राप

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बहुत पुरानी बात है दानव कुल का राजा वामसुर रामगढ़ राज्य में राज करता था।

वह बहुत पराक्रमी के साथ साथ बहुत ही क्रूर और निर्दयी था। उसके राज्य की जनता उससे बहुत परेशान थी।

राज्य में रहने वाले लोगो के पास धन उगाही का कोई साधन नहीं था।

क्योकि वामसुर का ध्यान उसकी प्रजा पर नहीं था। उसका पूरा ध्यान नीलमणि पर था। जिसे पकड़ वह अमर होना चाहता था।

उसने अपने सभी सैनिकों को उसकी खोज करने के लिए चारो दिशाओं में लगा रखा था।

बहुत प्रयासों के बाद भी वह नीलमणि का पता नहीं लगा पाया।

उसके एक सलाहकार ने उसे बताया कि नीलमणि का पता दानव गुरु शंकराचार्य बता सकते है।

वामसुर दानव गुरु संकराचार्य के पास गया और प्रणाम कर बोला- गुरुदेव मैं अपने जीवन में बहुत कुछ कमाया लेकिन अब अमर होने की इच्छा है।

इस इच्छा को पूरी करने में आप मेरी मदद कर सकते है। कृपा कर आप मुझे नीलमणि का पता बता दीजिए।

संकराचार्य बोले- उस मणि को कोई और नहीं चुन सकता वह मणि खुद ब खुद लोगो को चुनती है।

यदि कोई ज़बरदस्ती उसे अपनाने की कोशिश करता है तो वह उसका पूरा खानदान नष्ट कर देती है,

और सिर्फ नष्ट ही नहीं करती उसे उसके अगले ग्यारह जन्मों तक उसकी सजा भुगतनी पड़ती है।

ग्यारह जन्मों तक फ़क़ीर की ज़िंदगी जीनी पड़ती है। उन्होंने उसे चेतावनी देते हुए कहाँ- तुम उसके बारे में सोचना छोड़ दो तुम्हारे लिए यही बेहतर होगा।

उनकी बातें सुनकर वामसुर क्रोधित हो उठा और बोला- आप बस मुझे उसका पता बताइए मैं अपनी शक्तिओं से उसे क़ाबू कर लूँगा।

संकराचार्य के लाख समझाने पर भी वह नहीं समझा अंत में उन्हें बताना ही पड़ा।

उन्होंने बताया कि नीलमणि हिमालय की पहाड़ियो के बीच बसे कनकपुर राज्य के राजा मानसिंह के देखरेख में सुरक्षित है।

वामसुर अपनी पूरी फ़ौज लेकर कनकपुर पर हमला करने की तैयारी करने लगा।

उधर मानसिंह की सेहत ठीक नहीं थी। उन्होंने नीलमणि को सुरक्षित रखने के लिए एक विशेष क़िला बनाया था।

मानसिंह को वामसुर के बारे में पता था कि वह नीलमणि की तलाश में है।

कुछ ही दिनों बाद मानसिंह के गुप्तचरों ने बताया कि वामसूर की विशाल सेना उनके राज्य की तरफ़ बढ़ रही है।

मानसिंह अपनी सेना को आदेश दिये की वह राज्य का दरवाज़ा खोल कर रखे। दुश्मनों को अंदर आने दे क्योकि उन्हें पता था कि

जो कोई ग़लत मक़सद से नीलमणि को हाथ लगाएगा जल कर भस्म हो जाएगा।

वह नहीं चाहते थे कि उनके राज्य में जान माल का नुक़सान हो।

वह तुरंत नीलमणि के पास गये और प्रार्थना किए- हे नीलमणि मेरी सेहत ठीक नहीं है जिसकी वजह से सेना घबराई हुई है।

मेरे राज्य की रक्षा करना। इतना कह कर वह महल में चले गये और अपनी सेना से बोले- उस राक्षस को अंदर आने दे।

वामसूर राज्य का दरवाज़ा खुला हुआ देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। सोचा- मानसिंह को उसके आने की खबर नहीं है।

अंदर जाकर देखा तो सभी लोग अपने काम में व्यस्त थे। द्वार पर कोई पहरेदार भी नहीं थे।

वह पूरी सेना के साथ अंदर घुस गया उसे कोई नहीं रोका, इस बात पर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ

लेकिन सब काम आसानी से हो रहा था तो उसे लगा राजा मानसिंह उससे डर गया है।

वह सीधा नीलमणि के पास गया जिसे देख कर उसकी आँखें चमक उठी। जिस वस्तु को इतने वर्षों से ढूढ़ रहा था

वह उसे इतनी आसानी से मिल सकती है कभी सोचा नहीं था।

उसकी पूरी सेना बहुत खुश थी। वह जैसे ही नीलमणि को हाथ में उठाया उसका शरीर ऐसे काँपने लगा जैसे बहुत बड़ा बीजली का झटका लगा हो।

देखते ही देखते ही वामसुर जल कर राख हो गया। उसकी ऐसी मौत देख उसकी सेना में हड़बड़ी मच गई सब वहाँ से अपनी जान बचा कर भागे।

वामसूर आज भी उस पाप को भुगत रहा है। लोगो से भीख माँग माँग कर अपना गुजरा करता है।

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