गरीब का दशहरा

गरीब का दशहरा

एक गाँव में लक्ष्मण और उसकी पत्नी गीता रहते थे। वह दोनों अपनी जीविका चलाने हेतु खिलौने बनाकर उन्हें बाज़ार में बेचते थे।

उनके हाथ में बहुत गुण था। उनके खिलौने बहुत अच्छे होते थे। मिट्टी की मूर्तियाँ तो एक असली लगती थी मानो अभी बोल देंगी।

उनकी सबसे अच्छी कमाई त्योहारों के समय होती थी। जब भी कोई त्योहार आने वाला होता था तब वे पहले से उसकी तैयारी में जुट जाते थे।

दशहरा का त्योहार आने वाला था, वे एक महीना पहले से ही खिलौने और मूर्तियाँ बनाने में जुट गये।

गरीब का दशहरा

दिन रात एक कर उन्हेंने सैकडो खिलौने तैयार कर दिये। हर वर्ष की भांति दशहरे से तीन दिन पहले लक्ष्मण खिलानों की टोकरी लेकर पास वाले मंदिर जहां रामलीला होती थी वहाँ पहुँचा।

पहुँच कर देखा कि हर वर्ष वह जहां बैठ कर खिलौने बेचा करता था वहाँ पहले से ही एक बहुत बड़ी दुकान थी।

उस बड़ी दुकान मे अनेकों प्रकार के खिलौने थे। उस दुकान में शहर के कुछ लोग बैठ कर खिलौने बेच रहे थे।

उस दुकान के मुक़ाबले उसकी टोकरी के खिलौने बहुत कम थे। वह सोच में पड़ गया कि अब वह क्या करे?

इस बड़ी दुकान के सामने उसके खिलौने कौन ख़रीदेगा? उस दुकान में बहुत विविधता थी लोग बड़े चाव से उनके खिलौने देख रहे थे और ख़रीद रहे थे।

लक्ष्मण सोचा- अगर उसकी क़िस्मत में पैसे कमाना रहेगा तो उसके खिलौने अवश्य बिकेंगे। यही सोच कर वह दुकान के बग़ल में अपनी टोकरी रख कर ज़मीन पर बैठ कर लोगो को खिलौने ख़रीदने के लिए बुलाने लगा।

उस दुकान का मालिक। लक्ष्मण को बग़ल में बैठा देख उसके पास आया और बोला- अपनी टोकरी लेकर यह से भाग जाओ, इस जगह पर सिर्फ़ मैं दुकान लगा सकता हूँ क्योकि मैंने इस जगह का किराया दिया है।

तुम इस मंदिर में अपनी दुकान नहीं लगा सकते। उसकी असभ्य बातें सुनकर लक्ष्मण बोला- भाई मैं इस जगह पर वर्षों से दुकान लगाता आया हूँ।

इस बार तुम आ गये लेकिन मैंने तो तुम्हें मना नहीं किया। मैं गरीब आदमी हूँ अगर दशहरा में मेरे खिलौने नहीं बिके तो मैं बर्बाद हो जाऊँगा।

कृपा कर मुझे खिलौने बेचने दो। दुकान का मालिक बोला- क्या मैं तुम्हें बेवक़ूफ़ दिखता हूँ जो तुम्हें यहाँ बैठा कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारूँगा?

वह तेज आवाज में बोला- चले जाओ यहाँ से नहीं तो तुम्हारी टोकरी उठा कर फ़ेक दूँगा।

बेचारा लक्ष्मण बहुत निराश हुआ। वह रोते रोते घर की तरफ़ चल दिया। वह सोच रहा था कि यदि वह मंदिर के पास खिलौने नहीं बेच पाया तो और कही उसके खिलौने नहीं बिकेंगे।

वह इन्ही ख़यालों में इतना खो गया कि रास्ते पर उसका ध्यान नहीं था इसलिए सामने से आ रही एक मोटर गाड़ी से टक्कर लग गया।

वह ज़मीन पर गिर गया उसके सारे खिलौने टूट कर वही बिखर गये। लक्ष्मण बुरी तरह चोटिल हो गया।

वहाँ के लोगो उसे उठाकर पास के अस्पताल में इलाज कराया। गीता को इस घटना की जानकारी होते ही वह भागी भागी अस्पताल आई।

लक्ष्मण के सिर में चोट आई थी। दवा पट्टी करा कर दोनों घर चले गये। घर जाकर लक्ष्मण उससे सारी बात बताया कि अब मुस्किल से ही उनके खिलौने बिक पायेंगे।

उसकी बात सुनकर गीता भी बहुत दुःखी हुई। वह बोली- आप अभी उसके बारे में मत सोचो पहले पूरी तरह ठीक हो जाओ, मैं कल खिलाने लेकर जाऊँगी और मंदिर के बाहर ही बैठ कर बेचूँगी।

अगले दिन गीता कुछ खिलौने टोकरी में भर कर मंदिर के बाहर बेचने बैठ गई वह चिल्ला चिल्ला कर लोगो को बुलाने लगी।

लेकिन कोई भी उसके खिलौने नहीं ख़रीद रहा था। सब लोग उस बड़ी दुकान से ही खिलौने ख़रीद रहे थे।

लेकिन कहते है न कि सोने की परख सिर्फ़ सुनार को होती है उसी प्रकार उसकी आवाज सुनकर सूट बूट पहना एक आदमी उसके पास आया।

उसे गीता के हाथों से बनाये खिलौने बहुत पसंद आये। वह बोला- मुझे तुम्हारे खिलौने बहुत पसंद आये।

तुम्हारी मूर्तियाँ तो बहुत सुंदर लग रही है। मुझे कुछ खिलौने चाहिए। असल में वह व्यक्ति एक छोटे बच्चों की सेवा करने वाली संस्था का मालिक था।

उसकी संस्था गरीब बच्चो की मदद करती थी इस दशहरा पर वो बच्चों को मुफ़्त में खिलौने बाँटना चाहते थे।

वह सज्जन व्यक्ति गीता से बोला- मुझे तुम्हारे हर खिलौनों की पचास पचास मद चाहिए। क्या तुम इतने खिलौने दे पाओगी?

उसकी बातें सुन कर गीता की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा वह बोली- अवश्य दूँगी आप मुझे बस दो दिनों की मोहल्लत दीजिए मैं उन्हें तैयार कर यही ले आऊँगी।

वह व्यक्ति गीता को अग्रिम पचास हज़ार रुपये दिया बाक़ी के पैसे खिलौने मिलने के बाद देने को कह कर चला गया।

गीता बहुत खुश हुई, वह तुरंत घर जाकर लक्ष्मण को यह ख़ुशख़बरी सुनाई। लक्ष्मण भी बहुत खुश हुआ।

माँग इतनी अधिक थी कि वे दोनों पूरी नहीं कर सकते थे। उन्होंने दस और लोगो को काम पर रख लिया और दो दिन के अंदर खिलौने तैयार कर दिये।

उन खिलौनों को एक बड़ी सी गाड़ी में भर कर मंदिर के पास गये जहां वह व्यक्ति पहले से ही उनके इंतज़ार में खड़ा था।

वह उन सभी खिलौनों की जाँच कर गीता के हाथ में बाक़ी के पचास हज़ार देकर बोला- तुम्हारे सभी खिलौने बहुत अच्छे है

मैं और लोगो को भी तुम्हारे खिलौने ख़रीदने के लिए भेजूँगा। वह सभी खिलौने लेकर चला गया।

लक्ष्मण और गीता दोनों की मेहनत रंग लाई। वह भगवान राम को धन्यवाद दिये और ख़ुशी ख़ुशी अपने घर चले गये।

कहानी की सीख-

त्योहारों में केवल बड़ी बड़ी चमकती दुकानों से ही नहीं बल्कि फुटपाथ पर बेचने वाले ग़रीब व्यापारियों से भी सामान ख़रीदना चाहिए।

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