इंसानियत और धर्म – एक कावड़ यात्रा ऐसा भी


एक गाँव में करीम नाम का आदमी रहता था। जाति से तो मुसलमान था लेकिन उसका मन शंकर जी की भक्ति में लग चुका था।

वह रोज़ सुबह शंकर जी की पूजा करने मंदिर जाता था। एक दिन सुबह सुबह करीम पूजा करके मंदिर से जैसे ही बाहर आया उसका मित्र वसीम बाहर मिल जाता है।

करीम को मंदिर से पूजा कर आता देख वसीम पूछता है- करीम भाई तुम मुसलमान होकर हिन्दुओं के भगवान शंकर की पूजा क्यों कर रहे हो? हम मुसलमानों को सिर्फ़ अल्लाह कि इबादत करनी चाहिए। तुम कहा इन भगवान के चक्कर में पड़ गये हो?

करीम बड़ी शालीनता से जवाब दिया- वसीम भाई अल्लाह, भगवान और ईशाह मसीह सब एक ही है। ये जाति धर्म इंसानों ने बनाया है भगवान ने नहीं।

भगवान एक ही है तुम्हें जिस रूप में पसंद आ जाये उनकी इबादत में लग जाओ। जाति और धर्म के नाम पर हम इंसानों को भेद-भाव नहीं रखना चाहिए।

करीम की ऐसी बातें सुनकर वसीम को ग़ुस्सा आ गया। बोला- तुम्हें मुसलमान होने के नाते अपने अल्लाह की इबादत करनी चाहिए। अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो सारे मुसलमान भाइयो से रिश्ता तोड़ लो और हिंदू बन जाओ, धिक्कार है तुम पर। आज से हमारी दोस्ती खत्म।

कुछ दिन पहले मैंने तुम्हें जो पैसे दिये थे अगर तुमने जल्दी ही वापस नहीं दिये तो मैं तुम्हारी गाय खोलकर ले जाऊँगा। फिर अपने शिव से गाय माँगते रहना। धमकी देकर वसीम ग़ुस्से में वहाँ से चला गया।

वसीम के पास कुछ काम नहीं था। वह पहले जहां काम करता था वह फैक्ट्री बंद हो चुकी थी और बहुत दिनों से उसे काम नहीं मिल रहा था। वह गाय का दूध बेचकर कैसे भी अपने परिवार का पेट पाल रहा था।

अगर वसीम उसकी गाय भी लेकर चला जाएगा फिर तो उसके पास खाने के लिये भी कुछ नहीं बचेगा।

करीम बहुत परेशान था तभी वहाँ पुजारी जी आये और उसे परेशान देख उसकी परेशानी का कारण पूछे- करीम ने सारी बात बताई और बोला- पुजारी जी वसीम अगर मेरी गाय लेकर चला जाएगा फिर तो मेरा परिवार भूखों मर जाएगा।

अब मैं क्या करूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मेरे पास पैसे भी नहीं है जो वसीम को दे दूँ। ना ही इस सावन की बरसात में कोई काम मिल रहा है। पुजारी जी ने उसे सुझाव देते हुए कहा- करीम तुम शिव जी के भक्त हो, शिव जी कभी किसी भक्त का बुरा नहीं करते है। तुम इस सावन में कावड़ यात्रा करो भगवान शिव तुम्हारी सारी मुरादें ज़रूर पूरा करेंगे।

उसी दिन करीम कावड़ यात्रा की तैयारी में लग गया। अगले दिन जब वह कावड़ यात्रा के लिये निकलने ही वाला था उसी क्षण उसने सोचा कि अपनी गाय को भी कावड़ यात्रा के लिए ले जाये।

अगर गाय उसके साथ रहेगी तो गाय की देखभाल भी हो जायेगी और रास्ते में उसके साथ चलने वाला साथी भी मिल जाएगा।

वह गाय को साथ लेकर कावड़ यात्रा पर निकल पड़ा। हरिद्वार पहुँचकर दो मटको में गंगा जल भर कर गाय के सींग पर लटका देता है और दो मटको में गंगा जल भरकर अपने कावड़ में लटकाकर घर को वापस चल देता है।

जंगल के रास्ते कुछ दूर आने के बाद उसे शेर के दहाड़ने की आवाज़ सुनाई देती है। वह डर जाता है। अगर शेर आ गया तो गाय को खा जाएगा।

यह सारी घटना भगवान शिव और पार्वती माता देखते रहते है। पार्वती माता शिव जी से बोलती है- हे प्रभु करीम आपका बहुत बड़ा भक्त है वह पूरी ईमानदारी और लगन से आपकी पूजा करता है। वह आज मुसीबत में है अगर आपने कुछ नहीं किया तो वह शेर उन दोनों को खा जाएगा और उसका विश्वास टूट जाएगा।

शिव जी मुस्कुराते हुए बोले- आप परेशान न हो उस शेर को करीम की परीक्षा लेने के लिए मैंने ही भेजा है। मुझे देखना है की करीम मुझ पर कितना विश्वास करता है।

उधर करीम के सामने शेर आ चुका रहता है। करीम मन ही मन सोचता है। कुछ भी हो जाए मैं अपनी गाय की रक्षा ज़रूर करूँगा।

उसने अपने हाथो में बड़ा सा डंडा ले लिया। शेर को भगाने लगा। मौक़े की तलाश में ही था शेर जैसे ही हमला करेगा वह डंडे से उसके सिर पर मारेगा। लेकिन तुरंत ही करीम को पुजारी जी की बातें याद आई उन्होंने बोला था कावड़ यात्रा के दौरान हिंसा नहीं करना चाहिए।

हर परिस्थिति में भोले बाबा पर विश्वास रखना चाहिए। करीम ने डंडा फ़ेक दिया। आँखें बंद कर भोले शंकर जी से की प्रार्थना करने लगा। “हे भोलेनाथ मेरी और मेरी गाय की रक्षा करना” शेर उनकी तरफ़ आगे बढ़ने लगता है। यह देखते हुए भी करीम हाथ जोड़ कर भगवान को याद करता रहता है।

जब शेर करीम के बिलकुल पास आ गया और हमला करने ही वाला था तभी स्वयं भोलेनाथ उनके बीच प्रकट हो गये। शेर उन्हें देखते ही वापस चला गया। करीम भोलेनाथ को सामने देख बहुत प्रसन्न हुआ उन्हें प्रणाम करते हुए बोला- आपके दर्शन पाकर मैं धन्य हो गया प्रभु। मुझे पूरा विश्वास था कि जो आपकी आराधना करता है आप अवश्य ही उसकी रक्षा करते है।

शिव जी ने कहा- करीम मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ माँगो तुम्हें क्या चाहिए?

करीम बोला- प्रभु मुझे आपके दर्शन प्राप्त हो गये जिससे मैं धन्य हो गया मेरा जीवन सफल हो गया। मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मैं बस यही चाहता हूँ की संसार में सब लोग मिल जुल कर रहे। जाति और धर्म के नाम पर लोगो के बीच भेद भाव न करे।

भोलेनाथ बहुत प्रसन्न हुए। उसे आशीर्वाद देकर चले गये। करीम वहाँ से ख़ुशी ख़ुशी मंदिर गया, भोलेनाथ को जल चढ़ाया और अपनी गाय के साथ वापस घर लौटा।

घर आते ही उसने देखा उसके घर में ढेर सारे मटकों में सोना चाँदी भरा हुआ था। जिन्हें देख वह बहुत ख़ुश हुआ। वह समझ गया था यह भोलेनाथ की कृपा से हुआ है। उसमे से थोड़ा धन अपने मित्र वसीम को देने गया और कावड़ यात्रा की सारी घटना उसको सुनाया। वसीम को अपनी गलती का एहसास हुआ। बोला- अब से वह जाति और धर्म के नाम पर भेद भाव नहीं करेगा। यह संदेश पूरे गाँव को मिल चुका था। पूरा गाँव मिलजुल कर रहने लगा।

कहानी की सीख- इंसानियत और मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है। जाति और धर्म के नाम पर हमे भेदभाव नहीं करना चाहिए। इंसान को अपने धर्म पर विश्वास और दूसरे धर्म की इज्जत करनी चाहिए।

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