बेटा बेटी में भेद भाव

बेटा बेटी में भेद भाव

रमेश और राधा के दो बच्चे थे। आरती बड़ी थी और रणवीर छोटा था। आरती स्कूल जाने लायक़ हो गई थी। रमेश ने उसका दाख़िला गाँव के ही छोटे से स्कूल में करा दिया। आरती बहुत मेहनती और पढ़ाई में बहुत होशियार थी। रोज़ समय से स्कूल जाती थी।

दो साल बाद जब रणवीर स्कूल जाने लायक़ हुआ तब रमेश राधा से बोला- राधा अब रणवीर भी स्कूल जाने लायक़ हो गया है। मैं सोच रहा था इसका दाख़िला शहर के सबसे अच्छे स्कूल में करवा दूँ।

राधा बोली- लेकिन वहाँ तो बहुत पैसे लगेंगे हम इतने पैसा कहा से लायेंगे? रमेश बोला- रणवीर हमारा इकलौता बेटा है और वही तो हमारे बुढ़ापे का सहारा है, उसको अच्छे स्कूल में पढ़ायेंगे तभी तो वो बड़ा आदमी बनेगा।

मैं कैसे भी मेहनत करके इसको अच्छे स्कूल में पढ़ाऊँगा। आरती, अपने माता – पिता की सारी बातें वही बैठ कर सुन रही थी। आरती बहुत खुश हो गई। आरती बोली- हाँ पिता जी मैं भी रणवीर के साथ उसी स्कूल में पढ़ूँगी दोनों साथ पढ़ने जाएँगे।

आरती की बातें सुनकर रमेश ग़ुस्से में बोला- तुम लड़की हो तुम्हें पढ़ा लिखा कर मैं क्या करूँगा? तुम थोड़े ही मेरा नाम रौशन करोगी। बेटियाँ पराई धन होती है। जहां पढ़ रही हो वही पढ़ो अगर नहीं पढ़ना हो तो भी कोई बात नहीं।

आरती रोने लगी और वहाँ से बाहर चली गई। रणवीर का दाख़िला शहर में हो गया वह रोज़ बस से स्कूल जाता था। रणवीर अच्छे से पढ़ाई करे उसके लिए रमेश ने अपने खर्चे बिलकुल कम कर दिये थे।

रोज़ सुबह रणवीर को उसकी माँ अच्छे से तैयार कर अच्छा भोजन देकर उसे स्कूल भेजती थी। वही आरती रोज़ ख़ुद से तैयार होकर रूखा सूखा खा कर स्कूल जाती थी।

बेटा बेटी में भेद भाव

एक दिन आरती समय से पहले ही तैयार होकर स्कूल जाने ही वाली थी, लेकिन रणवीर अभी तैयार नहीं था। रमेश ने देखा कि रणवीर अभी स्कूल जाने के लिए तैयार नहीं है और आरती तैयार हो गई है।

आरती को ग़ुस्से में बोला- तुम अभी से तैयार होकर क्यों बैठी हो? तुम्हें घर की कोई ज़िम्मेदारी का एहसास नहीं है। देख नहीं रही रणवीर ने अभी भोजन भी नहीं किया है। रसोई में जाकर माँ का हाथ बटाओ तभी तो मेरा बेटा समय से स्कूल जा पाएगा।

आरती रसोई में जाकर माँ के साथ काम करने लगी। इधर रणवीर खेलने में लगा हुआ था। खेलते खेलते ज़मीन पर गिर गया और हल्की सी चोट लगने के कारण रोने लगा। उसे रोता देख रमेश पूरा घर सर पर उठा लिया और आरती को बुला कर सारा ग़ुस्सा निकालते हुए

बोला- तुम्हें बोला था कि रणवीर का ध्यान रखना कहा थी तुम? अब तुम्हें स्कूल जाने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम अबसे घर में रहोगी और रणवीर का ध्यान रखोगी। आरती बोली- आपके कहने पर ही मैं रसोई में माँ के साथ काम कर रही थी। उसका जवाब सुनकर रमेश आग बबूला हो गया।

उसने आरती को बुरी तरह पीटा और उसकी सारी किताबें जला डाली और बोला- अपने बाप से ज़बान लड़ा रही हो। आज के बाद तुम घर के काम करोगी, रणवीर का ध्यान रखोगी, अब तुम्हारा स्कूल जाना बंद।

आरती ने अपने पिता को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसने एक न सुनी। आरती की पढ़ाई रुक गई। समय बीतता गया। आरती 18 साल की हुई ही थी कि उसकी शादी कर दी गई। तब तक रणवीर भी बारहवीं पास कर लिया था।

एक दिन रणवीर रमेश से बोला- पिता जी मैं अच्छे अंकों से बारहवीं पास कर लिया हूँ। आगे की पढ़ाई करने के लिए मुझे अमेरिका जाना हैं। रमेश बोला- बेटा मैंने आज तक जितना कमाया तेरी पढ़ाई लिखाई, तेरे पालन पोषण में लगा दिया।

अब मेरी उम्र भी ढल रही है। तेरी पढ़ाई यहाँ से भी तो हो सकती है। मेरे पास इतने पैसे नहीं है कि तुझे अमेरिका भेज कर पढ़ा सकूँ। तुम मेरी आँखों के सामने रहोगे तो मुझे संतोष रहेगा।

रणवीर बोला- पिता जी आपको इन सब बातों का ध्यान रखना चाहिए था, अपने खर्चे कम करके मेरी पढ़ाई के लिये बचाना चाहिए था। मुझे अमेरिका ही पढ़ना हैं आप ये घर बेच दीजिए।

रमेश बेटे के प्यार में आकर घर बेच दिया। बेटे को अमेरिका पढ़ने के लिए भेज दिया। दस साल तक उसके पास नौकरी थी तब तक तो वह किराए के मकान में रहता था। नौकरी जाने के बाद उसके पास किराया देने के लिए भी पैसे नहीं थे। इस बीच राधा की तबियत भी ख़राब रहने लगा।

राधा के कहने पर उसने रणवीर को फोन किया और बोला- बेटा तुम कब आ रहे हो? यहाँ तुम्हारी माँ की तबियत भी ठीक नहीं रहती है और मेरी नौकरी भी जा चुकी है। अब हमे तुम्हारी ज़रूरत है। तुम जल्दी आ जाओ।

रणवीर ने जवाब दिया- पिता जी मैं अमेरिका में ही रहूँगा। यही मैं नौकरी कर रहा हूँ। यहाँ मैंने शादी भी कर ली है, मेरा एक बच्चा भी हैं। आप लोगो के चक्कर में मैं अपने बच्चे का भविष्य ख़राब नहीं करूँगा। आप अपनी परेशानी देखो और मुझे परेशान मत करो।

रमेश और राधा उसकी ऐसी बातें सुनकर सदमे में पढ़ गये। वे एक बृधाश्रम में अपना गुजर बसर करने लगे। रणवीर कभी इनका हाल चाल पूछने के लिए भी फ़ोन नहीं करता था।

जिस बेटे के लिए रमेश ने अपना सब कुछ बेच दिया, अपनी बेटी के साथ बुरा बर्ताव किया उसी ने इनसे आँखें बंद कर ली थी। बीमारी के कारण कुछ दिन बाद ही राधा की मृत्यु हो गई। रमेश को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे। राधा के अंतिम संस्कार के लिये भी उसके पास पैसे नहीं थे।

न चाहते हुए भी रमेश ने रणवीर को फ़ोन किया और कुछ बोले उससे पहले ही रणवीर ग़ुस्से में बोला- आप फिर मुझे परेशान करने के लिये फोन करने लगे। मैं वापस उस सड़ी हुई जगह पर कभी नहीं आने वाला हूँ।

यह सुनकर रमेश की आँखें भर आई। रमेश रोते हुए बोला- बेटा आज तेरी माँ मर गई हैं। यही बताने के लिए तुझे फोन किया हूँ न की तुझे परेशान करने के लिये। इतना सुनकर रणवीर थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला पिता जी मैं तो नहीं आ सकता यहाँ बेटे की परीक्षा का समय हो गया है और मुझे छुट्टी भी नहीं मिलेगी।

मैं कुछ पैसे भेज रहा हूँ आप माँ का अंतिम संस्कार कर दीजिये। इतना बोल कर फोन काट दिया। जैसे ही फ़ोन रखा तो देखा सामने आरती और उसका पति खड़े थे। जिसे देख रमेश आँखें चुराने लगा। आरती बिना कुछ बोले अपने पति के साथ मिलकर माँ का अंतिम संस्कार कराया।

अपने पिता रमेश को अपने साथ अपने घर चलने को बोली। रमेश कौन सा मुँह लेकर अपने बेटी दामाद के घर जाता। वह रोते हुए बोला- बेटी मुझे माफ़ कर दो मैंने तुम्हारे साथ गैरो के जैसा व्यवहार किया फिर भी तुम मेरी मुसीबत में मेरे पास आई मेरी मदद की।

जिसे मैंने अपनी पलकों पर बैठाया उसने आज मुझे ग़ैर बना दिया। मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर नहीं आ सकता। आख़िर कोई बाप बेटी का कैसे खा सकता है।
आरती ने जवाब दिया- पिता जी जो गलती आप ने शुरू में की थी अभी भी वही दोहरा रहे है।

बेटा-बेटी में कोई भेद-भाव नहीं होता, आप मेरे साथ चलिए मैं आपकी सेवा करूँगी। बेटी आरती की ये बात सुनकर रमेश को अपनी गलती का एहसास हुआ फिर अपनी बेटी के घर ही रहने लगा।

आरती भी उसकी बहुत सेवा करती थी। रमेश को अपने किए पर बहुत पछतावा होता था लेकिन कर भी क्या सकता था। पछताने से क्या होगा जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।

कहानी से सीख-

हमे कभी भी बेटा- बेटी में भेद भाव नहीं करना चाहिए। बेटा तभी तक बेटा होता है जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती, लेकिन बेटी मरते दम तक बेटी का फ़र्ज़ निभाती है।

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