गरीब मज़दूर की कावड़ यात्रा

एक गाँव में रामू अपने परिवार के साथ रहता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी मीना और दो छोटे बच्चे थे। रामू बड़ी मुश्किल से मज़दूरी करके अपने परिवार का पेट पालता था।

रामू के पास खेत भी नहीं था कि वह खेती से ही कुछ अनाज उगा सके। कुछ दिनों से उसे काम नहीं मिल रहा था। घर का राशन भी ख़त्म हो चला था
शाम के वक्त मीना रामू से बोली- आज पकाने के लिए कुछ भी राशन नहीं है आपको काम क्यों नहीं मिल रहा है? हम तो बिना खाये भी सो जाएँगे लेकिन इन बच्चों को भूख से तड़पता नहीं देखा जाता है। अगर आपको काम नहीं मिला तो हम भूखे मर जाएँगे। यह सारी बातें बोलते बोलते उसकी आँखें नम हो गई।
रामू बोला- मैं रोज़ ही काम के लिए बाहर जाता हूँ लेकिन मुझे कोई काम नहीं मिलता है। लगता है भगवान भी हमारी परीक्षा ही ले रहे है।
मीना की रसोई में केवल चावल बचे थे। सूखा चावल और नमक खाकर पूरा परिवार सो गया।
अगले दिन सुबह मीना के दरवाजे पर एक भिक्षुक भीख माँगने आया। मीना उसको ख़ाली हाथ नहीं भेजना चाहती थी। उसने सुबह बच्चों को खिलाने के लिए चने भीगा रखे थे। उन्हीं चनों को उस भिक्षुक को दिए। साधु से छमा मंगाते हुए बोली- महाराज मुझे माफ़ कर दीजिए मेरे घर में इन भींगे चनों के आलवा कुछ नहीं है जो मैं आपको दे सकु मुझे माफ कर दीजियेगा। मेरे पति को कोई काम नहीं मिल रहा है। हमारा जीवन बहुत कठिन वक्त से गुजर रहा है। मैं आपको ख़ाली हाथ नहीं भेजना चाहती थी इसलिए यह चने दे रही हूँ। कृपया आप इन्हें ग्रहण कर ले।
भिक्षुक साधु ने सुझाव दिया- कल से श्रवण मास प्रारंभ हो रहा है और कल सोमवार भी है। तुम सावन के सोमवार का व्रत रखना और अपने पति से बोलना कावड़ यात्रा कर गंगा नदी के पानी से जब भोले बाबा को स्नान कराएगा तब तुम्हारे सारे दुःख दूर हो जाएँगे।
मीना बोली- महाराज हमारे पास तो पैसे ही नहीं है तो वह कावड़ यात्रा करने का समान कैसे ख़रीदेंगे? साधु बोला- भोले बाबा पर विश्वास रखो सब सही कर देंगे।
रामू उस दिन भी निराश घर आया क्योकि उस दिन भी उसे कोई काम नहीं मिला। मीना ने साधु बाबा की सारी बात रामू से बताई। रामू बोला- ठीक है तुम व्रत रखना मैं कावड़ लेकर हरिद्वार से गंगा जल लाऊँगा और भोले बाबा को चढ़ाऊँगा। उस दिन पूरे परिवार को भूखे ही दिन गुजरना पड़ा।
अगले दिन सोमवार था, मीना ने व्रत रखा और पूजा करने बोले बाबा के मंदिर चली गई।
उधर रामू भी काम की तलाश में बाज़ार जाता है। वहाँ कई लोगो से काम माँगता है लेकिन उसे कोई काम नहीं मिलता है। निराश होकर घर वापस जा ही रहा था कि एक आवाज़ आई ” अरे भाई मेरी मदद कर दो” रामू मुड़ कर देखता है तो एक व्यापारी ढेर सारे पौधे रख कर उन्हें अपनी गाड़ी में रखवाने के लिए किसी मज़दूर की तलाश में था। रामू तुरंत वहाँ पहुँचा।
उस व्यापारी ने कहा तुम मेरे ये सारे पौधे मेरी गाड़ी में रख दो इसकी मज़दूरी दे दूँगा। रामू तो इसी तलाश में था कि कोई काम मिले। वह तुरंत तैयार हो गया। देखते ही देखते रामू ने सारे पौधे थोड़ी ही देर में गाड़ी में रख दिया। रामू के काम से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। उसने रामू को तीन सौ रुपये मजदूरी और दो सौ रुपये जल्दी काम ख़त्म करने का इनाम दिया।
रामू ने व्यापारी को बहुत धन्यवाद दिया और बताया की व्यापारी की वजह से वह कावड़ लेकर जल लेने जा सकेगा। जब व्यापारी ने सुना कि रामू कावड़ ले जाने वाला है उसने और कुछ रुपये देते हुए बोला- मेरी तरफ़ से इन पैसों से गंगा माँ को प्रसाद चढ़ा देना।
रामू बोला ठीक है साहब चढ़ा दूँगा। रामू उन पैसों से कावड़ का सामान ख़रीदता है और कुछ पैसे बचते है जिनका वह घर का राशन ख़रीद कर घर ले जाता है।
मीना से सारी बातें बताता है और शेष पैसों को उसके हाथ में रख कर कावड़ लेकर पैदल हरिद्वार निकल जाता है।
कुछ दिन की पैदल यात्रा के बाद रामू हरिद्वार पहुँचता है। वहाँ गंगा स्नान करके पूजा आरती करता है। साथ में व्यापारी के दिये हुए पैसों से फ़ुल माला ख़रीद कर गंगा माँ को चढ़ा देता है।
कावड़ के दोनों मटको में पानी भर कर घर की तरफ़ पैदल ही जय भोले, बोल बम, हर हर महादेव के नारे लगाते हुए आगे बढ़ता जाता है। रास्ते में वह देखता है की एक बैलगाड़ी गड्ढे में फ़ैसी हुई होती है जिसका मालिक रामू को देख आवाज़ लगता है। अरे भाई मेरी बैलगाड़ी गड्ढे में फ़ैस गई है जो निकल नहीं रही है। कृपया इसे निकालने में आप मेरी मदद कर दो।
रामू अपनी कावड़ एक पेड़ पर टाँग कर उसकी मदद में जुट जाता है। बहुत परिश्रम के बाद बूढ़े आदमी की बैलगाड़ी निकल जाती है। बूढ़ा आदमी उपहार के तौर पर रामू को एक झोले में ढेर सारे नारियल भेट करता है। रामू ख़ुशी ख़ुशी उस झोले को लेकर वहाँ से चल देता है।
रामू जल लेकर भोले बाबा के मंदिर गया और वहाँ जल चढ़ाया। पूरा परिवार मिलकर पूजा किया। प्रसाद लेकर घर आ गये। घर आने के बाद रामू सोचा उस व्यापारी को भी प्रसाद दे दे जिसने उसकी मदद की थी। मीना से यही बात बोलकर वह बाजार चला गया। वहाँ जाकर वह पौधों की दुकान ढूढ़ने लगा। उसे ठीक से याद था कि वह दुकान कहा थी लेकिन वहाँ उसे कोई दुकान नहीं दिख रही थी।
अंत में वहाँ के अन्य दुकानदारों से पौधों वाली दुकान के बारे में पूछा लेकिन किसी को उस दुकान के बारे में कुछ नहीं पता था। सबने यही कहा की आपको भ्रम हुआ होगा यहाँ कोई पौधे की दुकान कभी भी नहीं थी।
रामू पूरी तरह अचंभित रह गया। घर वापस आ कर उसने सारी बातें मीना को बताया। मीना बोली- ये सब भोले बाबा की कृपा है मुझे तो लगता है वह साधु जो भिक्षा माँगने आये थे वह किसी भगवान का रूप थे।
बात करते करते मीना की नज़र उस झोले पर पड़ी। मीना ने रामू से उसके बारे में पूछा। रामू ने रास्ते की घटित सारी कहानी बताई। उन्हें भूख भी लगी थी। रामू नारियल झोले से नारियल निकाला और उन्हें फोड़ने लगा।
अब जो हुआ उसे देख कर रामू और उसके परिवार के किसी सदस्य को विश्वास नहीं हो रहा था। नारियल फोड़ने पर उसके अंदर से सोने के ढेर सारे सिक्के निकल रहे थे। उसने सारे नारियल तोड़े सभी नारियल में से सोने के ढेर सारे सिक्के मिले।
पूरा परिवार बहुत खुश हुआ और भोले बाबा को धन्यवाद दिया। अब उनकी गरीबी दूर हो जाएगी। रामू और मीना की आँखें खुशी से नम हो गई। अब उनका जीवन सामान्य हो गया था।

कहानी की सीख- अगर सच्चे मन से हम भगवान की आराधना करेंगे तो देर ही सही लेकिन उसका फल अवश्य मिलेगा।

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