चोर चोर मौसेरे भाई

चोर चोर मौसेरे भाई

बहुत पुरानी बात है। रामपुर गाँव में सोमा नाम की एक औरत अपने पति रमेश और चार बेटो के साथ रहती थी। एक दिन सोमा रमेश से बोली चलो तीर्थयात्रा कर लेते है। पता नहीं बुढ़ापे में पैर काम करेंगे या नहीं। रमेश बोला विचार तो बहुत अच्छा है, लेकिन हमारे बच्चों और घर का ध्यान कौन रखेगा?

चोर चोर मौसेरे भाई

सोमा बोली बच्चे अकेले रहेंगे तभी उनको अपनी जिम्मेंदारीयों का एहसास होगा। इतना कहकर सोमा कुछ सोचने लगी। सोमा को सोचता देख रमेश पूछा किस सोच में डूब गई? सोमा बोली तीर्थ करने तो चले जाएंगे लेकिन घर में पड़े सोने, चाँदी और पैसे कहाँ रखूंगी? रमेश बोला तुम रखने का इंतज़ाम करो मैं शहर से कुछ ज़रूरी सामान लेकर आता हूँ। सोमा बोली मैं भी साथ चलती हूँ, मुझे भी कुछ काम है। सोमा अपने सारे सोने, चाँदी और पैसे लेकर शहर गई उनके बदले चार सोने की ईंटें लाई। ईटों को भगवान के सिंघासन के चारों पाँयो के नीचे गाड़ दी।

अगले दिन रमेश और सोमा चारों बेटों को बुलाकर बोले, हम लोग तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं। दो महीने बाद लौटेंगे तब तक तुम लोग अपना और घर का अच्छे से ध्यान रखना। सोमा बोली और हाँ ठाकुर जी की पूजा रोज़ करना। चारों बेटों ने उनकी बात मान ली और उन्हें विश्वास दिलाया कि वे अपना और घर का अच्छे से ध्यान रखेंगे। बड़ा बेटा बोला ठाकुर जी की पूजा भी रोज़ करेंगे।

दोनों पति पत्नी तीर्थयात्रा के लिए निकल गए। तीर्थयात्रा करके दो महीने बाद जब दोनो घर वापस आए वापस आते ही सोमा सोने की ईटें ढूंढने लगी। लेकिन वहाँ से सोने की सारी ईटे ग़ायब थी। वह रोने-चिल्लाने लगी। उसकी रोने की आवाज़ सुनकर वहाँ रमेश और चारों बेटे आ गए। सोमा अपने बेटों से पूछी मैंने चार सोने की ईंटें रखी थी। जो यहाँ से ग़ायब हैं बताओ किसने चुराई है? चारों बेटों ने साफ़ मना कर दिया। उन्हें सोने के बारे में कुछ नहीं पता।

अगले दिन रमेश गाँव के मुखियाजी के पास गया, जिनके पास अजीबो-ग़रीब लेकिन हर समस्या का सटीक हल निकालते और सही फ़ैसला लेते थे। रमेश की पूरी बात सुनने के बाद मुखियाजी ने रमेश और उसके परिवार को रात का भोजन करने के लिए अपनी हवेली पर बुलाया और बोला तुम तीर्थ यात्रा करके आए हो पूरे परिवार के साथ आज मेरे घर भोजन करना है। रमेश तैयार हो गया।

रमेश सोमा और चारों बेटों के साथ शाम को मुखियाजी के यहाँ स्वादिष्ट भोजन खाया। भोजन ख़त्म करने के बाद मुखियाजी ने कहा मेरे घर की परम्परा है। हमारे यहाँ सोने से पहले कहानी सुनाई जाती है। क्या तुम लोग कहानी सुनोगे? सबने हाँ कहा मुखियाजी कहानी सुनाने लगे।
किसी ज़माने में दो बहूत अच्छे दोस्त थे। अमित और दिनेश दोनों की मित्रता इतनी गहरी थी, कि उनकी दोस्ती की कसमें खाई जाती थी। एक दिन अमित, दिनेश की परीक्षा लेनी चाही। दोनों रात में पेड़ के नीचे बैठकर बात कर रहे थे।

अचानक अमित बोला क्या तुम मुझे कोई भी चीज़ दे सकते हो? दिनेश बोला हाँ माँग कर देखो। अमित बोला तुम्हारे घर पिछले महीने बच्चा हुआ है। आज मेरा इंसानी मांस खाने का मन कर रहा है क्यों न तुम अपने बच्चे को मुझे दे दो जिसके नरम नरम मांस खाकर मैं अपनी भूख मिटा लूँ। दिनेश हाँ में जवाब दिया। अपने बेटे को लेकर घर चला गया। घर जाकर रोते हुए अपनी पत्नी जया से सारी बात बतायी। उसकी पत्नी बोली जब आपने अपने मित्र को वचन दे दिया है, तो उसे ज़रूर पूरा करिए।

बच्चे को जाकर उनको दे दीजिए। जैसे ही बच्चा दिनेश की गोदी में आया दिनेश के हाथ कांपने लगे। उसने वापस बच्चे को जया की गोद में रख दिया और रोने लगा। दिनेश को रोता देख जया ने कहा, मैं ही जाकर उन्हें दे देती हूँ। आपकी ज़ुबान नहीं कटनी चाहिए। इतना कह कर वह अमित के घर की तरफ़ चल दी। रास्ते में उसे दो चोर मिले उन्होंने जया के गले पर चाक़ू रख दिया और बोले सारा सामान हमें दे दो नहीं तो हम तुम्हारे बच्चे को मार डालेंगे। जया ने उन चोरों से आग्रह किया, भैया कृपया मुझे जाने दो मैं बहुत ज़रूरी काम से जा रही हूँ, मैं वचन देती हूँ वापस आकर अपने सारे ज़ेवर आप दोनों को दे दूंगी।

चोरों ने उसे जाने दिया। जया अमित के घर पहुँची, अमित उसे देखते ही बोला जया तुम मेरी बहन जैसी हो और तुम्हारा बेटा मेरे भांजे जैसा है। मैं तो बस दिनेश की परीक्षा ले रहा था। वह परीक्षा में पास हो गया। इतना कहकर अशर्फ़ियों की पोटली देकर जया को विदा किया। जया वापस आने लगी, रास्ते में फिर उसे वही चोर मिले। जया ने कहा भैया आप मेरे सारे गहने ले लो, मैं अपना वचन नहीं तोड़ सकती। यह सुनकर चोरों को दया आ गई। उन्होंने कहा एक घर तो भूत भी छोड़ देता है, हम तो फिर भी इंसान है। तुमने हमें भाई कहा हम तुमसे कुछ नहीं लेंगे जाओ अपने घर जाओ।

मुखियाजी ने पूछा कहानी कैसी लगी? सबने बोला बहुत अच्छी कहानी हैं। मुखियाजी ने रमेश के चारों बेटों से पूछा बताओ तुम्हें सबसे महान कौन लगा? और क्यों लगा? बड़े बेटे ने कहा मुझे सबसे महान अमित लगा। क्योंकि उसने परीक्षा के बहाने कोई ग़लत काम नहीं किया। दूसरे बेटे ने कहा मुझे चोर सबसे महान लगे क्योंकि इतनी आसानी से हाथ आया धन कोई छोड़ता है क्या? तीसरा बेटा बोला जया सबसे महान लगी उसने अपने बेटे से ज़्यादा अपने पति के वचन को समझा।

चौथा बेटा दिनेश को महान बताया क्योंकि वो दोस्ती के लिए बेटा त्यागने को तैयार हो गया।
अब मुखियाजी को चोर का पता चल गया था। उन्होंने रमेश और सोमा से कहा तुम्हारा दूसरा बेटा ही चोर है। उसी ने सोने की ईटें चुराई है। क्योंकि बाक़ी सबने अन्य लोगों को महान बताया लेकिन दूसरे बेटे ने चोरों को महान बताया। कहा गया है “चोर चोर मौसेरे भाई”
घर जाकर जब दूसरे बेटे के सामान की तलाशी ली गई सचमुच उसके सामान से सोने की चारों ईटें मिली।
संगत से लोगों के स्वभाव का पता लगता है अतः हमें हमेशा अच्छी संगत का चुनाव करना चाहिए।

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