मंगल पांडे का जीवनी

मंगल पांडे

भारत के इतिहास में, अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति करने वालें प्रथम क्रान्तिकारी का श्रेय मंगल पांडे को जाता है। बारूद के ढेर में तिल्ली मारने का काम इन्होने किया, जिसके बाद 1857 की प्रथम क्रान्ति पूरे भारत में फैल गई।

मंगल पांडे का जन्म

इनका जन्म 30 जनवरी 1831 को उत्तर प्रदेश, बलिया जिले के नगवा गांव में एक ब्राह्मण समाज में हुआ था। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम श्रीमती अभय रानी था। ये एक सामान्य परिवार से थे। जिसकी वजह से परिवार चलाने के लिए 22 साल की उम्र में ईस्ट इण्डिया कम्पनी में अंग्रेज़ी फौज में भर्ती हो गए। मंगल पांडे की ड्यूटी बैरकपुर छावनी में पैदल सेना मे लगी थी।

विद्रोह का कारण

आंग्रेज भारत में बहुत सी राजनीतिक धार्मिक रीति रिवाजों में परिवर्तन कर रहे थे। जिससे भारत के बहुत से वर्ग, बहुत जगह अंग्रेजो से खफा थे पर कोई विरोध नहीं कर पा रहे थे। जैसे बाल विवाह प्रथा को समाप्त करना, जाती प्रथा समाप्त करना, सती प्रथा को खत्म करना, जमींदारी प्रथा, राजतंत्र इत्यादि भारत कोने कोने मे भारतीय जनता अंग्रेजो से तबाह थी। तभी अंग्रेज सिपाहियो को जो बंदूक दी गई थी, वो पुरानी हो गई थी। सन 1856 में सैनिकों को नई बंदूक दी गई। और उसमे लगने वाली कारतूस को बंदूक में लोड करने से पहले उसके ऊपर लगे कवर को दांतों से हटाना पड़ता था।

कहा जाता है कि वो जो कारतूस का कवर था, वो गाय और सूअर के मांस से बना था। ये बाते सैनिकों में आग की तरह फैल गई। जब यह बात मंगल पांडे को पता चला तो उनका खून खौल उठा, एक तो ब्राह्मण और उसमें भी गाय का मांस धोखे से मुंह में डालकर धर्म भ्रष्ट करना, मंगल पांडे ने सभी सैनिकों को बोला ये अंग्रेज सरकार हम सभी भारतीयों चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान दोनो को गाय और सूअर का मांस खिला कर धर्म नष्ट करवा रहा है। मैं अंग्रेजो को छोडूंगा नही।

1857 का विद्रोह

29 मार्च 1857 को इन्होने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह कर दिया लेकिन डर से कोई सैनिक इनका साथ नही दिया। इस बगावत के खिलाफ अंग्रेज ऑफिसर मेजर ह्यूसन जो मंगल पांडे की वर्दी उतरवाने आए थे उसपे गोली चला दी। और लेफ्टिनेंट बाप को गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया। ये भारतीय द्वारा पहली बार अंगेजो पे गोली चलाई गई थी। इस समय सारी भारतीय फौज चुप चाप खड़े होकर पाण्डे जी का मौन समर्थन किया। इसके बाद पूरे हिंदुस्तान में खबर फैल गई मंगल पांडे की जय जय कर होने लगी।

अंग्रेजो द्वारा इनके पे मुकदमा चलाया गया और 18 अप्रेल 1857 को फांसी की सजा तय की गई। लेकिन भारतीय में मंगल पांडे की लोकप्रियता को देखते हुऐ कही जनता में ज्यादा आक्रोश पैदा न हो जाय, तय तिथि से पहले ही 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी गई। इस तरह भारत के प्रथम क्रांतिकारी हंसते हंसते फांसी पे लटक के युगों युगों तक अमर हो गए।

1857 की क्रान्ति

इनकी मृत्यु के तकरीबन एक महीने बाद ही इनके द्वारा भड़काई हुई चिंगारी शोला का रूप ले लिया। और पूरे उत्तर भारत के ईस्ट इंडिया कंपनी में काम कर रहे भारतीय अंग्रेज सिपाहियो ने अंग्रेजो के खिलाफ बगावत कर दी। इस युद्ध में सभी जमींदार, राजा, रजवाड़े ने अंग्रेजो से युद्ध किया और अंत में अंग्रेजो ने इस क्रान्ति को दवा दिया। इस क्रान्ति को 1857 की क्रांति के नाम से जाना जाता है। जिसके जनक मंगल पांडे को कहा जाता है।

इनके द्वारा बोया गया बीज 90 सालों तक अनेक भारतीय क्रांतिकारियों ने अपने खून पसीना और अपनी जान की कुर्बानी देकर सींचते रहे। और आखिरकार 15अगस्त 1947 को मंगल पाण्डे का सपना साकार हुआ और अंग्रेजो को भारत छोड़ के जाना पड़ा। हमारा देश आज़ाद हो गया। जब भी हम भारत की आज़ादी के योद्धाओं को याद करेंगे उसमे सबसे पहले मंगल पाण्डे को याद किया जाएगा।

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