जादुई बैगन – अच्छे और बुरे की परख

जादुई बैगन - अच्छे और बुरे की परख

एक शहर में राधे अपनी पत्नी गीता तथा अपनी माँ के साथ रहता था। राधे की माँ को बैगन का भर्ता बहुत पसंद था। गीता राधे से कई दिनों बैगन लाने को बोल रही थी लेकिन वह रोज़ भूल जाता था।

एक दिन जैसे ही राधे सब्ज़ी लेकर घर आया गीता सब्ज़ियाँ देखी और बोली- आज फिर बैगन लाना भूल गये। अभी जाकर ले आओ नहीं तो माँ बहुत ग़ुस्सा करेंगी। बेचारा राधे दफ़्तर से थका हारा आया था।

उसको वापस बाज़ार जाने का मन तो नहीं था। लेकिन उसने सोचा माँ का बहुत दिन से खाने का मन है, ले आता हूँ।

वह बाज़ार के लिए निकल ही रहा था तभी माँ आ गई और बोली- बेटा तुझे तो मेरी बिलकुल चिंता नहीं है मेरा कितने दिनों से बैगन का भर्ता खाने का मन है लेकिन तू रोज़ भूल जाता है। आज भी भूल गया।

सारी सब्ज़ियाँ याद रहती है बस तू बैगन ही क्यों भूल जाता है? राधे बोला माँ तुम ऐसे मत बोलो मैं अभी ले आता हूँ। बैगन मुझे पसंद नहीं है इसलिये भूल जाता हूँ।

उसी समय वह बाज़ार गया लेकिन काफी रात होने की वजह से सारी दुकाने बंद हो चुकी थी। एक ठेला वाला ही था। वो भी जा ही रहा था।

राधे उससे बैगन का दाम पूछा उसके पास भी बस दो ही बैगन बचे थे। ठेला वाला बोला साहब यही दो बैगन बचे है, जो आपका मन करे ले लो।

राधे कुछ पैसे देकर बैगन घर लाया लेकिन बहुत रात हो जाने की वजह से गीता बोली अब सुबह भर्ता बनाऊँगी।

जादुई बैगन - अच्छे और बुरे की परख

अगले दिन सुबह राधा रसोई में आई और बैगन पर तेल लगाया और चूल्हे पर भूनने के लिए रख दी। रख कर बाहर किसी कम से चली गई।

जैसे ही बैगन को आँच लगी वह तिलमिला उठा और चूल्हे से कूदकर पास में रखे पानी के कटोरे में कूद गया। थोड़ी देर बाद गीता रसोई में आई बैगन बोला मुझे इस ठंडे पानी से बाहर निकलो बहुत तेज़ ठंड लग रही है।

पहले तो गीता को कुछ समझ में नहीं आया। ध्यान से सुनी तब पता चला ये बैगन बोल रहा है।

गीता डर के मारे चिल्लाने लगी। उसे लगा कोई भूत आ गया है। जैसे ही बाहर जाने वाली थी तभी बैगन ने उसे रोका और बोला बहन डरो मत मैं भूत नहीं हूँ।

पहले इस ठंडे पानी से मुझे बाहर निकलो फिर मैं समझता हूँ। गीता हिम्मत करके उसे बाहर निकाली। बैगन ने बताया मैं जादुई बैगन हूँ।

तुम तो मुझे आग में झुलसा कर मार ही डालती। गीता बोली तुम तो बच गये लेकिन आज अगर मैंने भर्ता नहीं बनाया तो माँ मेरा भर्ता बना देगी। बैगन बोला तुम परेशान मत हो मैं हूँ न सब ठीक हो जाएगा।

बैगन ने जादू से भर्ता और ढेर सारे पकवान एक मिनट में बना दिया। उसे ऐसा करते देख गीता हैरान रह गई।

कुछ देर बाद माँ भी रसोई में आई। इतने सारे पकवान देख कर हैरान रह गई। पूछी, गीता आज कोई मेहमान आने वाले है क्या?

गीता बोली नहीं माँ जी कोई नहीं आ रहा है। फिर तुमने इतने सारे पकवान क्यों बनाये है? माँ ने आश्चर्य चकित होकर पूछा।

गीता ने उनको सारी बात बताई वो भी बैगन को देख हैरान रह गई। बैगन बोला माता जी मैं जादू से कुछ भी कर सकता हूँ।

ऐसे ही बैगन उनकी छोटी मोटी ज़रूरतों को पूरा करता रहा। सब बहुत खुश रहने लगे उनको कुछ भी खाने का मन करता बैगन तुरंत बना देता।

एक दिन राधे बहुत परेशान और उदास दफ़्तर से घर लौटा। गीता देखते ही समझ गई कि राधे किसी बड़ी मुसीबत में पड़ गया है।

उसके पूछने पर राधे ने बताया कि दफ़्तर में मेरे बहुत ज़रूरी कागजात थे, जो अब मिल नहीं रहे है। जिसकी वजह से मेरी पदोन्नति होने वाली थी। पदोन्नति तो रुकेगी ही साथ में मेरी नौकरी भी जा सकती है।

यह सुनकर गीता भी परेशान हो गई। राधे की माँ ने बैगन की मदद लेने को कहा। सब बैगन के पास गये। राधे ने उससे सारी बात बताई।

बैगन थोड़ी देर शांत होकर सोचा और बोला तुम्हारे दफ़्तर में तुम्हारा सबसे अच्छा मित्र रोहन ने ही तुम्हारे कागजात चुराकर अपनी आलमारी में रखा है। उन काग़ज़ात से वह अपनी पदोन्नति कराना चाहता हैं।

अगले दिन राधे दफ़्तर पहुँचा और रोहन की आलमारी देखा तो वो काग़ज़ात सचमुच वही थे। उसने रोहन के ख़िलाफ़ दफ़्तर में शिकायत किया। रोहन को नौकरी से निकाल दिया गया।

राधे खुश होकर घर आया और बैगन को धन्यवाद दिया। थोड़ी देर बाद बैगन बोला अब मुझे जाना पड़ेगा मैं बहुत दिन तक किसी एक घर में नहीं रुक सकता हूँ। अब मेरी ज़रूरत किसी और को है। मुझे वहाँ जाना पड़ेगा। इतना बोल बैगन वहाँ से ग़ायब हो गया।

परिस्थितियाँ कभी भी विपरीत हो सकती है। हमे अपने आस पास के लोगो की परख कर लेनी चाहिए पता नहीं कब कौन धोखा दे दे, और पता नहीं कब कोई फ़रिस्ता बन कर आपकी ज़िंदगी बदल दे।

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