झोपड़पट्टी मे रहने वाली गरीब की रक्षाबंधन त्यौहार

झोपड़पट्टी मे रहने वाली गरीब की रक्षाबंधन त्यौहार

राधा मुंबई के एक झोपड़पट्टी में रहती थी। उसकी उम्र मात्र बारह साल थी।

बारह साल की उम्र में ही उसे अपने परिवार की ज़िम्मेदारी आ गई थी।

कुछ महीने पहले ही राधा के पिता की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी, जिसके सदमे से उसकी माँ की भी तबियत ख़राब रहने लगी थी।

बीमारी और सही इलाज न मिलने के कारण धीरे धीरे उसकी माँ अब बिस्तर पर आ चुकी थी।

पैसों की कमी के कारण सही इजाज़ भी संभव नहीं था। इसलिए परिवार की सारी ज़िम्मेदारी अब राधा के कंधों पर थी।

राधा पास के बाज़ार में ठेला लगा कर सब्ज़ियाँ बेचने का काम करती थी। जिससे घर का राशन और माँ के लिए दवाइयाँ लाती थी।

झोपड़पट्टी मे रहने वाली गरीब की रक्षाबंधन त्यौहार

राधा उम्र में तो बहुत छोटी थी लेकिन बहुत मेहनती और समझदार थी।

वह हर वक्त यही सोचती थी कि मेहनत कर पैसा इक्कट्ठा करके वह अपनी माँ का इलाज़ किसी बड़े अस्पताल में कराएगी।

इसी मनसा के साथ वह दिन रात मेहनत करती थी। दिन भर सब्ज़ियाँ बेचती थी और रात में ख़ाना बना कर माँ को खिला कर ख़ुद खा कर पढ़ाई करती थी।

एक दिन सुबह जब राधा माँ को ख़ाना और दवा खिलाकर सब्ज़ी बेचने जा रही थी।

उसकी माँ ने कहा- मुझे माफ़ कर दो बेटी मेरी वजह से तुम इतनी कच्ची उम्र में दिन रात काम करती हो इस उम्र के सभी बच्चे स्कूल जाकर ज्ञान अर्जित करते है।

लेकिन तुम धूप और बारिश में सब्ज़ियाँ बेचती हो। अगर मेरी सेहत अच्छी रहती तो तुम्हें ये सब नहीं करना पड़ता।

आज अगर तुम्हारा कोई भाई होता तो तुम्हें सहारा मिलता। इतना कहकर माँ रोने लगी।

राधा समझदारी का परिचय देते हुए हँसाते हुए बोली- माँ मुझे तुम्हारी सेवा कराने में बहुत ख़ुशी होती है।

तुम कोई काम इसलिए नहीं करती क्योकि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है, जल्दी ही मैं ढेर सारे पैसे इकट्ठे कर तुम्हारा इलाज बड़े अस्पताल में कराऊँगी तुम जल्दी ठीक हो जाओगी फिर तुम मेरा हाथ बटाना।

तुम अपना ध्यान रखना कोई दिक़्क़त होगी तो पड़ोसियों से बोलकर मुझे बुला लेना।

इतना कह कर राधा सब्ज़ी बेचने चली गई।

राधा अपनी माँ के सामने तो बिलकुल हसते हुए बात करती थी। लेकिन असल में उसे भी किसी के सहारे की ज़रूरत थी।

एक दिन राधा सब्ज़ियाँ बेच रही होती है तभी उसके ठेले के सामने एक मोटरसाइकिल पर सवार एक युवक आता है।

वहाँ रुक कर वह किसी से फ़ोन पर बात करता है। राधा उसकी बात ख़त्म होने का इंतज़ार करती है।

जब उसकी बात पूरी हो जाती तब राधा उससे बोली- भइया ताज़ी ताजी सब्ज़ियाँ ले लो।

उस युवक का नाम दीपक था जो एक सॉफ़्टवेयर कंपनी में काम करता था।

साथ ही साथ एक गरीब बच्चों के लिए संस्था भी चलाता था, जो भूखे बच्चों को ख़ाना खिलाने का काम करती थी।

दीपक बोला- गुड़िया अभी मुझे बहुत ज़रूरी काम से कही जाना है मैं सब्ज़ियाँ नहीं लूँगा।

वह अपनी मोटरसाइकिल चालू करने लगता है लेकिन वह चालू नहीं होती है।

वह बहुत देर से चालू करने का प्रयास कर रहा होता है लेकिन चालू नहीं होती है।

उसे परेशान होता देख राधा हसते हुए बोली- भइया आप मेरी सब्ज़ियाँ नहीं ख़रीदे है इसलिए आपकी फटफटिया नाराज़ हो गई है।

लेकिन आप परेशान मत हो मुझे पता है यह कैसे ठीक होगी।

उसकी नटखट बात सुनकर दीपक के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

राधा वहाँ से गई और पास के एक मिस्त्री को बुला कर लाई।

मिस्त्री मोटरसाइकिल बनाने लगा। उस बीच दीपक राधा को धन्यवाद दिया और बोला- तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद!

तुम मिस्त्री को नहीं लाती तो पता नहीं और कितना समय लग जाता।

तुम स्कूल नहीं गई? तुम्हारे पिताजी कहाँ है? राधा बताई कि उसके पिता की मृत्यु हो गई है और माँ बीमार है।

इसलिए घर चलाने के लिये वो सब्ज़ी बेचती है। स्कूल नहीं जाती है।

राधा अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोली- दो दिन बाद रक्षाबंधन का त्योहार है अगर आज उसकी सारी सब्ज़ियाँ बिक जाएगी तो वह ढेर सारी राखियाँ ख़रीद कर लाएगी और उन्हें बेचकर उन पैसों से वह अपनी माँ का इलाज कराएगी।

लेकिन रात होने को आ गई उसकी सब्ज़ियाँ नहीं बिकी है।

उसकी बातें सुनकर दीपक बहुत सोच में पड़ गया कि इतनी छोटी बच्ची इतनी परिपक्व है और इतनी मेहनत कर रही है।

उसने कहाँ- गुड़िया तुम बहुत मेहनती हो इतनी छोटी उम्र में इतनी मेहनत कर रही हो यह बहुत बड़ी बात है।

तुम कभी हिम्मत मत हारना ऐसे ही जीवन में हमेशा मेहनत करना।

इतना कह कर वह किसी को फ़ोन करता है बात करने के बाद राधा से बोला- गुड़िया देखो तुम्हारी परेशानी का हल हो गया।

तुम अपनी सभी सब्ज़ियों की क़ीमत जोड़ कर बताओ अभी एक लड़का आएगा वह तुम्हारी सारी सब्ज़ियाँ ले जाएगा।

मैं रोज़ गरीब बच्चों के लिए ख़ाना बनवाता हूँ आज तुम्हारी सब्ज़ियों का ख़ाना बनेगा।

राधा बहुत खुश हुई। दीपक ने उसे सब्ज़ियों की क़ीमत से अधिक पैसे दिये। राधा बहुत मना की लेकिन दीपक ज़बरदस्ती पैसे देकर चला जाता है।

राधा उन पैसों की ढेर सारी अलग अलग प्रकार की सुंदर सुंदर राखियाँ ख़रीद कर घर आ जाती है।

अगले दिन सुबह सुबह ठेले पर उन्हें सजाकर बेचने के लिए बाज़ार निकल जाती है।

वहाँ जाकर चिल्ला चिल्ला कर राखियाँ बेचने का प्रयास करती है। कुछ लोग उसकी राखी देखते तो है लेकिन कोई ख़रीदता नहीं है।

असल में उसके बग़ल में ही राखी की बहुत बड़ी दुकान थी जिसमें ढेरों प्रकार की अलग अलग डिज़ाइन की राखियाँ थी। इसलिए सभी लोग वहीं से ख़रीद रहे थे।

पूरे दिन में राधा की एक भी राखी नहीं बिकी। वह निराश होकर घर लौट गई।

उसका उतरा हुआ चेहरा देख कर माँ पूछी- क्या हुआ राधा इतनी उदास क्यों हो?

राधा बोली- माँ मैंने अपने सारे पैसे राखी में लगा दिये है। कल रक्षाबंधन है आज पूरे दिन में एक भी राखी नहीं बिकी।

अगर कल मेरी राखी नहीं बिकी तो क्या करूँगी? न ही मेरे पास सब्ज़ियाँ है न ही उन्हें ख़रीदने के लिए पैसे!

उसकी माँ बोली- उदास न हो बेटी हिम्मत मत हारो कल तुम्हारी सारी राखियाँ बिक जाएगी।

राखी वाले दिन भी राधा सुबह सुबह राखी बेचने निकल गई। दो घंटे तक उसकी एक भी राखी नहीं बिकी।

वह पूरी तरह निराश हो चुकी थी। उसे लगने लगा था की उसकी एक भी राखी नहीं बिकेगी।

तभी दीपक अपनी मोटरसाइकिल लेकर वहाँ आ गया। दीपक पूछा- क्या हुआ गुडियाँ इतनी उदास क्यों हो?

राधा सारी बात बताते बताते रोने लग गई। दीपक उसे चुप कराया और बग़ल में मोटरसाइकिल खड़ा कर उसके ठेले पर खड़ा हो गया।

दीपक तेज़ तेज़ बड़े अनोखे अन्दाज़ में लोगो को बुलाने लगा।

दीपक देखने में बहुत आकर्षक था और ऊपर से उसके अनोखे अन्दाज़ ने सबको बहुत आकर्षित किया।

देखते ही देखते उसके ठेले पर भीड़ इकट्ठा हो गई राधा लोगो को राखी दिखाने लगी थोड़ी ही देर में उसकी सारी राखी बिक गई।

राधा और दीपक दोनों बहुत खुश हुए। दीपक बोला- ये लो तुम्हारी सारी राखियाँ बिक गई अब खुश हो?

राधा बोली- हा भाइयाँ मैं बहुत ख़ुश हूँ लेकिन अभी सारी राखियाँ नहीं बिकी है। एक राखी बची है।

जिसे मैं रख ली थी अगर आप मुझे इजाज़त दे तो आपको बाधुँगी क्योकि भगवान ने मुझे कोई भाई नहीं दिया है। लेकिन आज आपको मेरा भाई बना कर भेजे है।

यह कहते कहते उसकी आँखें भर आई। दीपक की भी आँखें नम हो गई।

वह अपना हाथ आगे बढ़ाता है राधा उसकी कलाई पर राखी बांध कर उसका आशीर्वाद लेती है।

राखी बधने के बाद दीपक अपनी जेब से एक लिफ़ाफ़ा निकल कर राधा को देता है और उसे खोलने को कहता है।

राधा लिफ़ाफ़ा खोलकर देखती है तो उसमे शहर के सबसे बड़े डॉक्टर का appointment(समयादेश) था।

जो उसकी माँ के इलाज के लिए था उस पत्र के माध्यम से राधा अपनी माँ का इलाज मुफ़्त में करवा सकती थी।

कुछ दिनों के इलाज के बाद राधा की माँ बिलकुल स्वस्थ हो गई।

कहानी की सीख –

इंसान को अपना कर्म करना चाहिए कभी हिम्मत नहीं हारना चाहिए। मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती। जैसे राधा को दीपक के रूप में भगवान ने सहायता भेजी, वैसे ही हर व्यक्ति अगर सच्ची निष्ठा से अपना काम करता रहेगा तो भगवान एक दिन उसकी मदद ज़रूर करेंगे।

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