सुखी परिवार की कहानी

सुखी परिवार की कहानी

एक परिवार में दो बहने गीता और रीता थी। गीता की शादी एक आमिर घर में हुई, और रीता की शादी एक ग़रीब परिवार में हुई।

सुखी परिवार की कहानी

गीता के घर हर सुख सुविधा थी। उसका पति एक बहुत बड़ी कंपनी का मालिक था। उसके घर नौकर चाकर ही सारा काम करते थे।

गीता को कोई काम नहीं करना पड़ता था। गीता को किसी भी चीज की कमी नहीं थी। उसको आने जाने के लिए गाड़ी थी।

उसका जहां मन करता था ड्राइवर को लेकर चली जाती थी। बहुत ऐसो-आराम की जिन्दगी थी।

वहीं रीता का पति छोटी मोटी नौकरी करता था। रीता के परिवार में उसकी साँस, एक ननद मीनू और एक देवर राकेश रहते थे।

सभी लोग बहुत मिलनसार और एक दूसरे की हमेशा मदद के लिए तैयार रहते थे।

एक दिन शाम को गीता और रीता दोनों फ़ोन पर बातें कर रही थीं। रीता ने गीता का हॉल चाल पूछा।

रीता उस वक्त चूल्हे पर ख़ाना पका रही थी उसने बात बात में ही बोल दिया कि बहन आज बहुत गर्मी है।

उसकी इस बात पर गीता हँसने लगी और बोली तुम क्या बात कर रही हो बहन?

मैं तो कंबल ओढ़ कर बैठी हूँ मुझे ठंड लग रही है। रीता को बहुत हैरानी हुई।

उनसे बोला- बहन हम दोनों एक ही शहर में रहते है। अगर मेरे यहाँ गर्मी है फिर तुम्हारे यहाँ ठंडी कैसे हो सकती है?

गीता हंसते हुए जवाब दी – मेरे कमरे में AC चल रही है इसलिए इतनी ठंडी है।

गीता ने बताया की उसे रसोई घर में जाने की भी ज़रूरत नहीं होती नौकर ही सारा काम करते है।

अभी दोनों बात ही कर रही थी तभी रीता की साँस ने देखा कि रीता ख़ाना पकाने में पसीने से लथ पथ है।

वह तुरंत तरबूज़ काट कर लाई और बोली- बहू, मीनू और राकेश दोनों बरामदे में बैठ कर तरबूज़ खा रहे है तुम भी जाओ खा लो, बाक़ी काम मैं करती हूँ।

रीता फ़ोन रख कर बाहर चली गई। बाहर मीनू और राकेश लुडो खेल रहे थे और तरबूज़ खा रहे थे|

उन्होंने देखा की उनकी भाभी पसीने से भीगी हुई रसोई घर से आ रही है दोनों ने उसको बुलाया और उनके साथ बैठ कर तरबूज़ खाते खाते खेलने को कहा।

रीता भी उनके साथ बैठ गई थोड़ी देर बाद रीता का पति भी आ गया और रसोई का बाक़ी काम करके उसकी साँस भी आकर सबके साथ बैठ कर बातें करने लगी।

रात होने पर सभी साथ में ही भोजन कियें।

अगले दिन दोबारा गीता का फ़ोन आया रीता ने अपने घर की सारी बातें बताई।

उसकी बातें सुनकर गीता का भी मन हुआ की वह भी अपने परिवार के लोगो के साथ बैठे, बातें करे।

यही सोच कर अपनी साँस के पास गई, जो मोबाइल में अपनी छोटी बेटी और छोटे बेटे के साथ ऑनलाइन गेम खेल रही थी।

साँस ने पूछा- बहू तुम मेरे कमरे में किसी काम से आई हो क्या?

गीता बोली- नहीं, माँ जी अकेले कमरे में थी तो सोचा आपसे बातें करूँ।

उसकी साँस ने बोला – बहू तुम भी अपने कमरे में जाओ और हमारे साथ ऑनलाइन गेम खेलों बहुत मज़ा आता है।

गीता उदास होकर अपने कमरे में चली गई।

अगले दिन गीता अपने पति से कही घूमने जाने के लिये कहती है।

उसका पति बोला- मेरे पास घूमने के लिए समय नहीं है आज मुझे कारख़ाने में बहुत काम है।

तुम ड्राइवर को लेकर कही घूमने चली जाओ। इतना कहकर वह कारख़ाना चला जाता है।

गीता थोड़ी देर सोचती है और ड्राइवर को गाड़ी निकालकर रीता के घर चलने को कहती है।

ड्राइवर गीता को लेकर रीता के घर चल देता है। थोड़ी ही देर बाद गीता, रीता के घर पहुँच जाती है।

जाकर देखती है कि रीता की साँस, मीनू और राकेश तीनों ज़मीन पर बैठ कर बातें कर रहे होते है।

गीता अंदर आकर सबको प्रणाम करती है। सभी लोग गीता को अचानक देख कर खुश हो जाते है।

मीनू तुरंत गीता के लिए पानी ला कर देती है। राकेश बोलता है- आप बैठिए मै रीता भाभी को बुला कर लाता हूँ|

वह भी अभी यहीं थी माँ के कपड़े सूखाने आँगन में गईं है।

गीता बोलती है आप लोग परेशान मत होइए मैं अंदर जाकर रीता से मिल लेती हूँ।

गीता अंदर रीता के पास चली जाती है। रीता उसे देख कर बहुत खुश हो जाती है और अपनी बहन के गले लग जाती है।

रीता बोलती है बहन चलो बाहर बरामदे में बैठ कर बातें करते है। गीता बोली यही कमरे में ही बैठते है।

रीता ने फिर कहा- नहीं बहन बाहर सब लोग है, उनके पास ही चल कर बैठते है सबको अच्छा लगेगा।

गीता बात मन लेती है। दोनों बाहर सबके पास आकर बैठ कर बातें करती है।

वही सब साथ में बैठ कर भोजन भी करते है। गीता बहुत दिन के बाद इतनी बातें करती है, हँसती बोलती है। उसका मन बहुत प्रसन्न होता है।

शाम को जब गीता वापस जाने लगती है। उसकी साँस उसके पहली बार घर आने की वजह से मिठाइयाँ और कुछ उपहार भी देती है।

वापस जाते समय गीता पूरे रास्ते यही सोचते हुए जाती है कि उसके पास सारे ऐसो आराम की चींजे है,

लेकिन उसके परिवार में कोई किसी के साथ बैठकर अपना सुख दुख नहीं कहता है। रीता का परिवार कितना सुखी है।

सब एक दूसरे के साथ रहते है। सभी एक दूसरे की भावनाओं कि कद्र करते है।

कहानी की सीख-

सुखी रहने के लिए धन दौलत आवश्यक नहीं होती है। परिवार में एक दूसरे का प्यार, स्नेह और सहयोग ही सबसे बड़ा धन हैं।

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