भगत सिंह का जीवन परिचय – Biography of Hero Bhagat Singh

भगत सिंह

अगर किसी भारत के बच्चों को देश भक्ति के किस्से सुनाई जाय, तो उसमे सबसे पहले भगत सिंह का नाम आयेगा। अंग्रेजो के जुल्मों से परेशान भारत की जनता आज़ादी के लिए छटपटा रही थी। आज कल की तरह सोशल मीडिया का जमाना नहीं था।

भारत के कोने कोने में, भारत के सच्चे देश भक्त अपनी भारत माता को अंग्रेजो से आज़ाद कराने के लिए व्याकुल थे। लेकिन कितने लोगों के दिलो में आज़ादी पाने की आग सुलगल रही है, वो कौन हैं, कहा है, ये सब कैसे एक साथ हो, ये बड़ी चुनौती थी, सिर्फ पेपर और रेडियो के माध्यम से, देश में क्या हो रहा है, पता चलता था। कितने भारत वासियों के दिलो में आज़ादी की चाहत है, पेपर में छपना या रेडियो मे बताना संभव नहीं था।

जरूरत थी एक ऐसे संखनाद की जो अंग्रेज सरकार के साथ साथ पूरे भारत की जनता को सुनाई दे। अपने दिलो में आज़ादी का शोला लिए 16 साल का एक नौजवान, भारत का सच्चा सपूत, जिसके दिलो में अपनी मातृभूमि के प्रति प्यार के आलावा कुछ नही था। उन्होंने ये संखनद बजाने की ठान ली। वो वीर सपूत और कोई नही हमारे देश का लाड़ला भगत सिंह थे।

भगत सिंह
भगत सिंह का जीवनी

जिन्होंने 8 अप्रेल 1921 को अपने साथी देशभक्त राजगुरु के साथ अंग्रेजो के सेंट्रल असेम्बली दिल्ली में एक ऐसे जगह बम का धमाका कर दिया जहां कोई जान न जा सके, धमाका होते ही, वैसा ही हुआ जैसा भगत सिंह सोचे थे, पूरे भारत वासियों में एक क्रांति की लहर दौड़ने लगी, भगत सिंह बम फेंकने के बाद इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे लगाते हुऐ अपना पर्चा पूरे असेम्बली में बिखेर कर अंग्रेजी पुलिस को अपनी गिरफदारी दे दी। ये खबर हिंदुस्तान से इंग्लैंड तक आग की तरह फैल गई। भगत सिंह की गिरफदारी के बाद पूरे भारत में इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे गूंजने लगे, अंग्रेजो भारत छोड़ो के नारे गली गली लगने लगे। इससे अंग्रेज को लग गया की इस लड़के ने पूरे भारत के लोगो मे क्रांति की ज्वाला भर दी अब हमे हिंदुस्तान से अपना बोरिया बिस्तर समेटना होगा।

जन्म और परिवार

इस वीर सपूत का जन्म 28सितम्बर 1907 को लायलपुर के बंगा गांव में हुआ था। जो आज पाकिस्तान के फैसलावाद जिले में पड़ता है। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। इनके चाचा अजीत सिंह और स्वरण सिंह थे। ये एक सिख समुदाय के किसान और देश भक्त परिवार थे। अंग्रेजो के खिलाफ़ बगावत के जुर्म में इनके दोनो चाचा कई बार जेल भी गए थे।

देश भक्ति के गुण

भगत सिंह को देश भक्ति का गुण उनके परिवार से मिला, कहा जाता है इनके पिता जी खेत में कोई बीज बो रहे थे, भगत सिंह ने बीज को देखा और बोला पिताजी ये क्या है, इससे क्या होता है? पिताजी बोले बेटा ये बीज है इसे ज़मीन में बोने से फल आता है, और फिर फल से सैकड़ों हजारों ऐसा ही बीज पैदा होता है। ये बात सुन कर भगत सिंह बोले तो पिताजी मैं भी एक बंदूक ज़मीन में बो देता हूं, जिससे कुछ दिनों बाद सैकड़ों हजारों बन्दूक हो जायेगा, जिससे हम सब आंग्रजो का मुकाबला करेंगे। ये सुन कर उनके पिताजी दंग रह गए। और उन्हें खुशी हुई की उनके बेटे में कूट कूट कर देश भक्ति भरी है। जब भगत सिंह 12 साल का था, तब उस समय अंग्रेजो ने जलिया वाला बाग में हजारों भारतीय क्रांतिकारियों पर अंधाधुन गोलियां चलाकर मार दिए।

बदले की भावना

वहां खून की नदिया बह रही थी,यह समाचार सुनते ही स्कूल में पढ़ने वाला भगत सिंह 12 किलोमीटर दौड़ते हुए जलियावाला बाग पहुंचे और वहां का दृश्य देख कर उनका खून खौल उठा और मन में प्रतिज्ञा ली की इसका बदला अवश्य लूंगा। भगत सिंह का जुलूसों में भाग लेना, सभा में जाना जारी था। कई क्रांतिकारी संगठन के सक्रिय सदस्य बने, महात्मा गांधी के साथ भी जुड़ के काम करना चाहे, क्योंकि भगत सिंह बापू का सम्मान करते थे, पर उनके साथ बहुत कम समय रहे, क्योंकि बापू हिंसा में विश्वास नहीं रखते थे। दोनो के मंजिल एक थी, पर रास्ते अलग थे|

क्रांतिकारी साथी

कुछ दिन बाद भगत सिंह भारत के प्रमुख क्रान्तिकारी चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राजगुरु के साथ मिलके देश की आज़ादी के लिए काम किए। आज़ादी की मशाल बहुत रफ्तार से आगे निकल रही थी, पार्टी को कैसे चलना है, क्या क्या चाहिए, सब बड़े ही बहादुरी पूर्वक कर रहे थे। सन 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार में सभी क्रांतिकारी प्रदर्शन कर रहे थे, इसी बीच अंग्रेजो ने लाठी चार्ज कर दी जिसमें प्रमुख क्रान्तिकारी लाला लाजपतराय को लाठी से पीट पीट कर मार दिया गया। इस घटना से भगत सिंह बहुत आहत हुए और उसे रहा नही गया, और राजगुरु के साथ गुप्त योजना बना के लाला लाजपतराय के खूनी अंग्रेज़ी अधिकारी को शाम चार बजे आते देख, एक दीवार के पीछे छिप कर बैठे गए। जैसे ही हत्यारा अधिकारी आया पहले राजगुरु ने दो गोली मारी फिर भगत सिंह ने गोली मारकर उनका काम वही तमाम कर वहा से निकल गए।

जेल के दिन

भगत सिंह जब जेल में थे तो उन्हें अंग्रेजो द्वारा बहुत यातनाएं दी गई। जेल में अपनी लेखनी के माध्यम से देश के बाहर युवाओं में क्रांति की आग फुकते थे। महीनों भूखे रहकर अंग्रेजो के नाक में दम कर दिए, इधर देश के अंदर सभी क्रांतिकारी अपना प्रदर्शन तेज करते जा रहे थे, और भगत सिंह को जेल से छुड़ाने के लिए बड़े बड़े वकील केस भी लड़ रहे थे। पूरे भारत वासियों के जुबान पर एक ही नाम भगत सिंह था। बम फेंकने के आरोप में 7 अक्टूबर 1930 को अंग्रेजी अदालत ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुना दी। इस सजा को रोकने के लिए बहुत कोशिश की गई, महात्मा गांधी ने भी कोशिश की, चार जजों में एक भारतीय जज थे उन्होंने भी अपना निर्णय भगत सिंह के पक्ष में दिया लेकिन तीन अंग्रेज़ जज ने नकार दी।

सहादत दिवस

24 मार्च 1931 को फांसी की तारीख फिक्स थी, लेकिन भारत की जनता भड़क न जाए इस लिए अंग्रेजो ने 23 मार्च को शाम को ही भारत के तीनो सपूतो को फांसी दे दी।
अधिकारियों का कहना था कि जब उन्हें फांसी पे जाने को बोला तो, भगत सिंह बोलें रुको पहले मुझें अपने साथी से तो मिल लेने दो। राजगुरु और सुखदेव, दोनों से गले मिले और बोले अब चलो और तीनो मस्ती में गाते जा रहे थे… ‘ मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे बसन्ती चोला, मेरा रंग दे बसन्ती चोला ‘


आज पूरे भारत के बच्चे, बूढ़े, जवान भगत सिंह को अपना सबसे बड़ा देश भक्त के रूप देखते है। मस्ती के दीवाने शहीद भगत सिंह युगों युगों तक अमर रहेंगे।

कमेंट करके अपना विचार प्रकट करें