कैलाशावादिवो सिवन (K. Siwan) का जीवन परिचय

कैलाशावादिवो सिवन भारत के महानतम वैज्ञानिकों में एक है।

आइये जानते है उन्होंने अपनी ज़िंदगी में क्या हासिल किया और हम उनके बारे में क्यों पढ़ने जा रहे है?

केरल के एक छोटे से गाँव का गरीब किसान का बेटा अगर अपने नाम का लोहा पूरे विश्व में मनवा सकता है तो ज़रूर कुछ ख़ास बात रही होगी।

के सिवन का जन्म 14 अप्रैल 1957 को केरल में हुआ था। उनके पिता कैलाशावादिवो एक ग़रीब किसान थे।

उनका छोटा बेटा ‘कैलाशावादिवो सिवन ( के सिवन )’ पैसों से गरीब था लेकिन बुद्धि बहुत तिब्र थी।

के सिवन कक्षा आठ तक गाँव के ही सरकारी स्कूल में पढ़े। आगे की पढ़ाई के लिए उनके परिवार के पास पैसे नहीं थे।

उन्होंने अंग्रेज़ी अख़बार डेक्कन क्रॉनिकल के एक इंटरव्यू में बताया कि पैसों की कमी के कारण उनके बड़े भाई ने उनकी पढ़ाई रुकवा दी थी।

इसलिए वह आगे की पढ़ाई करने के लिये आम बेचते थे और उससे कमाए पैसों से स्कूल की फ़ीस भरते थे।

इंटरमीडिएट की परीक्षा अच्छे अंकों से पास कर वे आगे की पढ़ाई करने के लिए उनके पिता ने उनका दाख़िला
मदुरै विश्वविद्यालय में करा दिया।

वहाँ से उन्होंने B.sc (गणित) से पढ़ाई की। उन्होंने गणित में सौ प्रीतिशत अंक हासिल किए।

परिवार के पहले स्नातक धारी (Graduate) बने। स्नातक करने के बाद उनका रुझान विज्ञान में आया और उन्होंने विज्ञान की पढ़ाई करने के लिए MIT(Madras intitute of technology) में पढ़ाई की।

जहां उन्होंने छात्रवृति प्राप्त कर aeronautical engineering से B.Tech किया।

उसके बाद ” indian institute of साइंस (IIS) ” से M.Tech की डिग्री हासिल की।

IIS से निकलने के बाद वह एक वैज्ञानिक बन चुके थे।

सिवन 1982 में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) परियोजना में भाग लेने के लिए इसरो में शामिल हुए।

उन्होंने पी.एस.एल.वी. में काम करते समय एक ख़ास सॉफ्टवेर का निर्माण किया जिसका नाम ‘सितारा’ रखा गया।

जो पीएसएलवी को लॉंच करने में बहुत कारीगर साबित हुआ।

अब भारत की नज़र पीएसएलवी से आगे बढ़ कर जीएसएलवी की तरफ़ देख रहा था।

जिसका प्रथम परीक्षण 18 अप्रैल 2001 में किया गया जो सफल नहीं हुआ।

वैज्ञानिक इसे जहां भेजना चाहते थे वहाँ जाने से पहले ही नष्ट हो गया।

के सिवन इसी काम में माहिर थे। इसलिए पीएसएलवी पर काम करने के लिए उनको नियुक्त किया गया।

वह सबकी उम्मीदों पर खड़ा उतरे उन्होंने पीएसएलवी का सफल परीक्षण किया। जिससे इसरो ने विश्व में खूब नाम कमाया।

अब के सिवन reusable launch vehicle की तैयारी में लग गये।

असल में मिसाइल छोड़ने के लिये launch vehicle का प्रयोग किया जाता था।

जो एक बार मिसाइल छोड़ने के बाद नष्ट हो जाता था। अब तक विश्व में कोई भी देश दोबारा प्रयोग किए जाने वाला launch vehicle तैयार नहीं कर पाया था।

लेकिन के सिवन की अगुआई में इसरो ने यह मुक़ाम भी हासिल किया।

इसी बीच के सिवन 2006 में IIT बॉम्बे से पीएचडी की डिग्री भी हासिल कर चुके थे।

2 जुलाई 2014 को K. Siwan को इसरो के ” लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर ” के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था।

1 जून 2015 को विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक नियुक्त किए गए।

के सिवन की अध्यक्षता में इसरो ने 15 फ़रवरी 2017 को इसरो ने एक साथ 108 उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ कर विश्व में कीर्तिमान स्थापित किया।

के सिवन के जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य था चन्द्रयान 2 जो 22 जुलाई 2019 में सफलता पूर्वक प्रक्षेपित हुआ।

जो 2 सितंबर 2019 को दो हिस्सो में बट गया। एक हिस्सा था ‘ऑर्बिटर’ जो आज भी चाँद की परिक्रमा कर रहा है।

दूसरा हिस्सा था ‘लैंडर विक्रम’, जिसे चाँद की सतह पर उतरना था। जो 6 सितंबर 2019 की रात को चाँद पर उतरने वाला था।

लेकिन चाँद पर उतरने के कुछ मिनट पहले ही विक्रम से इसरो का संपर्क टूट गया।

चन्द्रयान 2 का अभियान असफल हो गया। जिसे देख के सिवन बुरी तरह रो पड़े।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें गले से लगा लिया और उनको उनके काम के लिये बधाई दी।

चन्द्रयान 2 अभियान उस समय तो सफलता हासिल नहीं कर पाया लेकिन के सिवन के अहम योगदान की वजह से आज भारत ‘चन्द्रयान-3‘ सफलता पूर्वक चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतर चुका है।

के सिवन को उनके कार्यकाल में कई अहम पुरस्कार मिले जिनमे से कुछ निम्नवत् है।

  • श्री हरि ओम आश्रम डॉ साराभाई रिसर्च पुरस्कार 1999
  • इसरो मेरिट पुरस्कार 2007
  • डॉ एपीजे अब्दुल कलाम पुरस्कार 2019

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