सोने की खेती

सोने की खेती

पहाड़ों के बीच मानकपुर नाम का एक गाँव था। जहां के सभी लोग बौने थे। वहाँ सोने की खेती होती थी। वहाँ की मिट्टी में सोने के कड़ पाये जाते थे। वहाँ के लोग एक विशेष लहसुन जैसा पौधा लगाते थे, जिससे सोना उगता था।

उसी गाँव में एक बहुत गरीब परिवार रहता था। जिसमें भानू और उसका बेटा चिंटू रहते थे। भानू के पास अपना खेत नहीं था। भानु और चिंटू दोनों जमीदार के खेत में काम करते थे, जिससे किसी प्रकार घर में दोनो पहर ख़ाना पकता था। इस बात से चिंटू बहुत परेशान रहता था। वह सोचता था कि वह भी मेहनत करके धनवान बन जाये।

सोने की खेती

एक दिन चिंटू जमीदार से बोला- जमीदार साहब अगर मैं आपके खेत में अधिक मेहनत करके अच्छी फसल उगाऊँ तो क्या आप मुझे बराबर हिस्सा देंगे? जमीदार थोड़ा सोच कर बोला- हाँ जरुर दूँगा। तुम और मेरा बेटा मंगू दोनों मिल कर पहाड़ी के नीचे वाले खेत में फसल उगाओ जितनी फसल होगी उसका आधा तुम रख लेना आधा मेरा हो जाएगा।

चिंटू खुश हो गया। वह मंगू के साथ मिलकर खूब मेहनत और समय से काम करने लगा। उन दोनों की मेहनत रंग लाई। फसल बहुत अच्छी हुई थी। दोनों मिलकर फसल काटे और सारा सोना एक पोटली में लेकर शहर में बेचने के लिए चल दिये।

दोनों बातें करते हुए जा रहे थे। शहर के रास्ते में दो लुटेर शमशेर सिंह और ऊधम सिंह किसी राहगीर की ताक में छुपकर कर खड़े थे। उनकी नज़र दोनों बौनों चिंटू और मंगू पर पड़ी। सुनसान रास्ता देख दोनों लुटेरों ने उनको घेर लिया। शमशेर सिंह मंगू से सोने की पोटली छीन कर भागने लगा। चिंटू और मंगू दोनों उनका धन जाते देख परेशान नहीं हुए दोनों ने अपने बुद्धि से काम लिया।

ऊधम सिंह अभी भी उनके पास ही चाकू लिए खड़ा था। मंगू बोला- “चलो अच्छा हुआ हमारी बला टली” चिंटू बोला- अरे ये तुम क्या कर रहे हो? पोटली का राज किसी को नहीं बताना है। हम जिस काम से आये थे वो तो हो ही गया। उनकी बातें सुनकर ऊधम सिंह बोला- उस पोटली में क्या है? जल्दी बताओ नहीं तो तुम दोनों को मार दूँगा। दोनों चुप रहे।

ऊधम सिंह मंगू की गर्दन पर चाकू रख कर बोला- अगर तुम दोनों ने थोड़ी भी देर की तो दोनों की गर्दन उड़ा दूँगा। मंगू ने बताया कि तुम्हारा साथी जो पोटली लेकर भागा है उसमे बौनों का राज छुपा है। जो भी उसे खोलता है बौना हो जाता है। हमारे पुजारी ने हमसे बोला है कि जाओ ये पोटली किसी चोर, लुटेरे को दे दो।

जैसे ही वो पोटली खोलेगा वह बौना हो जाएगा और तुम दोनों इस श्राप से मुक्त हो जाओगे। ऊधम सिंह के सामने अभी भी वो दोनों बौने खड़े थे। उसको लग गया की शमशेर सिंह ने अभी तक पोटली नहीं खोली है। उसने तुरंत अपने साथी को मोबाइल से कॉल किया और तुरंत उसी जगह पर आने को कहा। थोड़ी ही देर में शमशेर सिंह वहाँ वापस आ गया।

ऊधम सिंह बिना कुछ सोचे समझे शमशेर के हाथ से सोने की पोटली छीन कर चिंटू को वापस दे दिया और बिना समय गवाये शमशेर सिंह के साथ सिर पर पैर रख कर भागा। चिंटू और मंगू को उनका धन वापस मिल गया। दोनों शहर जाकर सोने को अच्छे दाम में बेच कर ख़ुशी ख़ुशी वापस घर आ गये।

कहानी की सीख- जैसे चिंटू और मंगू ने मुसीबत के समय बिना विछलित हुए बुद्धि से काम लिया, वैसे ही हमे भी मुसीबत की परिस्थिति में विचलित न होकर बुद्धि से काम लेना चाहिए।

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