नर्क / नरक चतुर्दशी : नर्का पूजा

नर्क चतुदर्शी को छोटी दीपावली के नाम से भी जाता है। यह कलेंडर महीने के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के 14 वे दिन पर नर्क चतुर्दशी पड़ता है।

इसे कई नामों से भी जाना है जैसे – काली चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी। यह दीपावली के एक दिन पहले पड़ता है।

यह हिंदुओं का त्यौहार है। इस दिन हम साम को एक दीपक जला कर कुवे के ऊपर रख देते है।

हमारे गाँव मे इस दिन सायं के समय घूरा (पशु के गोबर का कूड़ा) पर एक दिया ‘दीपक’ जला कर रखा जाता है। क्या आप के यहाँ भी ऐसा होता है ?

  • त्यौहार का नाम – नर्क चतुर्दशी, काली चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी
  • दिनांक – कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी
  • 2023 की तारीख या दिन – 12 नवम्बर, रविवार

क्यूँ नर्का पूजा किया जाता है ? आइए इसके कथा के बारे में जानते है।

नर्क चतुर्दशी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण ने दैत्य ‘राक्षस’ अत्याचारी नरकासुर का वध करके सोलह हजार एक सौ कन्याओं को दुष्ट नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर, उन्हें इज्जत सम्मान दिलाया। साथ ही बुराई को भी खत्म किया।

इसी से इस दिन हमे बुराई को खत्म कर के अपने जीवन मे अच्छा करने का प्रण लेना चाहिये।

इसी खुशी में हमे सायं के दीपक जलाकर इसे मनाना चाहिये। इस त्यौहार से एक दिन पहले धनतेरस पड़ता है और एक दिन बाद दीपावली पड़ता है।

हिंदू धर्म मे इसका महत्व

हमारे गाँव मे इस दिन प्रातः काल औरतें जल्दी उठकर पुरानी ” डाली या सुप ” (जिससे चावल या गेहू बनाया जाता) लेकर अपने – अपने घरों में से उस सुप को पीटते हुये बाहर खुले मैदान में जाती हैं। फिर उसको आग से जला कर पूजा करती है।

उस आग के धुए से काजल बनाती, फिर उसे आँखों मे लगा लेती है। उनका मानना है कि ऐसा करने से आँख में कोई दिक्कत रहेगा तो ठीक हो जाएगा और आग तापने से शरीर का रोग दूर हो जाएगा।

इस त्योहार के दिन हम अपने अंदर के सारे बुराई, अहंकार, अपने अंदर के रावण को खत्म करने तथा अपने जीवन मे आगे बढ़ने का दिन है।

इस दिन भगवान हनुमान को नारियल अर्पित किया जाता है। इस दिन मंत्र वाले व्यक्ति नये मंत्र भी सीखते है।

नर्क चतुर्दशी त्योहार का उद्देश्य

इस त्योहार का उद्देश्य है घरों के हर एक कोने में दियों की प्रकाश से उजाला करना है।

यह भी माना जाता है कि दीपावली के एक दिन पहले से भगवान श्री रामचंद्र, माता सीता और लक्ष्मण के स्वागत करने की ख़ुशी में यह त्योहार मानते है।


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