मीराबाई – संत कवि / कृष्ण भक्ति

मीरा बाई - meera bai - prabhu krishna bhaktini
मीरा बाई - meera bai - prabhu krishna bhaktini
( मीराबाई ) Source : wikimedia

सोलहवीं शताब्दी की मीराबाई जो बचपन से ही कृष्ण भगवान की बहुत बड़ी भक्त थी।

ये संत मीराबाई और भक्त संत के नाम से भी प्रसिद्ध है। मीराबाई को 16वीं शताब्दी की रहस्यवादी कवि के नाम से भी जाना जाता है।

ये बचपन से ही कहती थी, की “मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरों न कोई “ ! और बचपन से लेकर मृत्यु तक कृष्ण की माला जपती रह गयी।

मीराबाई का जीवन परिचय

कृष्ण की प्रेम की दीवानी मीरा बाई का जन्म राजस्थान के चौकड़ी नामक गाँव मे सन् 1498 ई० में हुआ।

इनके पिता का नाम रत्तन सिंह और माता कुँवरि थी। बचपन मे ही इनके माता-पिता का निधन हो गया था। इनके पितामह (दादा जी) रावदुदा ने इनका पालन-पोषण किया।

8 वर्ष की उम्र में ही यह श्री कृष्ण को अपना पति मान चुकी था। लेकिन इनका विवाह चितौड़ के महाराजा राणा सांगा के बड़े पुत्र भोजराज के साथ कर दिया गया।

लेकिन शादी के कुछ वर्ष बाद ही इनके पति की मृत्यु हो जाती है| ये कम उम्र में ही विधवा हो गयी। कुछ दिन के बाद इनके ससुर राणा सांगा की भी मृत्यु हो जाती है।

उसके बाद ये अपना सारा समय कृष्ण के भक्ति और साधु-संतों के साथ भजन, कीर्तन और नित्य करने में बिता देती थी। इनकी इन सभी आदतो से परिवार वाले इन पर गुस्सा करते थे।

परिवार वाले कई बार इनकी हत्या करना चाहें, जैसे- दूध में जहर मिला के दिया, फूल के जगह साँप का टोकरी भेजा।लेकिन भगवान कृष्ण के कृपा से वह बार बार बच जाती थी।

परिवार की इस हरकत से परेशान होकर मीरा राजमहल छोड़कर वृन्दावन चली गयी। जब तक इनके परिवार वालो को अपने गलती का एहसास होता, तब तो सांसारिक बंधन छोड़ चुकी होती है। मीरा के घर वाले ने बहुत कोशिश की लेकिन वह वापस नही आयी ।

मीरा एक पंक्ति गाती थीं –
“हरि तुम हरो जन की पीर”

मीरा की कृष्ण भक्ति

मीरा की भक्ति की शुरुआत मन की इच्छा कृष्ण के दर्शन से होता है। वह कहती थी कि “मै विरहणी बैठी जांगू दुखन लागे नैण” और जब वे कृष्ण की भक्ति प्राप्त कर ली तो, कहती कि “पायोजी मैनें राम रतन धन पायो ” !

आज भी उनकी भजन, गीत हमारे भारत देश मे गाया जाता है। वह एक लोकप्रिय भक्त थी। इसी से वह जहा भी जाती थी लोग उनका सम्मान, इज्जत और आदर सत्कार करते थे।

मीराबाई की मृत्यु

इनकी मृत्यु आज भी एक रहस्य है। मीरा के मृत्यु के बारे में आजतक कोई भी जानकारी नही मिली है।

इनकी मौत कैसे हुई? इस बात पर कई बहुत कहानिया बताया जाता है। विद्वानों की भी इनके मौत के बारे में अलग ही राय है।

कहा जाता है की मीरा ने अपनी आखिरी समय द्वारिका में ही व्यतीत की थीं। उसके बाद वह गायब हो गयी। लोगो का मानना था कि कृष्ण के मूर्ति में समा गयी है।

ऐसा माना जाता है कि मीरा की मृत्यु द्वारिका में सन् 1557 ई० में कृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गयी यानी उनकी मृत्यु हो गयी।

मीरा बाई की रचनाएँ

मीरा की रचनाएँ है- गीतगोविंद, गोविन्द टीका, मीरा की मल्हारी, राग गोविन्द इत्यादि।

मीराबाई की रचनाएँ आज भी हमारे देश मे भक्ति गीत और भजन के रूप में गाया जाता है।

इनकी सबसे लोकप्रिय रचनाएँ में से एक रचना है,

“पायोजी मैंने राम रतन धन पायो “
इसका मतलब है : मुझे भगवान के नाम का आशीर्वाद मिल गया है।

मीराबाई की भाषा

  • मीरा की मातृभाषा राजस्थानी है।
  • परन्तु इन्होंने अपने रचनाओं में ब्रजभाषा का प्रयोग किया है।
  • इन्होंने भावपूर्ण शैली और मुक्त शैली को अपने रचनाओं में अपनाया है।

धन्यवाद !


co founder of sahiaurgalat.com

मेरा नाम गीता मौर्या है। मैं कंप्यूटर बेसिक नॉलेज कोर्स से सर्टिफाइड हूँ। फिलहाल मै बीए कर रही हूँ।

कंटेंट राइटिंग और सरल तरीके से नए विचारधारा का लेख लिखना मुझे पसंद है।

मै सही और गलत वेबसाइट के मंच के ज़रिये यह चाहती हूँ की पुरे दुनिया भर में हिंदी भाषा और हिंदी लेख के माध्यम से हर तरह के ज्ञान का प्रसार किया जाए।

कमेंट करके अपना विचार प्रकट करें