गुरु गोविंद सिंह – संत सिपाही / सरबंसदानी

Guru Govind Singh 1666
Guru Govind Singh 1666
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पूरे विश्व में प्रसिद्व गुरु गोविंद सिंह जी का नाम तो आप सभी ने सुना ही होगा। वह एक महान पुरुष थे और साथ ही वह एक कवि तथा भगवान के सच्चे भक्त भी थे।

उन्हें पूजा और समाज सेवा करने में बहुत दिलचस्पी थी। इसी से उनको आध्यात्मिक नेता भी कहते है।

औरतों और हमारे देश मे रहने वाले मनुष्य के साथ हो रहे अत्याचार तथा पापों को खत्म करने के लिए मुगलों से कई बार युद्ध कर हर युद्ध पर कामयाबी पायें। इसी से उनको एक क्षेष्ठ योद्धा भी कहा जाता है।

आजकल कोई अपने परिवार को छोड़ना नही चाहता है, लेकिन उन्होंने धर्म के लिए अपने समस्त परिवार का त्याग कर दिया। इसीलिए उन्हें रबंसदानी के नाम से भी जाना जाता है।

गोबिंद साहब जी संत सिपाही के नाम से भी प्रसिद्व थें क्यूंकि वें विद्वानों, कवियों और महान संतों के रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते थें।

आइये ऐसे महान शक्तिशाली पुरुष गुरु गोविन्द जी के बारे में जानते है।

गुरु गोविन्द सिंह जी का जीवन परिचय

गुरु गोविन्द सिंह जी की जीवनी –

  • जन्म : 22 दिसम्बर सन् 1666 पटना में (भारत)
  • मृत्यु : 7अक्टूबर सन् 1708 नादेड़ में (भारत)
  • पत्नियों के नाम : माता जीतो, माता सुंदरी, माता साहिबा देवां
  • बेटों के नाम : जुझार सिंह,जोरावर सिंह, फतेह सिंह, अजीत सिंह
  • भाषा : फारसी, सँस्कृत इत्यादि।
  • गुरु में पदवी : दसवें सिख गुरु थे।
  • गुरुगोविंद सिंह जयंती : 9 जनवरी, सन् 2022

सिखों धर्म के दसवें गुरु कहे जाने वाले गुरु गोविन्द जी का जन्म 22 दिसम्बर सन् 1666 को पटना में माता गुजरी जी और पिता गुरु तेगबहादुर जी के घर हुवा।

तेगबहादुर जी उस समय बंगाल और असम की यात्रा पर थे। कहाँ जाता है कि पटना के जिस घर मे इनका जन्म हुवा था उस जगह अब तखत श्री हरिमंदर जी पटना साहिब स्थित हो गये हैं।

गुरु गोविंद जी का बाल्यावस्था पटना में ही गुजरा, फिर चार साल के बाद सन् 1670 में इनका परिवार पंजाब चला गया।

पंजाब में इनका परिवार दो साल तक रहा और फिर सन् 1672 में गुरु जी का परिवार हिमालय के शिवालिंग पहाड़ियों में स्थित चक्क नानकी नामक स्थान पर हमेशा के लिये निवासी हो गये। गुरु गोविन्द जी की पढ़ायी यही से शुरू हुयी। इनको फारसी, संस्कृत इत्यादि भाषाओं का ज्ञान था।

इनको समाज सेवा, सभी को स्वतंत्रता दिलाने और देश के लिये बहुत कुछ करना था इसी से मुगलो से जंग लड़ने के लिए इन्होंने अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान प्राप्त किया।

गुरु गोविंद सिंह जी की जीवनसाथी

कहा जाता है की इन्होंने अपने जीवन मे तीन शादियां की थी। अपने तीनों पत्नियों और अपने सभी बच्चों का बहुत अच्छे से देखभाल किया।

अपने पूरे परिवार को एक साथ जोड़कर रखा था। आईये इनके तीन पत्नीया कौन थी, इनकी कब शादी हुई और उनके बच्चों का क्या नाम था? जानते है।

प्रथम पत्नी

21जून सन् 1677 बसंतगढ़ में 10 साल की उम्र में इनकी शादी माता जीतो से कर दिया गया। माता जीतो से इनके 3 पुत्र हुए जुझार सिंह सन् 1691में,जोरावर सिंह सन् 1696 में, फतेह सिंह सन् 1699 में पैदा हुए।

द्वितीय पत्नी

4 अप्रैल सन् 1684 को आनंदपुर में 17 साल की उम्र में इनकी शादी माता सुंदरी से कर दिया गया। माता सुंदरी से इनके 1 पुत्र हुए अजीत सिंह सन् 1687 में पैदा हुए।

तृतीय पत्नी

15 अप्रैल सन् 1700 को आनंदपुर में  33 साल की उम्र में इनका शादी माता साहिबा देवां से शादी कर दिया गया। इनसे उनका एक भी पुत्र नही हुए। लेकिन फिर भी गुरु जी ने उनका बहुत मान सम्मान करते थे। माता साहिबा देवां की शिख धर्म मे बहुत प्रभावशाली भूमिका थी।

संत सिपाही गुरु गोविन्द सिंह जी की मृत्यु

गोविंद सिंह जी की मृत्यु इतनी कम उम्र में नही हुआ होता, लेकिन मुगलों से युद्ध करते समय इनके दिल पर गहरी चोट लगने के वजह से इनका निधन नादेड़ में 07 अक्टूबर सन् 1708 में 42 साल के उम्र में ही हो गया।

गुरु गोविंद सिंह जी की रचनाये

  • जाप साहिब- एक निरंकार के गुरूवाचक नामो का संकलन।
  • बचित्र नाटक– गोविन्द जी की जीवनी।
  • चंडी चरित्र- ४ रचनाएँ- अरूप- आदि शक्ति चंडी की स्तुति। इसमे चंडी को शरीर औरत और मूर्ति में माने जाने वाली मान्यताओं को तोड़ा है। चंडी को परमेश्वर की शक्ति=हुक्म के रूप में दर्शया गया है। यह एक मार्कण्डेय पुराण रचना पर आधारित है।
  • शास्त्र नाम माला- अस्त्र-शस्त्रो के रूप में गुरमत का वर्णन।
  • अथ पख्याँ चरित्र लिख़्यते- बुद्धिओ के चाल चलन के ऊपर विभिन्न कहानियों का संग्रह।
  • ज़फ़रनामा: मुगल शासक औरंगजेब के नाम पत्र।
  • खालसा महिमा: खालसा की परिभाषा और कृतित्व।

खालसा पंथ की स्थापना कैसे हुयी

सन् 1699 में वैशाखी के दिन सिख धर्म में आये हुवे सभी लोगों का गुरु गोविन्द जी ने परीक्षा लेना चाहा। और सिख परम्परा के अनुसार समुदाय सभा में आये हुए लोगो से पूछा- “कौन अपने सिर का त्याग करना चाहता हैं”?

उसी समय एक ब्यक्ति अपने सिर का बलिदान करने के लिए राजी हो गया और गुरू गोविंद जी उस ब्यक्ति के साथ एक तम्बू में चले जाते है, कुछ देर बाद गुरु गोविन्द जी अकेले हाथ मे खून से रंगे तलवार लेकर वापस आ रहे थे।

पुनः वही सवाल पूछा अपने सिर का बलिदान कौन करना चाहता है। तभी एक दूसरा ब्यक्ति राजी हो गया और उनके साथ तम्बू में चला गया। फिर गुरू गोविंद जी अकेले हाथ मे तलवार खून से लठ-पथ लिए आ रहे थे। यही प्रकिया चार बार दोहराया और पाँचवा ब्यक्ति के साथ तम्बू में चले गए। कुछ देर बार गुरु जी सभी पाँच ब्यक्ति के साथ सुरक्षित वापस आये।

उन्होंने उन्हें पंच प्यारे और सिख परम्परा का पहला खालसा कहा। उसके बाद गुरू जी ने एक लोहे के कटोरे में पानी और चीनी मिला कर दोधारी तलवार से घोल कर अमृत तैयार किया। फिर उन्होंने पंच प्यारे को आदि ग्रन्थ के पाठ के साथ प्रशासित किया। उन पाँच ब्यक्ति के बाद लोगो ने उनको छठवाँ खालसा घोषित कर दिया। और उनका नाम गुरु गोविन्द राय से बदलकर गुरु गोविन्द सिंह रख दिया गया।

गुरु जी ने खालसा की पाँच कश्मीर रीत की सुरूवात की और उनका महत्व और विशेषता बताया

  • केश : सर का बाल।
  • कंघा : लकड़ी की कंघी।
  • कारा : हाथ की कलाई में पहनने वाला लोहे या स्टील का कंगन ।
  • कृपाण : तलवार या खंजर।
  • कच्छेरा : छोटी जांघिया।

गुरु गोविंद जी के अनमोल विचार

गुरु गोविन्द जी के अनमोल विचार से हमे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। मैं उम्मीद करती हूं आप लोग को इनके विचार से बहुत शक्ति और मन को शांति मिलेगी। इनकी कहावत सुनकर आपके अंदर का डर खत्म हो जाएगा आपको जीने की उम्मीदें मिल जाएगी। आज भी इनके पक्तियां में खुशी,शांति और ताकत मिलती है।

“चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊँ,
गीदड़ो को मैं शेर बनाऊ,
सवा लाख से एक लड़ाऊँ,
तबै गुरु गोविंद सिंह नाम कहाऊँ “

  1. अच्छे कर्म करने वालों की ही ईश्वर मदद करता है।
  2. आपको सुख और शांति तभी मिलेगी जब आप अपने अंदर की स्वार्थ को खत्म कर लेंगे।
  3. आप केवल भविष्य के बारे में सोचते रहेंगे तो वर्तमान को भी खो देंगे।
  4. मनुष्य से प्रेम-भाव ही ईश्वर की सच्ची भक्ति है।
  5. स्वार्थ ही हमे गलत काम करने के लिए प्रेरित करता है।

धन्यवाद !


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मेरा नाम गीता मौर्या है। मैं कंप्यूटर बेसिक नॉलेज कोर्स से सर्टिफाइड हूँ। फिलहाल मै बीए कर रही हूँ।

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